Mau News: चंद्रशेखर आज़ाद से लेकर भगत सिंह तक का, इस कुटिया से है गहरा नाता, यहीं लिखी गई थी क्रांति की पटकथा!

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मऊ: उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में स्थित कटवास कुटी केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आज़ादी के आंदोलन का एक गुप्त और ऐतिहासिक केंद्र भी रहा है. यह जगह उस दौर की कहानी कहती है जब साधु-संतों ने न केवल अध्यात्म का संदेश फैलाया, बल्कि अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले क्रांतिकारियों को भी छुपाकर देशभक्ति का फर्ज निभाया.

कटवास गांव मऊ जनपद में इंदारा जंक्शन से लगभग 3 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है. साल 1916 में जौनपुर की बड़ैया स्थित कबीरपंथ की आचार्य गद्दी की देखरेख में, यहां बस्ती से दूर कबीरपंथियों ने एक पवित्र धूनी प्रज्वलित की. इस स्थल पर साध्वी नागेश्वरी देवी ने एक कुटिया बनाकर कबीरपंथ की गद्दी संभाली और इस स्थान को आध्यात्मिक और सामाजिक चेतना का केंद्र बना दिया.

अंधेरे में होती थी गुप्त बैठकें
कटवास कुटी में संत प्रकाशानंद, ब्रह्मानंद, अद्वैतानंद, निर्भयदास, साध्वी शांति और झकड़ी भगत जैसे संतों की साधना से पूरा क्षेत्र भक्तिमय हो गया था. लेकिन जब देश आज़ादी की लड़ाई के लिए जागा, तो इन संतों ने भी अपने दरवाज़े क्रांतिकारियों के लिए खोल दिए. भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे योद्धाओं ने जिस समय अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंका, उस समय कटवास कुटी भी गुप्त रणनीति बनाने का केंद्र बन गई थी.

इस कुटी पर क्रांतिकारी रात के अंधेरे में पहुंचते थे, विश्राम करते थे और फिर गुप्त बैठकों में योजनाएं बनाते थे. यहीं पर काकोरी कांड, पिपरीडीह ट्रेन लूट, सहजनवां, नंदगंज और बाराबंकी जैसी घटनाओं की रूपरेखा तैयार की गई थी. लंगर में अलगू राय शास्त्री, सत्यराम सिंह और दलसिंगार दुबे जैसे नेता भोजन करते थे, जबकि सरयू पांडेय, झारखंडे राय, जयबहादुर सिंह और धर्मदेव राय जैसे क्रांतिकारी यहां शरण लेते थे.

अंग्रेज भी रह गए थे हैरान
जब अंग्रेजों को इस कुटी के रहस्य की भनक लगी, तो उन्होंने स्टेशन से पहले ही ट्रेन रोककर पूरी फौज के साथ कुटी को घेर लिया. खपरैल की छत पर लहराता तिरंगा देखकर अंग्रेज आग-बबूला हो उठे. संतों ने किसी भी क्रांतिकारी को जानने से इनकार कर दिया. गुस्से में आए अंग्रेजों ने 1942 में इस कुटी को आग के हवाले कर दिया.

अंग्रेजों ने इस कुटी के जलने के बाद केवल पांच सौ रुपये का मुआवजा दिया, जबकि वादा तीन हजार रुपये का किया गया था. आज़ादी के बाद स्वामी प्रकाशानंद को स्वतंत्रता सेनानी घोषित किया गया. लेकिन उन्होंने पेंशन और सरकारी लाभ लेने से मना कर दिया. यह उनके त्याग और सेवा भावना का प्रतीक है.

आज भी मौजूद हैं ऐतिहासिक दस्तावेज 
कटवास और आसपास के ग्रामीण आज भी इस कुटी की ऐतिहासिक विरासत को याद करते हैं. इस कुटी में आज भी उस समय के पत्र और दस्तावेज मौजूद हैं, जो क्रांतिकारियों के बीच आदान-प्रदान किए गए थे. ये पत्र आज भी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं और इस स्थान को ऐतिहासिक महत्व प्रदान करते हैं.

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