कभी नवाबों का ‘लक्जरी ब्रांड’ रहा ये जूता आज मांग रहा एक मौका! यूपी के इस गांव में हुनर तो है, बस सहारा नहीं

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अमेठी: उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले में कई ऐसे गांव हैं, जो कभी अपनी खासियत और हुनर के लिए मशहूर है. भटगंवा गांव भी उन्हीं में से एक है, जो कभी नागरा जूतों के लिए जाना जाता था. यह जूते केवल पहनने के लिए नहीं, बल्कि गांव की शान और पहचान का प्रतीक थे. नवाब, बड़े अफसर और राजशाही लोग दूर-दूर से इन्हें लेने आते थे. लेकिन समय के साथ इस गांव की यह खास पहचान धीरे-धीरे फीकी पड़ती गई. बदलते दौर, बदलते लोगों की प्राथमिकताएं और नई फैशन प्रवृत्तियों ने इस पारंपरिक व्यवसाय को खत्म होने के कगार पर ला दिया.

नागरा जूतों की शुरुआत और महत्वअमेठी जिले के गौरीगंज तहसील के भटगंवा में करीब 50 साल पहले मुस्ताक और उनके परिवार ने इस कला की शुरुआत की थी. उन्होंने लगभग 47 साल तक इस परंपरा को बनाए रखा और अपने हुनर से पूरे इलाके में नाम कमाया. उनके बनाए जूते न केवल मजबूत और सुंदर होते थे, बल्कि उनकी डिजाइन और गुणवत्ता में कोई समझौता नहीं होता था. इसी वजह से नवाब और बड़े अफसर इन्हें पहनने में गर्व महसूस करते थे.

गांव के कई लोग भी इस व्यवसाय में शामिल हुए और धीरे-धीरे यह पूरे भटगंवा गांव की पहचान बन गया. लोग न केवल इसे बनाने में लगे रहते थे, बल्कि इसका कारोबार भी अच्छी आमदनी देने वाला था. दूर-दूर से लोग इन्हें खरीदने आते थे और पहनकर अपनी शान दिखाते थे.

बड़े अफसर और नवाबों की पसंदइस व्यवसाय की सबसे खास बात यह थी कि नवाब और बड़े अफसर इसे पहनते थे. यही वजह थी कि गांव में नागरा जूते का कारोबार इतना लोकप्रिय था. मेहनत के साथ-साथ पैसे की अच्छी आमदनी भी होती थी, जिससे यह गांव के लिए गर्व का विषय बन गया. यह जूते केवल सामान नहीं थे, बल्कि एक पहचान का प्रतीक थे.

लेकिन समय के साथ बदलाव आया. नए फैशन और आधुनिक जूतों की बढ़ती लोकप्रियता ने पुराने नागरा जूतों की मांग कम कर दी. इसके अलावा, व्यवसाय में लगे लोगों की उम्र और नए लोगों की कमी ने इसे धीरे-धीरे कमज़ोर कर दिया. आज इस व्यवसाय को करने वाले लोग बहुत ही कम रह गए हैं और कई बार गांव की इस कला की यादें ही बची हैं.

स्थानीय लोगों की यादें और चिंतागांव के बुजुर्ग बताते हैं कि अमेठी की शान रही इस कला की पहचान अब पूरी तरह से खत्म हो गई. कई बार कंपनियां आईं, लोगों को प्रशिक्षण दिया गया, लेकिन व्यवसाय फिर से रफ्तार नहीं पकड़ सका. एक बुजुर्ग ने कहा, “जूते हमारे गांव की शान थे. अब अगर थोड़ा प्रयास किया जाए तो रोजगार के अवसर भी बन सकते हैं.”

एक और स्थानीय निवासी ने कहा, “नागरा जूते अच्छी तरह बनते थे और इसकी पहचान दूर-दूर तक थी. अगर कारोबार फिर से शुरू हो जाए तो कम से कम लोगों को रोजगार तो मिलेगा और गांव की पहचान भी लौटेगी.”

व्यवसाय की वर्तमान स्थितिआज भटगंवा गांव में नागरा जूतों का कारोबार लगभग समाप्त हो चुका है. केवल गिने-चुने लोग ही इसे बनाते हैं, जो इसे जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं. पहले यह व्यवसाय गांव की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को मजबूत करता था, लेकिन अब इसके खत्म होने से गांव में इस कला की यादें ही रह गई हैं.

फिर भी गांव के लोग उम्मीद लगाए हुए हैं कि नागरा जूते का कारोबार फिर से शुरू होगा. इससे न केवल गांव की पहचान वापस आएगी, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे. यह सवाल है कि शुरुआत कब और कौन करेगा, लेकिन यह निश्चित है कि भटगंवा के लोग अपनी विरासत को फिर से जीवित करने के लिए तैयार हैं.
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गांव के लोग यह मानते हैं कि अगर व्यवसाय शुरू हो जाए तो युवा पीढ़ी को रोजगार मिलेगा, गांव की परंपरा जीवित रहेगी और भटगंवा एक बार फिर अपनी पहचान के लिए जाना जाएगा. यही वजह है कि गांव में उम्मीद की किरण अभी भी जिंदा है, और लोग इस कला को बचाने की दिशा में सक्रिय हैं.

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