मुसलमान 786 नंबर को क्यों मानते हैं लकी? इस्लाम में क्या है इसका महत्व?
मुस्लिम समाज में 786 नंबर को अक्सर लकी और पाक समझा जाता है. आखिर ऐसा क्यों माना जाता है. दरअसल, इसकी असलियत बिस्मिल्लाह से जुड़ी है. यह अंक कुरान या हदीस से साबित नहीं है. बल्कि “बिस्मिल्लाह” के हरफों की गिनती से निकाला गया है. असल अहमियत अंक की नहीं बल्कि खुद अल्लाह के नाम की तिलावत और एहतराम की है. तो चलिए जानते हैं इस बारे में आखिर क्या है सचाई और इस्लाम में क्या इसकी कोई मान्यता भी है. जानेंगे मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना इफराहीम हुसैन से विस्तार से.
मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना चौधरी इफराहीम हुसैन अलीगढ़ बताते हैं कि मुस्लिम समाज में 786 नंबर को खास माना जाता है, लेकिन इसकी वास्तविकता को समझना जरूरी है. दरअसल, 786 की गिनती बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम के हरफों को जोड़कर बनाई गई है. इस्लाम में बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम की बहुत बड़ी अहमियत बताई गई है. मुसलमान जब भी कोई काम शुरू करते हैं, तो पहले बिस्मिल्लाह पढ़कर करते हैं, क्योंकि अल्लाह के नाम से शुरू इसमें बरकत और रहमत का वादा है. लेकिन कुरान या हदीस में 786 को लेकर कोई तालीम या अहमियत नहीं बताई गई है. 786 नंबर लोगों द्वारा एक लकी नंबर माना जाता है. लेकिन यह कुरान या हदीस से साबित नहीं है. मौलाना इफराहीम हुसैन का कहना है कि असल रूहानियत और फायदा बिस्मिल्लाह को पढ़ने, लिखने और बोलने में ही है. 786 महज़ एक गिनती है, जिसे बाद में इस वजह से प्रचलन में लाया गया कि कहीं अल्लाह के नाम की बेहुरमती न हो जाए. यानी लोग शब्दों की बजाय अंकों का इस्तेमाल करने लगे. लेकिन इस्लामी नजरिए से बिस्मिल्लाह को अंकों में लिखना साबित नहीं है. इसीलिए साफ अल्फाजों में यह कहा जा सकता है कि 786 अंकों का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है. यह महज़ एक गिनती है.

