Uttar Pradesh

‘कम समय, ज्यादा मुनाफा’, टमाटर की खेती बनी किसानों की पहली पसंद, लखीमपुर के खेतों में खिल रहा ‘लाल सोना’

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में रबी सीजन की शुरुआत के साथ किसानों ने पारंपरिक फसलों के बजाय टमाटर की खेती की ओर रुख किया है. आधुनिक तकनीक और उन्नत बीजों के प्रयोग से किसान कम समय में अधिक मुनाफा कमा रहे हैं. टमाटर की नई किस्में न केवल रोग प्रतिरोधक हैं, बल्कि बेहतर गुणवत्ता और उपज भी दे रही हैं।

लखीमपुर खीरी जिले में रबी सीजन की शुरुआत के साथ ही किसानों ने अब टमाटर की खेती की ओर रुख करना शुरू कर दिया है. पारंपरिक फसलों की तुलना में टमाटर की खेती कम समय में अधिक मुनाफा देने वाली साबित हो रही है. यही कारण है कि जिले के कई इलाकों में किसान आधुनिक तकनीक और उन्नत किस्मों का उपयोग कर टमाटर उत्पादन में नई ऊंचाइयां छू रहे हैं।

किसानों का कहना है कि टमाटर की अच्छी और अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों में नवीन-152, अर्का रक्षक, अर्का सम्राट और हाइब्रिड एच-86 प्रमुख हैं. ये किस्में रोग प्रतिरोधक होती हैं और इनके फलों की गुणवत्ता भी बेहतर रहती है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, टमाटर की नर्सरी तैयार करने के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे उपयुक्त माना जाता है।

नर्सरी तैयार होने के बाद 25 से 30 दिन में पौधे खेत में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं. समय पर सिंचाई, निराई-गुड़ाई और उचित उर्वरक प्रबंधन से टमाटर की अच्छी पैदावार होती है. लखीमपुर खीरी के मोहम्मदी ब्लॉक के किसान लतीफ बताते हैं कि वे पिछले कई वर्षों से सब्जियों की खेती कर रहे हैं, लेकिन टमाटर की खेती ने उन्हें सबसे अधिक लाभ पहुंचाया है।

उन्होंने कहा, ‘इस बार मैंने करीब दो बीघा क्षेत्र में टमाटर की खेती की है. नर्सरी तैयार होने के बाद जब पौधों को खेत में लगाते हैं, तो जैसे-जैसे पौधे बढ़ते हैं, उन्हें गिरने से बचाने और सीधा रखने के लिए बांस या तार का सहारा दिया जाता है. इससे पौधे स्वस्थ रहते हैं और फलों की गुणवत्ता बेहतर होती है.’

लतीफ ने आगे बताया कि एक बीघे की फसल से किसान 40 से 50 हजार रुपए तक का शुद्ध मुनाफा आसानी से कमा सकते हैं. अगर मौसम अनुकूल रहे और सिंचाई की व्यवस्था अच्छी हो, तो पैदावार और भी बढ़ जाती है. कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि जिले में सब्जी उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए किसानों को प्रशिक्षण और बीज सहायता दी जा रही है. टमाटर की खेती में जल निकासी की सही व्यवस्था और रोग नियंत्रण के लिए जैविक उपाय अपनाने पर विशेष जोर दिया जा रहा है।

विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि फफूंदी या झुलसा रोग से बचाव के लिए खेत में नमी का स्तर नियंत्रित रखना जरूरी है. टमाटर की बढ़ती मांग और बाजार में बेहतर दाम मिलने से जिले के किसानों में उत्साह देखा जा रहा है. अब कई युवा भी टमाटर की खेती को स्वरोजगार का साधन बनाकर कृषि क्षेत्र में नई दिशा दे रहे हैं।

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