कन्नौज: मौजूदा समय में उत्तर भारत के किसानों का रुझान कद्दू वर्गीय सब्जियों की खेती की ओर तेजी से बढ़ रहा है. वजह साफ है कि कम समय में तैयार होने वाली ये सब्जियां किसानों को अच्छा मुनाफा दे रही हैं. लेकिन साथ ही इसमें कुछ ऐसी तकनीकी बातें भी हैं, जिन्हें अगर किसान नजरअंदाज कर दें, तो नुकसान भी झेलना पड़ सकता है.
कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञ डॉ. अमर सिंह का कहना है कि किसान अगर कद्दू वर्गीय सब्जियों की खेती कर रहे हैं, तो उन्हें कुछ खास बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए. सबसे जरूरी है कि खेत की खुदाई सही तरीके से हो, फसलों के बीच में सही दूरी रखी जाए और समय पर सिंचाई की जाए. अगर खेत में कीट लगने की संभावना नजर आ रही हो, तो जल्द से जल्द कृषि वैज्ञानिकों की सलाह लेकर कीटनाशकों का छिड़काव करना चाहिए.
फूलों की पहचान से होगा लाभडॉ. अमर सिंह के मुताबिक कद्दू वर्गीय फसलों में दो तरह के फूल आते हैं. नर और मादा. इनमें मादा फूलों की संख्या अगर ज्यादा हो, तो फल ज्यादा बनते हैं और किसान को मुनाफा भी अधिक होता है. लेकिन अगर नर फूल ही अधिक आएं, तो फल बनने की संभावना कम हो जाती है और उत्पादन पर असर पड़ता है. नर फूल अक्सर गिर जाते हैं, जबकि मादा फूल से ही फल बनता है. इसलिए किसानों को फूलों की पहचान और अनुपात पर भी नजर बनाए रखनी चाहिए.
कौन-कौन सी हैं कद्दू वर्गीय सब्जियां?इन फसलों में खीरा, करेला, लौकी, तुरई, चंपन कद्दू, कद्दू और खरबूजा शामिल हैं. इनके लिए कुछ खास किस्में भी बाजार में उपलब्ध हैं जैसे –
खीरा के लिए: पूसा उदय, पूसा बरखा, पूसा लॉन्ग ग्रीन, पूसा गाइनोशियस हाइब्रिड-18
कद्दू के लिए: अरका चंपा, पूसा विशाल, कोइंबटूर कद्दू इत्यादि.
इनकी बुवाई गर्मी के मौसम में की जाती है और अच्छी जल निकासी वाली, थोड़ी अम्लीय और उपजाऊ मिट्टी इसमें बेहतर उत्पादन देती है.
बचाव भी उतना ही जरूरीबुवाई के बाद फसल को नियमित पानी देना जरूरी है, लेकिन अधिक पानी नुकसानदेह हो सकता है. शाम के समय सिंचाई करने से फसल को बेहतर नमी मिलती है, जबकि दोपहर में पानी देने से जड़ें कमजोर हो सकती हैं. साथ ही कीटों और बीमारियों से फसल को बचाना भी जरूरी है. इसके लिए जैविक और रासायनिक दोनों तरह के कीटनाशकों का प्रयोग विशेषज्ञ की सलाह से करना चाहिए.