Last Updated:July 30, 2025, 16:02 ISTAgriculture Tips : खेती में रासायनिक खाद की भूमिका बढ़ती जा रही है. एक बार इसका इस्तेमाल करने के बाद पिंड छुड़ाना मुश्किल है. ये महंगी भी होती है और खतरनाक भी. इस किसान ने इसका विकल्प खोज निकाला है.
गाजीपुर. खेती किसानी में खाद की भूमिका बढ़ती जा रही है. रासायनिक खाद के बढ़ते दाम और मिट्टी की गिरती उपजाऊ शक्ति ने किसानों की नींद उड़ा रखी है. गाजीपुर के किसानों ने इस सिरदर्दी का आसान इलाज खोज निकाला है. यहां के किसान नई उम्मीद की ओर बढ़ रहे हैं. वे नई तरह की खाद बनाने में जुटे हैं. गाय के गोबर और जैविक अपशिष्टों से तैयार यह खाद खेतों के लिए वरदान बनती जा रही है. यह खाद केंचुओं की मदद से बनाई जाती है. गोबर, पत्ते और किचन वेस्ट जैसे जैविक अपशिष्टों का सड़ाकर उन्हें केंचुओं को खिलाया जाता है. उनका मल एक अत्यंत शक्तिशाली जैविक खाद बनता है. यही खाद वर्मी कंपोस्ट है.
कम होती जाएगी जरूरत
गाजीपुर के भांवरकोल प्रखंड के किसान वर्मी कंपोस्ट बनाने में जुटे हैं. किसान रामवृक्ष यादव बताते हैं कि पहले हर मौसम में 6-7 बोरी यूरिया लगाते थे, अब वर्मी खाद से आधे में काम चल जाता है और फसल भी सेहतमंद रहती है. कृषि विज्ञान केंद्र गाजीपुर से जुड़े डॉक्टर सिंह बताते हैं कि वर्मी कंपोस्ट हर साल खेत में डालने पर इसकी मात्रा घटती जाती है, क्योंकि मिट्टी की उर्वरता प्राकृतिक रूप से लौटने लगती है. खासकर अनाज वाली फसलों के लिए 3 से 4 टन प्रति हेक्टेयर डालना पर्याप्त है.
इसके इतने फायदे
वर्मी कंपोस्ट के कई फायदे हैं. इससे मिट्टी की जलधारण क्षमता बढ़ती है. फसलों की गुणवत्ता और स्वाद में सुधार होता है. लंबे समय तक टिकाऊ और असरदार रहती है. रासायनिक खाद से छुटकारा मिल जाता है. कई जगह सरकार वर्मी पिट (Vermi pit) बनाने पर सब्सिडी भी देती है. किसान भाई इसका फायदा भी उठा सकते हैं. अगर हर किसान 2 गाय और एक वर्मी पिट रख ले, तो खाद की किल्लत खत्म हो सकती है और मिट्टी भी हरी-भरी बनी रहेगी.Location :Ghazipur,Uttar Pradeshhomeagricultureन यूरिया चाहिए, न पोटाश, करना होगा सिर्फ एक काम, खेत बन जाएगा अलादीन का चिराग