28 मई को दुनियाभर में मेंस्ट्रुअल हाइजीन डे यानी मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया जाता है. इसका मकसद है पीरियड्स से जुड़ी शर्म, चुप्पी और मिथकों को तोड़कर जागरूकता फैलाना. भारत जैसे देश में जहां आज भी मासिक धर्म को लेकर खुलकर बात करना वर्जित माना जाता है, वहां यह दिन और भी अहम हो जाता है.
आज भी कई लड़कियां पीरियड्स की पहली अनुभूति के समय डर, शर्म और भ्रम में जीती हैं. उन्हें न स्कूल में पर्याप्त जानकारी दी जाती है, न ही घर में खुलेपन से बात होती है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में लगभग 71% किशोर लड़कियों को पीरियड्स से पहले इसके बारे में कोई जानकारी नहीं होती. परिणामस्वरूप, वे डर जाती हैं, मानसिक दबाव महसूस करती हैं और कई बार स्कूल जाना भी छोड़ देती हैं.
फोर्टिस ओ.पी. जिंदल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में कंसल्टेंट (प्रसूति एवं स्त्री रोग) डॉ. भारती सोय बताती हैं कि जब महिलाओं को सुरक्षित और स्वच्छ तरीके से अपने पीरियड्स को संभालने के साधन नहीं मिलते, तो इससे संक्रमण, लॉन्ग टर्म समस्याएं और मानसिक तनाव तक हो सकता है. दुनियाभर में करोड़ों महिलाएं अब भी इस सच्चाई को हर दिन झेल रही हैं. बदलाव की शुरुआत तभी होगी जब हम इस विषय पर खुलकर बात करेंगे, इससे जुड़ी भ्रांतियों को तोड़ेंगे और इसे शर्म से जोड़ना बंद करेंगे. साथ ही, यह भी जरूरी है कि सभी को साफ-सुथरे और भरोसेमंद सैनिटरी प्रोडक्ट्स उपलब्ध कराए जाएं और उन्हें उनके सही इस्तेमाल की जानकारी दी जाए. जब स्कूलों और समाज में मासिक धर्म पर खुली चर्चा होती है, तब हम युवाओं को वह जानकारी और सम्मान दे पाते हैं, जिसके वे हकदार हैं.
फोर्टिस ओ.पी. जिंदल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में कंसल्टेंट (प्रसूति एवं स्त्री रोग) डॉ. आंचल अग्रवाल बताती हैं कि अस्वच्छ माहवारी प्रबंधन सिर्फ असुविधा नहीं, बल्कि एक गंभीर पब्लिक हेल्थ समस्या है. अगर इस पर ध्यान न दिया जाए, तो यह गंभीर शारीरिक हानि का कारण बन सकता है. हर महिला के पीरियड्स का अनुभव अलग होता है, लेकिन कई बार अनियमित चक्र या ज्यादा दर्द जैसे लक्षणों को नजरअंदाज कर दिया जाता है, जबकि वे किसी गंभीर और इलाज योग्य बीमारी के संकेत हो सकते हैं. अब समय आ गया है कि हम इसे सिर्फ सामाजिक मुद्दा मानकर टालें नहीं, बल्कि इसे सेहत का एक अहम मुद्दे के रूप में स्वीकारें. इसका मतलब है कि हर व्यक्ति को सुरक्षित, सस्ते और आसानी से उपलब्ध सैनिटरी उत्पाद मिलें और वे बिना शर्म के इस विषय पर बात कर सकें, क्योंकि मासिक धर्म से जुड़ा स्वास्थ्य अधिकार हर इंसान का हक है, कोई विशेष सुविधा नहीं.
क्या होना चाहिए समाधान?* स्कूलों में लड़के और लड़कियों दोनों को पीरियड्स पर वैज्ञानिक और संवेदनशील शिक्षा दी जाए.* समाज में मिथकों को तोड़ने के लिए खुली बातचीत हो.* सरकार और संस्थाएं सुरक्षित, सस्ते सैनिटरी प्रोडक्ट की उपलब्धता सुनिश्चित करें.* घरों में माता-पिता, खासकर मां-बाप दोनों, बच्चों से इस विषय पर सहज बातचीत करें.