Uttar Pradesh

मुसलमानों पर आ रही आफत की वजह क्या है? मौलाना ने बताया असली वजह, सोशल मीडिया पर वायरल हो गया

देवबंद/सहारनपुरः जमीयत दावातुल मुस्लिमीन के संरक्षक और प्रसिद्ध देवबंदी उलेमा मौलाना क़ारी इसहाक़ गोरा ने एक विस्तृत वीडियो संदेश जारी करते हुए मुसलमानों के घरों और सामाजिक समारोहों में बढ़ते म्यूज़िक, नाच–गाने, बैंड–बाजों और आतिशबाज़ी के चलन को गहराई से चिंता का विषय बताया. उन्होंने इसे न सिर्फ़ दीनी सीखों के ख़िलाफ़ बताया, बल्कि मुसलमानों की मौजूदा परेशानियों और बेचैनी का एक अहम और अनदेखा किया जाने वाला कारण करार दिया.

वीडियो में मौलाना ने कहा कि आज हालात ऐसे हो चुके हैं कि अल्लाह की नाफ़रमानी को एक तरह का “स्टेटस सिंबल” बना लिया गया है. उन्होंने अफसोस जताया कि जिन कामों से बचने की ताकीद की गई थी, वही काम आज खुशी, शोहरत, फैशन और आधुनिकता के नाम पर आम होते जा रहे हैं. उन्होंने कहा, “हमारे घरों में अल्लाह अल्लाह और कुरआन की तिलावत की जगह म्यूज़िक और गानों ने ले ली है. दुकानों में ज़िक्र की फिज़ा नहीं, बल्कि गानों के शोर ने माहौल को घेर रखा है. हमारी शादियां अब इबादत का माहौल नहीं बल्कि मनोरंजन का मंच बन गई हैं, जहां नाच–गाने, बैंड–बाजे और शोर-शराबा अनिवार्य समझा जाता है.”

उन्होंने कहा कि यह सब होते हुए फिर मुसलमान शिकायत करते हैं कि दिलों को सुकून नहीं, घरों में बरकत नहीं, हालात ठीक नहीं. मौलाना ने सख़्त लहजे में कहा, “क्या हमने कभी सोचा कि नतीजा क्यों बदल गया? जब रास्ता ही गलत चुन लिया जाए, तो मंज़िल सही कैसे मिल सकती है? अल्लाह की खुली नाफ़रमानी के साथ हम रहमत की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?”

आतिशबाजी पर भी मौलाना ने उठाए सवाल
मौलाना इसहाक़ गोरा ने शादी-ब्याह में होने वाली आतिशबाज़ी को भी गैर–ज़रूरी और नुकसानदेह बताते हुए कहा कि यह सिर्फ़ फिजूलखर्ची नहीं, बल्कि तकलीफ़ फैलाने का ज़रिया भी है. उन्होंने कहा कि तेज़ धमाकों और शोर सेराहगीरों, बच्चों, बुजुर्गों और बीमारों को परेशानी होती है. यहां तक कि जानवर और परिंदे भी इस शोर से ख़ौफ़ज़दा हो जाते हैं. उन्होंने सवाल उठाया कि “क्या खुशी मनाने का मतलब यह है कि दूसरे इंसान या मख्लूक को तकलीफ़ पहुंचाई जाए?”

बदल गए मुसलमानों के रोल मॉडल
मौलाना ने इस बात पर भी गहरी नाराज़गी ज़ाहिर की कि मुसलमानों के रोल मॉडल और हीरो बदल गए हैं. उन्होंने कहा कि एक ज़माना था जब उलेमा, बुज़ुर्ग, क़ुरआन के हाफ़िज़, शरीअत पर चलने वाले लोग हमारी नज़र में इज़्ज़त और अनुकरण के लायक थे. उनकी ज़िंदगी, अख़लाक़ और तालीम हमारी प्रेरणा हुआ करती थी. लेकिन आज, उन्होंने कहा, “नाचने–गाने वाले, स्क्रीन पर दिखने वाले और चमक–दमक वाले लोग हमारे हीरो बन गए हैं. हमने अपने बुज़ुर्गों की तालीम, उनकी नसीहतें और उनकी वसीयतों को लगभग भूल डाला है.”

मौलाना ने मुसलमानों को याद दिलाया कि इस्लाह की शुरुआत हमेशा दूसरों से नहीं, बल्कि खुद से होती है. उन्होंने कहा कि घर का माहौल बदले बिना समाज नहीं बदल सकता. उन्होंने मुसलमानों से अपील की, “सबसे पहले अपने दिल को बदलें, अपने घर को बदलें, अपनी आदतों को बदलें. जब बंदा अल्लाह की ओर सच्चे दिल से रुख करता है, तो अल्लाह उसके हालात बदलने में देर नहीं करता.”

मौलाना का मैसेज वीडियो हुआ वायरल
अंत में मौलाना क़ारी इसहाक़ गोरा ने यह कहते हुए अपनी बात पूरी की, “यक़ीन मानिए, हमारी सबसे बड़ी ज़रूरत यही है कि हम अपनी इस्लाह करें. जो क़ौम खुद को सुधार लेती है, अल्लाह उसकी तक़दीर को भी सुधार देता है.” मौलाना का यह बयान सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल हो रहा है, और बड़ी संख्या में लोग इसे समय की पुकार और उम्मत के लिए एक गंभीर चेतावनी के रूप में देख रहे हैं. कई लोगों ने कमेंट्स में इस बात से इत्तेफाक़ जताया कि समाज को संगीत और दिखावे के शोर से निकालकर फिर से दीनी तालीम, सादगी और इबादत के रास्ते पर लाने की सख़्त ज़रूरत है.

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