मेरठ. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मेरठ (Meerut) में सोमवार को सपेरा समाज के लोगों ने बीन बजाकर जोरदार प्रदर्शन किया. सपेरा समाज का यह प्रदर्शन इस बात को लेकर था कि उन्हें उनकी जाति बताई जाए. यूपी की राजनीति में जातियों के प्रभाव के बीच ये अपने आप में ऐसा प्रदर्शन था, जिसमें लोग खुद को जातीय पहचान दिलाने की मांग करते देखे गए.
जाति के लिए परेशान सपेरा समाज के लोगों ने जब बीन बजाकर चौराहे पर प्रदर्शन करना शुरु किया तो सभी की निगाहें उन्हीं पर टिक गईं. सपेरा समाज के लोगों का कहना है कि अगर वो पढ़ते हैं तो जाति प्रमाण पत्र नहीं बनता. नहीं पढ़ते हैं सांप पकड़कर अपना गुज़ारा करते हैं तो वन विभाग वाले लोग पकड़ लेते हैं. सांप को छोड़कर अगर महाराज बनकर घर घऱ जाते हैं तो उन पर चोरी के इल्जाम लगते हैं. उन्होंने कहा कि उनकी टोली में ऐसे भी सपेरे हैं जो एमएससी तक कर चुके हैं, लेकिन नौकरी करने की बजाए उन्हें बीन बजाकर अपना और अपने परिवार का पेट पालना पड़ रहा है.
एमएससी कर चुके एक सपेरे ने बताया कि उनके माता पिता ने अपना पेट काटकर उन्हें पढ़ाया लिखाया, लेकिन जाति प्रमाण पत्र न होने की वजह से वो इतनी क्वालिफिकेशन के बाद भी बीन बजाकर ही अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं. सपेरे बीन बजाते हुए सोमवार को कलेक्ट्रेट पहुंचे और ज्ञापन भी दिया. बीएड कर रही एक छात्रा भी सपेरों की टोली के साथ पहुंची थी. वहीं इंटर पास एक शख्स भी जाति के लिए आवाज़ बलुंद करता नज़र आया.
अखिल भारतीय घुमन्तु सपेरा विकास महासंघ ने जिलाधिकारी को जो ज्ञापन दिया है उसमें सरकार से मांग की है कि यूपी में सपेरा जाति को अनुसूचित जाति में अन्य राज्यों की तरह अंकित किया जाए. ज्ञापन में सपेरा समाज के लोगों ने लिखा कि देश को आज़ाद हुए इतने वर्ष बीत गए और वो नाथ संप्रदाय से हैं. गुरु कनीफानाथ के शिष्य हैं. सपेरा जाति को विभिन्न प्रांतों में अलग अलग नामों से जाना जाता है. बैगा, बोरिया तो कनफड़ा के नाम से उनकी पहचान है.
जनगणना के समय भी उन्हें पहचान दी गई. सपेरा जाति को बीते वर्षों में इन्हीं नामों को अनुसूचित जाति में अंकित करके लाभ दिया गया, लेकिन पिछले पांच छह वर्षों से इन जातियों को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा रहा है और जाति प्रमाण पत्र पर रोक लगा दी गई है. जिसके कारण लोगों का भविष्य खराब हो रहा है.
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The Bill would lead to amendments in the Insurance Act, 1938, the Life Insurance Corporation Act, 1956, and…

