Uttar Pradesh

Mirzapur: लाखों का पैकेज छोड़कर खेती से कमा रहे करोड़ों, फसल का ध्यान कर सुनाते हैं मंत्र



मंगला तिवारी

मिर्जापुर. पूरी दुनिया के लिए बढ़ती हुई जनसंख्या एक गंभीर समस्या है. इसके कारण भोजन आपूर्ति के लिए अधिक फसल उत्पादन के लिए खेतों में रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध इस्तेमाल हो रहा है. इसका परिणाम यह हुआ कि आज मिट्टी, जल यहां तक कि हवा भी प्रदूषित हो गई है. जो फल-सब्जियां हमारे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होती थी, आज बढ़ते केमिकल के प्रयोग से उनमें जहर घुल गया है. यही नहीं, खतरनाक रसायनों से मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने वाले जीव नष्ट हो रहे हैं. ऐसे में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के मुकेश पांडेय ने वेदों में वर्णित विधियों को अपनाकरवैदिक कृषि की ओर रुख किया है.

जिले के सीखड़ ब्लॉक के लालपुर गांव के रहने वाले मुकेश पांडेय को अहमदाबाद के उद्यमिता विकास संस्थान से एमबीए करने के बाद 12 लाख रुपये का सालाना पैकेज मिला था. लाइफ अच्छे से गुजर सकती थी, लेकिन मुकेश ने कुछ अलग करने की सोची. वर्ष 2016 में 50 हजार की लागत से उन्होंने खेती की शुरुआत की. शुरुआत में टर्नओवर दो से तीन लाख रुपए था जो अब बढ़कर 4.5 करोड़ रुपए वार्षिक तक पहुंच गया है.

वैदिक कृषि से नहीं होता किसी प्रकार का प्रदूषण

मुकेश बताते हैं कि वैदिक कृषि में फसलों पर स्प्रे का छिड़काव होता है जिसे जीवामृत या पंचामृत कहते हैं. इसमें किसी भी प्रकार के केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता. इससे हवा, जल के साथ ही जमीन भी प्रदूषित होने से बच जाती है. जीवामृत गाय के गोबर, दूध, छाछ, लहसुन, नीम की पत्ती और नींबू की पत्ती का इस्तेमाल कर के बनाया जाता है.

इस पद्धति की खेती में नहीं होता जल का दोहन

उन्होंने कहा कि वैदिक पद्धति से कृषि करने से जल का दोहन भी बहुत कम होता है. तुलनात्मक रूप से देखें तो जहां एक तरफ गेंहू की खेती में अन्य किसान चार बार सिंचाई करते हैं. वहीं, वैदिक पद्धति में मुश्किल से सिर्फ दो सिंचाई में ही गेंहू की फसल तैयार हो जाती है. पपीते के लिए आम किसान लगभग नौ बार सिंचाई करते हैं, लेकिन वैदिक कृषि में तीन सिंचाई में पपीता तैयार हो जाता है. केले की खेती में भी लगभग 16 बार सिंचाई चाहिए होता है. मगर वैदिक विधि से छह बार की सिंचाई में केला तैयार हो जता है.खेतों के बीच में योग से फसलों पर सकारात्मक प्रभाव

मुकेश पांडेय लोगों के साथ फसलों के बीच योग भी करते हैं. उनका मानना है कि इससे फसलों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और उपज अच्छी होती है. इसके अलावा बीजारोपण भी रोहिणी नक्षत्र में करते हैं. इस नक्षत्र में वायुमंडल के सभी जीव जंतु में स्फूर्ति रहती है. वैदिक कृषि में हर 15 दिन पर खेतों के चारों तरफ एक हवन कुंड तैयार किया जाता है जिसमें देसी घी, दसांग, गुड़, नारियल जैसी चीजें जलाते हैं. इससे वायुमंडल में एक अच्छी उर्जा बनी रहती है.
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