उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के किसान अब खेती में नए प्रयोग कर रहे हैं। जिले के कई किसान पारंपरिक गेहूं की जगह अब नई और उन्नत वैरायटी का चुनाव कर रहे हैं। जिससे उन्हें कम समय में ज्यादा पैदावार मिल रही है।
दीनदयाल शोध संस्थान के लाल बहादुर शास्त्री कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) के कृषि वैज्ञानिक डॉ. अंकित तिवारी ने बताया कि वर्तमान मौसम में किसान यदि वैज्ञानिक तरीके से गेहूं की बुवाई करें और सही वैरायटी चुनें, तो उन्हें बेहतर लाभ हो सकता है।
डॉ. अंकित तिवारी के अनुसार, DBW 187, DBW 222, DBW 303 और DBW 326 गेहूं की ऐसी उन्नत किस्में हैं जो जिले के मौसम और मिट्टी के अनुसार बहुत उपयुक्त हैं। ये वैरायटी न सिर्फ ज्यादा पैदावार देती हैं, बल्कि जल्दी तैयार भी हो जाती हैं। इन वैरायटी की खासियत यह है कि ये रोग-प्रतिरोधी हैं। इन पर कीट या फफूंदी का असर बहुत कम होता है।
DBW 187 वैरायटी लगभग 115 से 120 दिनों में पक जाती है। इसकी औसत पैदावार 70-80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है। वहीं DBW 222 सूखा और अधिक तापमान झेलने में सक्षम है। इसलिए यह बदलते मौसम के हिसाब से किसानों के लिए बेहतर विकल्प साबित हो सकती है।
DBW 303 किस्म की खासियत यह है कि इसमें दाने मोटे और भरपूर होते हैं, जिससे बाजार में इसका अच्छा दाम मिलता है। वहीं DBW 326 जल्दी तैयार होने वाली किस्म है, जो समय पर रबी की दूसरी फसलों के लिए भी खेत खाली कर देती है।
गेहूं की बुवाई करें नवंबर माह में
कृषि वैज्ञानिक डॉ. अंकित तिवारी ने किसानों को सलाह दी है कि वे नवंबर के पहले सप्ताह से लेकर नवंबर के तीसरे सप्ताह तक गेहूं की बुवाई कर लें। यह किसान भाई बुवाई में लेट करते हैं तो पैदावार में कमी देखने को मिल सकती है। इसीलिए किसान भाइयों को गेहूं की बुवाई नवंबर माह तक कर देनी चाहिए। इससे फसल सही समय पर पककर तैयार हो जाएगी और ठंड से भी कम नुकसान होगा।
खेत की जुताई अच्छी तरह करें और संतुलित मात्रा में डीएपी, यूरिया और पोटाश का उपयोग करें।
सिंचाई के लिए पहली पानी बुवाई के 21 दिन बाद
डॉ. अंकित तिवारी ने बताया कि गेहूं की बुवाई के लिए बीज दर लगभग 95–100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखनी चाहिए। यदि बुवाई में लेट करते हैं तो बीज का दर बढ़ जाता है, 100 से 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो जाएगी। बीज को बुवाई से पहले थिरम या कार्बेन्डाजिम जैसे फफूंदनाशक दवाओं से उपचारित करना जरूरी है, ताकि फसल में रोग न लगे। सिंचाई के लिए पहली पानी बुवाई के 21 दिन बाद और दूसरी पानी बालियां निकलने के समय देना सबसे उपयुक्त रहता है।

