हाइलाइट्सप्रधानमंत्री बनने से पहले शास्त्री मंत्रिमंडल में मंत्री रह चुकीं थीकुर्सी संभालने के साल भर के भीतर ही आम चुनाव में उतरना पड़ाजिस इंदिरा गांधी को उनकी दबंग छवि के लिए याद किया जाता है वे चुनाव लड़ कर प्रधानमंत्री बनी थीं. उनके विरोध में थे मोरारजी देसाई. इंदिरा गांधी को जोरदार समर्थन मिला था. हालांकि वे इस चुनाव के बाद एक साल ही प्रधानमंत्री रह सकीं और अगले ही साल उन्हें जनता के बीच उतरना पड़ा. कांग्रेस के बहुत सारे नेता इंदिरा गांधी की अगुवाई में चुनाव लड़ने में हिचक रहे थे. फिर भी इंदिरा गांधी ने पार्टी को नेतृत्व दिया और जीत भी दिलाई. ये अलग बात है कि सीटें कम हो गई थीं. हालांकि उस समय पार्टी के भीतर पुराने दिग्गजों ने भी इंदिरा के खिलाफ मोरचा खोल रखा था. जबकि बाहर से राम मनोहर लोहिया ने पूरे प्रतिपक्ष को एक करने का अभियान छेड़ रखा था.

कामराज की भूमिका इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के पीछे कांग्रेस के दिग्गज के कामराज की खासी भूमिका थी. पहले प्रधानमंत्री और इंदिरा गांधी के पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद भी के कामराज ने ही लालबहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी. माना जाता है कि आजादी के आंदोलन में शामिल रहे कामराज अपने समकालीन दूसरे नेताओं को दरकिनार करने के लिए ही शास्त्री को इस पद के लिए तैयार किया. हालांकि शास्त्री ने इंदिरा गांधी से प्रधानमंत्री पद स्वीकार करने का आग्रह किया था. लेकिन इंदिरा गांधी ने साफ इनकार कर दिया था.

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शास्त्री ने बनाया था मंत्रीइसके बाद शास्त्री ने उनसे कहा कि वे मंत्रिमंडल में शामिल हो जाएं. इसके लिए शास्त्री की दलील थी कि अगर इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल में नहीं शामिल होंगी तो सरकार अस्थिर हो जाएगी. लिहाजा सूचना प्रसारण मंत्री के तौर पर इंदिरा गांधी शास्त्री मंत्रिमंडल में आ गईं. वैसे 1959 में वे कांग्रेस अध्यक्ष रह चुकी थीं. कांग्रेस अध्यक्ष पद पर उनके दादा पंडित मोतीलाल नेहरू और पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू रह चुके थे. इस लिहाज से आरोप लगे कि पंडित नेहरू ने वंशवाद की शुरुआत की. हांलाकि कांग्रेस अध्यक्ष बनने से पहले और पद छोड़ने के बाद भी जवाहरलाल नेहरू इंदिरा गांधी से मसविरा किया करते थे. पार्टी का एक बड़ा धड़ा मानता था कि इंदिरा गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष उनके योगदान के कारण बनाया गया था. ये भी ध्यान रखने की बात है कि बानर सेना बना कर इंदिरा गांधी बचपन से ही आजादी के आंदोलन से जुड़ी हुई थीं.

दूने वोटों से जीतींबहरहाल, जब पीएम के तौर पर इंदिरा गांधी के चुने जाने की बारी आई तो पार्टी के दिग्गज नेता मोरारजी देसाई ने इंदिरा गांधी के सामने अपनी दावेदारी ठोक दी. पार्टी संसदीय दल में चुनाव हुआ. पत्रकार और लेखक रशीद किदवई अपनी पुस्तक ‘ नेता, राजनेता, नागरिक : भारतीय राजनीति को प्रभावित करने वाली 50 हस्तियां’ में लिखते हैं – “शास्त्री के निधन के नौ दिनों के बाद ही कांग्रेस के निर्वाचित सदस्यों ने मतदान किया. दोपहर 3 बजे तक निर्वाचन अधिकारी ने संसद के केंद्रीय कक्ष में कामराज के हाथों में नतीजे सौंप दिए. कामराज ने तमिल भाषा में चुनाव परिणाम की घोषणा की. कांग्रेस अध्यक्ष ने क्या कहा, इसे सिर्फ कुछ ही सांसद या पार्टी नेता समझ पाए. हालांकि, सस्पेंस बहुत ज्यादा देर तक नहीं रहा और किसी ने पूरे जोश के साथ हिंदी में घोषणा की कि इंदिरा ने मोरारजी को 169 के मुकाबले 355 वोटों से हरा दिया है.” इस तरह से इंदिरा गांधी को मोरारजी की तुलना में तकरीबन दूने वोट मिले और वे प्रधानमंत्री बनीं. उन्होंने 24 जनवरी 1966 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. अगले ही साल देश में आम चुनाव होने थे लिहाजा ये सरकार साल भर ही चली थी.
.Tags: Congress, Loksabha Election 2024, Loksabha ElectionsFIRST PUBLISHED : March 22, 2024, 19:25 IST



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