मेरठ: एक ऐतिहासिक और पौराणिक शहर जो इतिहास, धर्म और संस्कृति से जुड़ी जगहों की सैर करने के लिए एक परफेक्ट डेस्टिनेशन हो सकता है. यह धरती न सिर्फ प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की गवाह रही है, बल्कि महाभारत और रामायण काल की अनेक पौराणिक कथाओं से भी जुड़ी हुई है. यहां आपको एक ही जगह पर धार्मिक स्थलों की शांति, ऐतिहासिक धरोहरों की भव्यता और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम देखने को मिलेगा. अगर आप अपने परिवार के साथ घूमने का प्लान बना रहे हैं और ऐसी जगह की तलाश में हैं जहां ऐतिहासिक और पौराणिक दोनों पहलुओं की झलक मिल सके, तो मेरठ आपके लिए एक बेहतरीन स्थान साबित हो सकता है. यहां आप महाभारत और रामायण कालीन तथ्यों के साथ-साथ ऐतिहासिक धरोहरों और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी अनेक कहानियों से रूबरू हो सकते हैं.
मेरठ से लगभग 45 किलोमीटर दूर स्थित हस्तिनापुर को महाभारत कालीन धरती के रूप में जाना जाता है. यह स्थान धार्मिक एकता का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करता है. यहां एक ओर महाभारत कालीन पांडेश्वर मंदिर, कर्ण मंदिर और द्रौपदी घाट सहित अनेक मंदिर हैं, जिनका संबंध पांचों पांडवों, कौरवों और द्रौपदी से जुड़ा हुआ माना जाता है. वहीं जैन समाज द्वारा यहां भव्य जम्बूद्वीप का निर्माण किया गया है. इस परिसर में जैन धर्म से संबंधित अनेक सुंदर मंदिर बने हुए हैं. पर्यटन की दृष्टि से भी यह स्थान अत्यंत आकर्षक है. यहां स्थित सुमेरु पर्वत ऐसा बनाया गया है कि घूमते-घूमते कब आप 40 फीट की ऊंचाई तक पहुंच जाते हैं, इसका एहसास तक नहीं होता. इसके अलावा यहां ध्यान मंदिर और बच्चों के मनोरंजन के लिए विभिन्न खेल-कूद के स्थल भी मौजूद हैं. इसी कड़ी में, अगर आप हस्तिनापुर में विदेशी पक्षियों का दीदार करना चाहते हैं, तो यहां की सेंचुरी आपके लिए एक बेहतरीन जगह है. इस समय यहां सैकड़ों की संख्या में विदेशी पक्षियों की चहल-पहल देखने को मिल रही है. आप मखदुमपुर घाट, बूढ़ी गंगा और भीकुंड पर इन खूबसूरत प्रवासी पक्षियों को निहार सकते हैं.
हस्तिनापुर से जुड़ा परीक्षितगढ़ किला आज भी कलयुग के आरंभ की यादों को संजोए हुए है. यहां स्थित श्री श्रृंगी ऋषि आश्रम के बारे में कहा जाता है कि कलयुग की शुरुआत यहीं से हुई थी, जब राजा परीक्षित के मुकुट के समीप कलयुग ने स्थान मांगा था. इस कथा से जुड़ी अनेक पौराणिक घटनाएं हैं, जिनसे आप इस ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल पर जाकर प्रत्यक्ष रूप से रूबरू हो सकते हैं.
मेरठ से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गगोल तीर्थ पौराणिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. यह स्थान महर्षि विश्वामित्र की तपोस्थली के रूप में प्रसिद्ध है. मान्यता है कि जब इस क्षेत्र में राक्षसों का अत्याचार बढ़ गया था, तब महर्षि विश्वामित्र भगवान श्रीराम और लक्ष्मण को यहां लेकर आए थे. इसके बाद भगवान श्रीराम और लक्ष्मण ने यहां राक्षसों का वध कर धर्म की पुनः स्थापना की थी.
मेरठ से लगभग 45 किलोमीटर दूर सरधना में स्थित ऐतिहासिक कैथोलिक चर्च अपनी भव्यता और ऐतिहासिक महत्व के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है. इसे फरजाना उर्फ बेगम समरू ने ताजमहल की तर्ज पर अत्यंत खूबसूरत ढंग से बनवाया था. इसके निर्माण की जिम्मेदारी मेजर एंथोनी रेगीलीनी को सौंपी गई थी. कहा जाता है कि उस समय के सबसे महंगे मिस्त्री ने 25 पैसे रोज़ मेहनताना लेकर इसका निर्माण किया था. तब से लेकर आज तक यह चर्च न केवल भारत बल्कि विदेशी सैलानियों के लिए भी आकर्षण का प्रमुख केंद्र बना हुआ है.
देश की आजादी की पहली चिंगारी यानी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का आगाज भी मेरठ से ही हुआ था. अगर आप इस क्रांति के विभिन्न पहलुओं को करीब से जानना चाहते हैं, तो दिल्ली रोड स्थित राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय का भ्रमण कर सकते हैं. यहां आधुनिक गैलरी के माध्यम से आप 1857 से लेकर 1947 तक के उस संघर्ष को समझ सकते हैं, जब देशभर के वीर क्रांतिकारियों ने आजादी के लिए आंदोलन छेड़ा था. इसी तरह मेरठ में अनेक ऐतिहासिक और पौराणिक पर्यटन स्थल हैं, जहां आप परिवार के साथ घूमते हुए इतिहास और संस्कृति के महत्वपूर्ण पहलुओं से रूबरू हो सकते हैं.

