Uttar Pradesh

लखनऊ की चिकनकारी का जहांगीर की बेगम नूरजहां से है पुराना रिश्ता, जानिये दिलचस्प किस्सा



रिपोर्ट- अंजलि सिंह राजपूतलखनऊ. नज़ाकत और नफ़ासत के शहर लखनऊ की यूं तो अपने अदब और लज़ीज़ जायके की वजह पूरी दुनिया में अलग पहचान है. इसके साथ ही एक कहावत भी बहुत मशहूर है कि लखनऊ में चिकन खाया और पहना भी जाता है. वैसे आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि लखनऊ की च‍िकनकारी (Lucknow Chickankari) की शुरुआत मुगल शासक जहांगीर (Mughal Emperor Jahangir) की बेगम नूरजहां (Nur Jahan) ने की थी, जो कि ईरान से यह कला सीखकर भारत आई थीं. उस वक्त चिकनकारी पूरे कपड़ों में न करके सिर्फ टोपी, दुपट्टे या छोटे-छोटे कपड़ों में की जाती थी. आज नूरजहां की ईरानी कला लखनवी कला बनकर पूरे विश्व भर में मशहूर हो चुकी है. जानकारों की मानें तो लखनऊ में चिकनकारी का कारोबार करोड़ों में है.
फारसी शब्द ‘चाक‍िन’ से बना है चिकनलखनवी चि‍कनकारी में इस्तेमाल किया जाने वाला च‍िकन शब्‍द अपभ्रंश है. यह मूलत: फारसी शब्‍द है, ज‍िसे फारसी में ‘चाक‍िन’ कहा जाता है. इसका मतलब है क‍िसी कपड़े पर बेलबूटे की कशीदाकारी और कढ़ाई करना, लेक‍िन भारत में यह ‘चाक‍िन’ शब्‍द लोगों की जुबान पर चढ़ते-चढ़ते चाकिन से च‍िकन बन गया.
ऐसे तैयार होता है लखनवी चिकनमहीन कपड़े पर सुई-धागे से विभिन्न टांकों से की गई हाथ की कारीगरी लखनऊ की चिकन कला कहलाती है. इसमें महीन सुई से कढ़ाई और कच्चे सूत के धागों से रंगों का काम किया जाता है. इसमें लगभग 40 प्रकार के टांके और जालियां होती हैं, जैसे- मुर्री, फनदा, कांटा, तेपची, पंखड़ी, लौंग जंजीरा, बंगला जाली, मुंदराजी जाजी, सिद्दौर जाली, बुलबुल चश्म जाली आदि.
इनमें सबसे मुश्किल और कीमती टांका नुकीली मुर्री होता है, जो कच्चे सूत के तीन या पांच तारों से बारीक सुई से टांके लगाए जाते हैं. जिस कपड़े पर चिकनकारी की जाती है, उसमें सबसे पहले उस पर बूटा लिखा जाता है. यानि लकड़ी के छापे पर मनचाहे बेलबूटों के नमूने खोदकर इन नमूनों को कच्चे रंगों से कपड़े पर छाप लिया जाता है. इन्हीं नमूनों के आधार पर चिकनकारी करने के बाद इन्हें कुछ खास धोबियों से धुलावाया जाता है, जिससे कच्चा रंग पूरी तरह साफ हो जाता है.
लखनऊ में चिकनकारी के लिए मशहूर है यह बाजारलखनऊ में कोई भी पर्यटक आता है तो यहां से खूबसूरत चिकन के कपड़ों की खरीदारी करना नहीं भूलता. लखनऊ में चिकन के प्रमुख बाजारों की बात करें तो सबसे बड़ा केंद्र चौकबाजार है. इसके अलावा अमीनाबाद और हजरतगंज में भी कई बड़े शोरूम हैं, जहां चिकनकारी के कपड़े मिलते हैं.
लखनऊ चिकनकारी हैंडीक्राफ्ट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट संजीव अग्रवाल ने बताया कि चिकनकारी के बारे में यह सही बात है कि इसे नूरजहां लेकर आई थीं, लेकिन इसे लेकर दो अलग-अलग किस्से हैं. कोई कहता है कि नूरजहां ईरान से सीख कर आई थीं, तब उन्होंने इस कला को लखनऊ में मशहूर बनाया. तो कोई कहता है कि दिल्ली से आई उनकी दासी अपने साथ कारीगरों को ले करके आई थीं, नूरजहां ने उन कारीगरों को रख लिया था. कुल मिलाकर दो अलग-अलग किस्से नूरजहां से ही जुड़े हुए हैं. यह कहना गलत नहीं होगा कि चिकनकारी की जनक नूरजहां ही हैं. तो वहीं चिकन कपड़ों के शोरूम मैनेजर हैदर अली खान ने बताया कि कई हर कोई लखनऊ की चिकनकारी का दीवाना है.ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |Tags: Lucknow newsFIRST PUBLISHED : June 26, 2022, 15:52 IST



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