कानपुर में रबी सीजन की शुरुआत, किसानों के लिए नई उम्मीदें
कानपुर नगर और देहात के किसानों के लिए इस समय रबी सीजन नई उम्मीदें लेकर आया है. कृषि विभाग की ओर से शुरू की गई योजनाएं और अनुदान योजनाएं किसानों की आमदनी बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा सकती हैं. उप कृषि निदेशक डॉक्टर आर.एस. वर्मा ने बताया कि इस समय जनपद में दलहनी और तिलहनी फसलों की बुवाई के लिए मौसम बिल्कुल अनुकूल है. अगर किसान गेहूं जैसी पारंपरिक फसलों के साथ चना, मटर, सरसों और राई जैसी फसलों की बुवाई बढ़ाएं, तो उत्पादन के साथ-साथ आमदनी में भी दोगुनी बढ़ोतरी संभव है.
कृषि विभाग ने बताया कि जनपद के सभी राजकीय कृषि बीज भंडारों पर उच्च गुणवत्ता वाले बीज 50 प्रतिशत अनुदान पर उपलब्ध हैं. चना की किस्म RVG-204, मटर की IPFD-9-2 और IPFD-12-2 तथा राई/सरसों की गिरिराज, PM-32, CS-61 और CS-58 जैसी प्रजातियां किसानों के लिए विशेष रूप से रखी गई हैं. खास बात यह है कि राई और सरसों के मिनीकिट किसान निःशुल्क प्राप्त कर सकते हैं, जिसके लिए ऑनलाइन पोर्टल के जरिए बुकिंग शुरू हो चुकी है. विभागीय अधिकारियों के अनुसार, इस बार सरकार चाहती है कि किसान दलहनी-तिलहनी फसलों के क्षेत्र में ज्यादा रुचि लें ताकि आत्मनिर्भर भारत अभियान को मजबूती मिल सके.
किसानों को मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है. उप कृषि निदेशक डॉक्टर आर.एस. वर्मा ने कहा कि किसानों को खरीफ फसल के अवशेषों को जलाने से बचना चाहिए. ऐसा करने से न केवल मिट्टी की उर्वरा शक्ति घटती है, बल्कि वातावरण में प्रदूषण भी बढ़ता है. उन्होंने सलाह दी कि किसान खेतों में पूसा डी-कम्पोजर का प्रयोग करें, जिससे मिट्टी में जैविक तत्वों की मात्रा बढ़ेगी और अगली फसलों का उत्पादन भी बेहतर होगा. इसके साथ ही फसलों की लाइन से बुवाई करने की सलाह दी गई है ताकि सिंचाई, खाद डालने और खरपतवार नियंत्रण में आसानी हो.
कृषि विभाग ने बताया कि इस बार एम.एस.पी. यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर दलहनी और तिलहनी फसलों की सरकारी खरीद की जाएगी. इससे किसानों को फसल का उचित मूल्य मिलेगा और बाजार के उतार-चढ़ाव से नुकसान की संभावना कम रहेगी. विभाग ने उम्मीद जताई है कि अगर किसान सरकारी योजनाओं और वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाते हैं तो कानपुर जिला रबी उत्पादन में प्रदेश के अग्रणी जिलों में शामिल हो सकता है. बीज भंडारों पर बढ़ी किसानों की भीड़, कई किसान अनुदानित बीज खरीदने के साथ राइजोबियम कल्चर भी ले रहे हैं ताकि मिट्टी की गुणवत्ता और फसल उत्पादन दोनों बेहतर हो सकें.
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि अब किसानों को पारंपरिक फसलों तक सीमित नहीं रहना चाहिए. दलहनी और तिलहनी फसलें न केवल मिट्टी की सेहत सुधारती हैं बल्कि बाजार में इनकी मांग लगातार बढ़ रही है. आने वाले समय में अगर किसान फसल विविधीकरण पर ध्यान दें तो कानपुर और आसपास के इलाके आत्मनिर्भर कृषि मॉडल का उदाहरण बन सकते हैं.

