लखनऊ. यूपी चुनाव से पहले काफी लंबे समय से बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) अब समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के साथ आ गए हैं. समाजवादी पार्टी ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी है. अखिलेश यादव से उनकी 1 घंटे तक बातचीत हुई है. इसके बाद उन्होंने प्रेस से वार्ता करते हुए कहा है कि बीजेपी ने सामाजिक न्याय की रिपोर्ट को कूड़े की टोकरी में डाल दिया है. उन्होंने कहा कि 27 अक्टूबर के बाद हम सीटों का समझौता कर लेंगे. भागीदारी संकल्प मोर्चा में सीटों का कोई विवाद नहीं है.
राजभर ने कहा कि प्रदेश में बीजेपी ने ‘हिंदू-मुसलमान’ और ‘भारत-पाकिस्तान’ कर रही है. 27 अक्टूबर को मऊ जिले में होने वाले महापंचायत में अखिलेश यादव जी को आने का न्यौता दिया है. भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से खत्म करने के लिए हमारा उनका समझौता है. सीटों को लेकर कोई झगड़ा नहीं है. उन्होेंने कहा कि वह बीजेपी के साथ बिल्कुल नहीं जाएंगे. समाजवादी पार्टी 1 सीट भी ना देगी, तब भी समाजवादी पार्टी के साथ ही रहेंगे.
अभी चंद दिनों पहले ही ओमप्रकाश राजभर उन नेताओं के संपर्क में थे जिनसे अखिलेश यादव का 36 का आंकड़ा है. शिवपाल यादव और असदुद्दीन ओवैसी उनमें से दो बड़े नाम हैं. यही नहीं दो महीने पहले ही ओम प्रकाश राजभर अचानक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह से भी मिलने उनके आवास पहुंच गये थे. पिछले साल जून में उन्होंने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू से भी मुलाकात की थी.
अखिलेश यादव से मिलने के बाद भले ही ओम प्रकाश राजभर ने कहा है कि सपा और सुभासपा साथ मिलकर आए हैं लेकिन, उसी ट्वीट में उन्होंने इस मुलाकात को शिष्टाचार भेंट भी बता दिया है. दूसरी पार्टियों के नेताओं से हुई मुलाकातों को भी उन्होंने शिष्टाचार मुलाकात ही बताया था. अब सवाल उठता है कि ओमप्रकाश राजभर चाहते क्या हैं. उन्होंने यूपी चुनाव में उतरने के लिए 10 दलों का भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाया था. अब ये खण्ड-खण्ड हो चुका है. शिवपाल यादव, असदुद्दीन ओवैसी और चन्द्रशेखर रावण को छोड़कर लगता है ओमप्रकाश राजभर ने एकला चलो की राह पकड़ ली है क्योंकि बाकी के तीनों नेताओं का अखिलेश के साथ आना फिलहाल तो संभव नहीं दिखता.
तो फिर ओमप्रकाश राजभर ने क्यों चली ऐसी चाल
ओमप्रकाश राजभर 2017 का चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़े थे. सरकार बनने के बाद वे मंत्री भी बने थे लेकिन, चोली-दामन का उनका साथ टूट गया. मंत्री पद छोड़ने के बाद से ही राजभर भाजपा की जड़ें खोदने में लग गये. उन्होंने भाजपा विरोधी दलों का मोर्चा तो बना लिया था लेकिन, उन्हें ये अच्छे से पता था कि बिना किसी बड़े दल के साथ आये उन्हें सीटें नहीं मिल सकती हैं. मोर्चे में शामिल छोटे दलों की बदौलत किसी एक विधानसभा सीट को भी जीतना संभव नहीं है. ऐसे में ओपी राजभर ने ये चाल चल दी है. उन्हें पता है कि सीट जीतने के लिए किसी ऐसी पार्टी का साथ चाहिए जिसके पास 20 फीसदी से ज्यादा का सॉलिड वोटबैंक हो. सुभासपा जैसी जाति आधारित पार्टियों का वोट शेयर अपने मजबूत इलाकों में भी 10 फीसदी से कम ही रहता है. ऐसे में यदि उनका किसी बड़ी पार्टी से गठबंधन नहीं होगा तो सीटें जीत पाना संभव नहीं होगा.
बड़ी पार्टियों को ये लालच होता है कि इन जाति आधारित पार्टियों के कई विधानसभा सीटों पर थोड़े-थोड़े वोट भी उन्हें जीत के करीब ला देते हैं. विधानसभा के चुनाव में तो हर सीट पर हजार वोट भी मायने रखता है. इसीलिए अखिलेश ने भी बार बार ये दोहराया है कि वे छोटी पार्टियों से ही गठबंधन करेंगे. जाहिर है दोनों एक दूसरे की मजबूरी समझते हैं. ये अलग बात है कि 2017 में ओपी राजभर भाजपा की मजबूरी थी और अब सपा की बनते दिख रहे हैं. अब देखना ये है कि ओपी राजभर यही रूक जाते हैं या फिर कोई और राजनीतिक चाल चलते हैं.पढ़ें Hindi News ऑनलाइन और देखें Live TV News18 हिंदी की वेबसाइट पर. जानिए देश-विदेश और अपने प्रदेश, बॉलीवुड, खेल जगत, बिज़नेस से जुड़ी News in Hindi.
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