Depression-Dementia Connection: एक नए अध्ययन के अनुसार, डिप्रेशन मिड एज के साथ-साथ 50 साल और उससे ज्यादा उम्र के लोगों में भी डिमेंशिया के जोखिम को काफी बढ़ा सकता है. ग्लोबल लेवल पर 57 मिलियन से अधिक लोग डिमेंशिया से पीड़ित हैं. मौजूदा वक्त में इसका कोई इलाज नहीं है, इसलिए डिप्रेशन जैसे रिस्क फैक्टर्स की पहचान करना और उनका इलाज करना एक अहम पब्लिक हेल्थ प्रायोरिटी है.
डिप्रेशन और डिमेंशिया का खतरास्टडी की फाइंडिंग्स से पता चला है कि डिप्रेशन और डिमेंशिया के बीच संभावित रिश्ता कॉम्पलेक्स है और इसमें क्रोनिक इंफ्लेमेशन, हाइपोथैलेमिक-पिट्यूटरी-एड्रेनल एक्सिस डिसरेगुलेशन, वैस्कुलर चेंजेज, न्यूरोट्रॉफिक फैक्टर्स में चेंजेज और न्यूरोट्रांसमीटर इम्बैलेंस शामिल हो सकते हैं, शेयर्ड जेनेटिक और बिहेवियर से जुड़े मोटिवेशन भी रिस्क को बढ़ा सकते हैं.
क्या कहती है स्टडी?जर्नल ईक्लिनिकलमेडिसिन (eClinicalMedicine) में छपी ये स्टडी, मेंटल हेल्थ के साथ-साथ ब्रेन हेल्थ की हिफाजत के लिए एक व्यापक रणनीति के हिस्से के रूप में, जीवन भर डिप्रेशन को पहचानने और उसका इलाज करने की अहमियत पर फोकस करता है.
पब्लिक हेल्थ एफर्ट की जरूरतयूके में यूनिवर्सिटी ऑफ नॉटिंघम (University of Nottingham)के इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड स्कूल ऑफ मेडिसिन (Institute of Mental Health and School of Medicine) के जेकब ब्रेन (Jacob Brain) ने कहा, “पब्लिक हेल्थ एफर्ट को प्रवेंटल ब्रेन हेल्थ पर ज्यादा जोर देने की जरूरत है, जिसमें इफेक्टिव मेंटल हेल्थ केयर तक पहुंच बढ़ाना भी शामिल है.”
आने वाले सालों में खतरापिछली स्टडीज से पता चला है कि डिप्रेशन से परेशान लोगों में बाद के जीवन में डिमेंशिया डेवलप होने की संभावना ज्यादा होती है. फिर भी, इस बात पर बहुत बहस हुई है कि डिप्रेशन सबसे अहम कब होता है, चाहे वो मिड एज ग्रुप में शुरू होने वाला डिप्रेशन हो, 40 या 50 के दशक में, या बाद के जिंदगी में नजर आने वाला डिप्रेशन हो – 60 के दशक या उससे ज्यादा उम्र में.
डिप्रेशन को हल्के में न लेंये नया रिसर्च सभी मौजूदा सबूतों को एक साथ लाता है और इस समय को ज्यादा डिटेल से जांचने के लिए नए एनालिसिस एड करता है. ब्रेन ने कहा, “हमारी फाइंडिंग्स इस संभावना को बढ़ाते हैं कि देर से जीवन में होने वाला डिप्रेशन सिर्फ एक रिस्क फैक्टर्स नहीं हो सकता है, बल्कि ये डिमेंशिया के डेवलप होने की शुरुआती वॉर्निंग साइन भी हो सकता है. इस समय को क्लियर करके, हमारा काम फ्यूचर के रिसर्च, ट्रीटमेंट और प्रिवेंशन स्ट्रेटेजी को गाइड करने में मदद करता है.”
ये स्टडी, 34 लाख से ज्यादा प्रतिभागियों वाले 20 से अधिक अध्ययनों के मेटा-एनालिसिस पर बेस्ड है, खास तौर से उस टाइमिंग पर फोकस्ड है जब डिप्रेशन को मापा गया था, चाहे उसे मिड लाइफ या बाद की जिंदगी में मापा गया हो, और ये कैलकुलेट किया गया कि इसने डिमेंशिया डेवलप होने के जोखिम को कितना बढ़ाया. ये रिसर्चर्स को ये समझने में मदद करता है कि जिंदगी के अलग-अलग स्टेजेज में डिप्रेशन का डिमेंशिया के रिस्क से क्या रिश्ता है, इसकी ज्यादा सटीक और अप टू डेट पिक्चर पेश की जा सके.
(इनपुट-आईएएनएस)
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