उत्तर प्रदेश के बलिया में एक ऐसा पौधा मिला है, जिसे पहले लोग बेकार समझते थे, लेकिन अब यह सेहत का खजाना बन गया है। आयुर्वेदाचार्य डॉ. प्रियंका सिंह के अनुसार, ‘तिरुकैल्ली’ या ‘भद्राचूर’ खांसी, दर्द, अस्थमा और सर्पदंश जैसी बीमारियों में असरदार है। यह पौधा न सिर्फ इंसानों बल्कि पशुओं के लिए भी अमृत समान माना जाता है।
बलिया में अक्सर हमारे आसपास ऐसे कई असाधारण पौधे होते हैं, जिन्हें हम बेकार समझकर उखाड़ देते या फेंक देते हैं। लेकिन वही पौधे कभी-कभी संजीवनी साबित हो सकते हैं। ऐसी ही एक चमत्कारिक पौधा तिरुकैल्ली, जिसे भद्राचूर भी कहा जाता है। यह पौधा न केवल इंसानों के लिए बल्कि पशुओं के लिए भी फायदेमंद है। इसमें काफी मात्रा में दूध जैसा रस पाया जाता है।
आयुर्वेद में तिरुकैल्ली का महत्व
फेमस आयुर्वेदाचार्य डॉ. प्रियंका सिंह के अनुसार, आयुर्वेद में तिरुकैल्ली का विशेष महत्व है। यह दूधिया रस वाला पौधा होता है, जिसके हर हिस्से में औषधीय गुण पाए जाते हैं। इसके लेटेक्स (रस) का प्रयोग खांसी, जुकाम, अस्थमा, कान दर्द और दांत दर्द में किया जाता है। इसकी थोड़ी मात्रा में जूस लेने से दस्त की समस्या में राहत मिलती है।
इसके छिलके को पोटली में बांधकर फ्रैक्चर वाली जगह पर लगाने से दर्द और सूजन में काफी लाभ मिलता है, जिससे हड्डियों के जल्दी जुड़ने में मदद मिलती है। इसके जड़ का काढ़ा सर्पदंश (स्नेक बाइट) के इलाज में असरदार माना गया है। ग्रामीण इलाकों में जब किसी पशु को पेट की गड़बड़ी होती है, तो इसका उपयोग दवा की तरह किया जाता है, जो कुछ ही समय में असर दिखाता है। इस कारण इसे पशुओं के लिए अमृत कहा जाता है।
सावधानियां
इसे आंखों में नहीं डालना चाहिए। गर्भवती महिलाएं इससे दूर रहें। अत्यधिक मात्रा में लेने पर उल्टी, दस्त या सिर दर्द जैसी दिक्कतें हो सकती हैं। पहले जहां इसे बेकार समझकर जला दिया जाता था, अब लोग इसे घर के आसपास संभाल कर रख रहे हैं। सच कहा जाए तो प्रकृति ने हमारे आसपास कई जीवनीय पौधे दिए हैं, बस उनका सही उपयोग और विशेषज्ञ की सलाह आवश्यक है।

