Uttar Pradesh

मां दुर्गा की प्रतिमाओं में झलकती श्रद्धा, शादी के बाद निर्मला क्यों बनी मूर्तिकार, जानें हकीकत

उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में एक अनोखी कहानी है, जो परंपरा, आस्था और मेहनत का संगम है. चंदौली जिले के मुगलसराय क्षेत्र के गोधना गांव की रहने वाली निर्मला देवी एक मूर्तिकार हैं, जिन्होंने अपनी कला को अपने पूर्वजों से सीखा है. शादी के बाद उन्होंने मिट्टी की मूर्तियां बनाने का काम अपनाया और आज यह उनकी पहचान बन चुकी है. हर साल नवरात्र से पहले उनका आंगन देवी-देवताओं की मूर्तियों से सज जाता है, जो न सिर्फ गांव में, बल्कि आस-पास के जिलों में भी पूजा पंडालों की शोभा बढ़ाती हैं.

निर्मला देवी बताती हैं कि मूर्तिकला का यह हुनर उन्होंने अपने पूर्वजों से सीखा. शादी के बाद जब वे गोधना आईं, तो घर की परंपरा से जुड़कर मिट्टी की मूर्तियां बनाना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे यह कार्य उनके जीवन का अहम हिस्सा बन गया. उनके अनुसार, यह सिर्फ पेशा नहीं, बल्कि हमारी आस्था और संस्कृति की सेवा है. नवरात्र से पहले बढ़ जाता है काम, जब निर्मला देवी और उनका परिवार मूर्तिकला में व्यस्त हो जाता है. मिट्टी को गूंथने से लेकर आकृति बनाने और फिर रंगों से सजाने तक हर काम में गहरी श्रद्धा झलकती है. मां दुर्गा और मां सरस्वती की प्रतिमाएं तो उनकी खास पहचान बन चुकी हैं, जिन्हें तैयार करने में कई दिन की मेहनत और बारीकी लगती है.

आज निर्मला देवी और उनका परिवार सिर्फ गोधना गांव तक सीमित नहीं है. आस-पास के जिलों—चंदौली, सोनभद्र और मिर्जापुर से हर साल ऑर्डर आते हैं. स्थानीय पूजा समितियां और श्रद्धालु समय से पहले ही प्रतिमाओं का ऑर्डर बुक कर लेते हैं. इस समय पूरा परिवार और उनके साथ 4-5 लोग मिलकर मूर्तियों को आकार देने में जुटे हैं. निर्मला देवी का बड़ा बेटा, राजेश कुमार, अब इस कला को आगे बढ़ा रहा है. वह बताता है, हम लोग कई पीढ़ियों से मां दुर्गा की प्रतिमाएं बना रहे हैं. मेहनत बहुत है, लेकिन आमदनी सीमित है. त्योहारों पर तो काम चल जाता है, लेकिन स्थायी आय का साधन नहीं है. बावजूद इसके, राजेश और उनका परिवार इस परंपरा को जीवित रखने में कोई कसर नहीं छोड़ते.

निर्मला देवी का जीवन बताता है कि किस तरह आस्था, परंपरा और मेहनत मिलकर किसी साधारण कार्य को असाधारण बना देते हैं. सीमित आमदनी और कठिनाइयों के बावजूद उनका परिवार मिट्टी की प्रतिमाओं में अपनी श्रद्धा और कला की छाप छोड़ता आ रहा है. गोधना गांव में उनकी बनाई प्रतिमाओं को देखकर लोग न सिर्फ पूजा का भाव जगाते हैं, बल्कि इस कला की निरंतरता को भी सराहते हैं. निर्मला देवी और उनका परिवार एक अनोखे संगम का प्रतीक हैं, जहां आस्था, परंपरा और मेहनत एक साथ मिलकर एक अद्वितीय कला को जन्म देते हैं.

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