मंत्री ने बताया है कि इन समझौतों के लिए जिला कलेक्टर की भागीदारी आवश्यक होगी ताकि प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित हो सके।
मंत्री ने कहा, “सालाना एक एकड़ जमीन के लिए कम से कम किराया 50,000 रुपये होगा या एक हेक्टेयर के लिए सालाना 1,25,000 रुपये। किसान और निजी पार्टियां एक साथ मिलकर अधिक राशि पर सहमत हो सकती हैं।”
मंत्री ने यह भी कहा कि यदि किसी किसान की जमीन पर माइनरल्स की खोज होती है, तो वह निजी कंपनियों के साथ समझौता कर सकते हैं। इस समझौते के तहत किसानों को माइनरल्स के निकाले जाने के प्रति प्रति टन या प्रति ब्रास के हिसाब से आर्थिक लाभ मिलेगा। हालांकि लाभ की राशि का अभी तक निर्धारण नहीं हुआ है।
मंत्री ने कहा, “आदिवासी किसानों को मंत्रालय में आने की जरूरत नहीं होगी। जिला कलेक्टर के स्तर पर ही निर्णय लिया जा सकता है।”
अधिकारियों के अनुसार, आदिवासी समुदायों को स्थिर आय का स्रोत प्राप्त करने और उनके मालिकाना अधिकारों की रक्षा करने के उद्देश्य से एक नीति बनाई जा रही है। इससे पहले तक आदिवासी जमीनों के लेन-देन को कड़ी निगरानी में रखा जाता था ताकि आदिवासी जमीनों का दुरुपयोग न हो। इससे देरी और राज्य स्तर पर अनुमति की आवश्यकता होने के कारण आदिवासी किसानों को परेशानी होती थी।