भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने पहली बार वर्ल्ड कप जीता है, जिसमें उन्हें शाबासी तो बनती है. भारत में महिला क्रिकेट ने लंबा सफर तय किया है, जिसकी शुरुआत लखनऊ से हुई थी. यह शहर भारतीय महिला क्रिकेट का जन्मदाता है, जहां से यह खेल देशभर में फैल गया. लखनऊ में ही भारतीय महिला क्रिकेट संघ (WCAI) की स्थापना हुई थी, जिसका मुख्यालय पहले लखनऊ में ही था. फिर इसका विलय भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) में हुआ, जिसके बाद इसका मुख्यालय मुंबई चला गया.
भारत में महिला क्रिकेट की औपचारिक शुरुआत महेंद्र कुमार शर्मा के प्रयासों से हुई थी. उन्होंने 1973 में सोसाइटीज एक्ट के तहत लखनऊ में भारतीय महिला क्रिकेट संघ (WCAI) की स्थापना की और इसका पंजीकरण कराया. इसने पहली राष्ट्रीय महिला क्रिकेट प्रतियोगिताओं के आयोजन में मदद की. महेंद्र कुमार शर्मा पहले उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ (UPCA) से जुड़े थे, लेकिन उन्होंने महिला खिलाड़ियों की संभावनाओं का अंदाजा था. उन्होंने लखनऊ में एक बैठक बुलाई, जिसमें दिल्ली, महाराष्ट्र, बंगाल और अन्य राज्यों की प्रतिनिधि महिलाएं शामिल हुईं. इसी बैठक में औपचारिक रूप से वूमन क्रिकेट एसोेसिएशन ऑफ इंडिया की स्थापना की गई.
हालांकि द एल्बीज़ नामक पहला महिला क्रिकेट क्लब, 1969 में मुंबई में आलू बामजी द्वारा स्थापित किया गया था, लेकिन महेंद्र कुमार शर्मा ने WCAI की स्थापना करके और इसके संस्थापक सचिव के रूप में कार्य करके इस खेल को राष्ट्रीय स्तर पर संस्थागत रूप दिया. शर्मा एक मिशन पर थे, जिसमें उन्होंने लखनऊ में स्कूल और कॉलेज की लड़कियों के लिए सॉफ्टबॉल और हैंडबॉल टूर्नामेंट आयोजित किए थे. 1973 में हैदराबाद में एक सॉफ्टबॉल टूर्नामेंट में, खिलाड़ियों ने सॉफ्टबॉल बैट से क्रिकेट खेलना शुरू किया था. ऐसा तब हुआ जब उनके छात्रों ने लड़कों को क्रिकेट खेलते देखा और उनकी रुचि इसमें बढ़ गई.
वर्ष 1975 में महेंद्र कुमार शर्मा ने महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप के साथ अपनी यात्रा शुरू की. सुप्रिता दास की किताब ‘फ्री हिट: द स्टोरी ऑफ़ विमेन्स क्रिकेट इन इंडिया’ के एक अध्याय में लिखा है, “उनके दिमाग में भारत में महिलाओं के लिए एक क्रिकेट संघ बनाने का विचार आ रहा था, लेकिन उससे पहले उन्हें हालात का जायज़ा लेना ज़रूरी था.” और इसके बाद उन्होंने स्थानीय स्तर पर एक महिला क्रिकेट टूर्नामेंट आयोजित किया. इसमें लोगों का उत्साह देखकर उन्होंने कई राज्यों को इस बात के लिए राजी कर लिया कि देश में महिला क्रिकेट के लिए अलग एसोसिएशन की जरूरत है, जिसे बनाया जाना चाहिए.
वूमन क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ इंडिया यानि WCAI ने 1973 में पहली महिला अंतर-राज्यीय राष्ट्रीय प्रतियोगिता का आयोजन किया, जो पूरे भारत में महिला क्रिकेट को बढ़ावा देने और संगठित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था. महेंद्र कुमार शर्मा को देश में महिला क्रिकेट को एक संगठित खेल के रूप में शुरू करने वाले मुख्य संस्थापक के रूप में श्रेय दिया जाता है. वह उद्यमी भी थे और खेल प्रशासक भी. वैसे ये बात सही है कि महेंद्र शर्मा और लखनऊ को महिला क्रिकेट को शुरू करने का जो श्रेय मिलना चाहिए, वो कभी नहीं मिला.
पहला अंतरराष्ट्रीय टूर 1976 में किया गया था, जब WCAI की पहली अध्यक्ष हमीदा हबीबुल्लाह बनीं. फिर चंद्रा त्रिपाठी और प्रेमला चव्हाण इस भूमिका में शामिल हुईं. भारतीय महिला टीम ने अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय टेस्ट मैच 1976 में खेला, जिससे शर्मा और डब्ल्यूसीएआई की कोशिश और रंग लाई. डब्ल्यूसीएआई को 1973 में अंतर्राष्ट्रीय महिला क्रिकेट परिषद (आईडब्ल्यूसीसी) की सदस्यता मिली थी. 1978 में सरकारी मान्यता हासिल हुई थी.
लंबे समय तक महिला क्रिकेट का हेडक्वार्टर लखनऊ में रहा था, लेकिन अब तो बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि वर्ष 2006 तक भारतीय महिला क्रिकेट टीम की घोषणा और सेलेक्शन लखनऊ से ही होता था, क्योंकि लखनऊ शहर ही उसका मुख्यालय था. 1973-74 में ही लखनऊ ने पहली नेशनल वुमेन्स क्रिकेट चैम्पियनशिप की मेजबानी की थी, जिसमें देश के कई राज्यों की टीमें शामिल हुईं. यह वही मंच बना जिसने भारतीय महिला क्रिकेट के पहले सितारे दिए — जैसे डायना एडुलजी, शांता रंगास्वामी, अंजुम चोपड़ा. आज हरमनप्रीत कौर, स्मृति मंधाना, जेमिमा, शैफाली और दीप्ति शर्मा जैसी खिलाड़ी इसे चमक दे रही हैं.
WCAI ने ही लखनऊ से काम करते हुए भारत की पहली महिला क्रिकेट टीम का गठन किया था. यह टीम 1976 में वेस्टइंडीज के खिलाफ खेलने गई थी. हालांकि लखनऊ से बहुत कम खिलाड़ी भारतीय टीम में गईं, लेकिन इस शहर ने महिला क्रिकेट को संगठित करने वाली प्रशासनिक और सामाजिक शक्ति तो दी ही.
महिला क्रिकेट संघ का विलय बीसीसीआई में 2006 में हुआ था, जब BCCI ने महिला क्रिकेट का विलय खुद में किया था. इसके बाद इसका मुख्यालय मुंबई चला गया और तब से महिला क्रिकेट का प्रशासन और संचालन बीसीसीआई ही करता है. इससे महिला क्रिकेट को काफी उछाल भी मिली.
महिला क्रिकेट तब नवाब साहब के कारण भी जिंदा रह पाई थी. महेंद्र कुमार शर्मा के साथ जिस शख्स का महिला क्रिकेट को जिंदा रखने में नाम लेना चाहिए, वो लखनऊ के मोहम्मद नवाब हैं, जिन्होंने कई सालों तक भारतीय महिला क्रिकेट के लिए प्रतिकूल हालात में भी फंड का इंतजाम किया था. कभी कभी जब फंड का टोटा पड़ जाता था तो अपने जेब से पैसा देते थे. इस बात की तस्दीक वरिष्ठ खेल पत्रकार सौरभ चतुर्वेदी और भारतीय महिला क्रिकेट टीम की एक पूर्व सदस्य भी करती हैं.
वह बताती हैं कि कई बार ये अवसर आता था कि जब टीम को कहीं जाना होता था तो ट्रेन के किराए के लिए पैसे की कमी हो जाती थी, तब नवाब साहब अपनी जेब से पैसा लगा देते थे. तब नवाब साहब के चलते देश में कई जगहों पर महिला क्रिकेट प्रतियोगिताएं, सीनियर चैंपियनशिप आयोजित हुई थी. नवाब साहब शिष्ट और महिला क्रिकेट के प्रति समर्पित थे. नवाब साहब के समय जो महिलाएं यूपी से खेलती थीं वही महिला क्रिकेट एसोसिएशन के बीसीसीआई में मिलने के बाद उत्तर प्रदेश से खेलीं. जैसे प्रीति डिमरी, एकता बिष्ट, इत्ती चतुर्वेदी, प्रियंका शैली, अपराजिता बंसल और अन्य खिलाड़ी. नवाब साहब ने अपने अंतिम समय तक उत्तर प्रदेश की महिला क्रिकेट को भी जिंदा रखा था।
भारतीय रेलवे का योगदान भी कम नहीं था. इस आधार पर लखनऊ को “भारतीय महिला क्रिकेट का जन्मदाता” कहना ही चाहिए. भारतीय रेलवे ने 70 के दशक से ही महिला क्रिकेटरों को नौकरी और वूमन क्रिकेट को वित्तीय समर्थन देना शुरू किया था. ये भारतीय रेलवे ही जब महिला क्रिकेट फंड के लिए जूझ रही थी, तब उसने उसको स्पांसर करना शुरू किया था. अगर रेलवे ने महिला क्रिकेटरों को नौकरी देकर उनका खेलते रहना सुनिश्चित नहीं किया होता तो महिलाओं की क्रिकेट का यहां तक आना बहुत मुश्किल था. तब भी रेलवे भारतीय क्रिकेट टीम को एसी कोच में चलने की सुविधा देती थी. रेलवे ने पहला अंतर रेलवे महिला क्रिकेट टूर्नामेंट शुरू किया था. ये संस्थान ना केवल देशभर से अच्छी महिला क्रिकेट प्रतिभाओं की नियुक्ति करता था, बल्कि उन्हें ट्रेनिंग भी देता था.

