कन्नौज की अनोखी खुशबू: शमामा इत्र की पारंपरिक पहचान
भारत की इत्र नगरी कन्नौज अपनी अनोखी खुशबुओं के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है. यहां बनने वाले पारंपरिक इत्रों में से एक “शमामा इत्र” का नाम सबसे खास है. यह इत्र न केवल अपनी गहरी और लंबे समय तक टिकने वाली खुशबू के लिए जाना जाता है, बल्कि इसके निर्माण की प्रक्रिया भी अत्यंत जटिल और पारंपरिक होती है, जो सदियों से चली आ रही है. कन्नौज के इत्र उद्योग में शमामा आज भी गर्व का प्रतीक माना जाता है. यह केवल एक खुशबू नहीं, बल्कि कन्नौज की संस्कृति, परंपरा और विरासत की पहचान है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों के दिलों में बसती आ रही है.
शमामा इत्र को बनाने की प्रक्रिया में करीब 40 से अधिक प्राकृतिक जड़ी-बूटियों, फूलों, मसालों और जड़ों का इस्तेमाल होता है. इनमें केसर, चंदन, खस, गुलाब, दालचीनी, लौंग, कपूर, नागरमोथा, और अगर जैसी चीजें शामिल हैं. इन सभी सामग्रियों को पारंपरिक डेग-भपका (हाइड्रो डिस्टिलेशन) पद्धति से पकाया जाता है. इस प्रक्रिया में कई दिन लग जाते हैं और इत्र को बसाने के लिए चंदन तेल का उपयोग किया जाता है, जिससे इसकी खुशबू और भी स्थायी हो जाती है. शमामा इत्र की खासियत यह है कि इसमें गर्माहट और गहराई होती है, इसलिए इसे विशेष रूप से सर्दियों के मौसम में पसंद किया जाता है. पुराने समय में इसे “राजसी इत्र” कहा जाता था क्योंकि नवाबों और रईसों के दरबार में इसका प्रयोग होता था. आज भी शमामा की मांग देश ही नहीं, बल्कि दुबई, सऊदी अरब, ईरान, फ्रांस और जापान तक फैली हुई है.
कन्नौज के इत्र कारोबारी निशीष तिवारी बताते हैं, “शमामा की पहचान उसकी पारंपरिक खुशबू है. इसमें न कोई केमिकल होता है और न ही अल्कोहल, इसलिए यह शरीर के लिए भी पूरी तरह सुरक्षित है. पुराने जमाने से इसे पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठानों और परफ्यूमरी के लिए खास माना जाता है. आज के आधुनिक युग में जब बाजार में सिंथेटिक परफ्यूम का बोलबाला है, तब भी शमामा इत्र अपनी प्राकृतिक और देसी पहचान बनाए हुए है. कई युवा उद्यमी भी अब इस पारंपरिक इत्र को नए रूप में पेश कर रहे हैं, आकर्षक पैकिंग और आधुनिक ब्रांडिंग के साथ लोगों को लुभा रहे हैं.”
शमामा इत्र की पारंपरिक पहचान और प्राकृतिक गुणों के कारण, यह आज भी दुनिया भर में अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है. यह इत्र न केवल अपनी खुशबू के लिए जाना जाता है, बल्कि इसके निर्माण की प्रक्रिया भी एक अद्वितीय और पारंपरिक तरीके से होती है. शमामा इत्र की मांग देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी है, जो इसकी पारंपरिक पहचान और प्राकृतिक गुणों को दर्शाती है.

