उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में स्थित मां संकटा देवी का प्राचीन मंदिर धार्मिक आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यह मंदिर न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि पौराणिक इतिहास और श्रद्धा का एक अद्वितीय संगम भी है। माना जाता है कि इस पवित्र स्थल की स्थापना भगवान श्रीकृष्ण ने ही की थी, जिसके कारण यहां सदियों से भक्तों का सैलाब उमड़ता आ रहा है।
नवरात्रि हो या कोई शुभ अवसर, दूर-दूर से लोग यहां माता के दर्शन करने, मनोकामनाएं मांगने और पूर्ण होने पर मुंडन संस्कार कराने के लिए आते हैं। यह मंदिर आज भी लाखों श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का प्रतीक बना हुआ है। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में शहर के मध्य स्थित माता संकटा देवी का यह प्राचीन मंदिर आस्था का एक बड़ा केंद्र माना जाता है।
दूर-दूर से श्रद्धालु यहां अपनी मनोकामना लेकर आते हैं और पूर्ण होने पर माता के दरबार में मुंडन संस्कार करवाते हैं। नवरात्रि के दिनों में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है, जब लाखों भक्त माता संकटा देवी की पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस मंदिर में माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित है, जिसके नाम पर इस स्थान को पहले लक्ष्मीपुर कहा जाता था, जो समय के साथ लखीमपुर बन गया।
शहर के चार प्रमुख शक्ति पीठों में संकटा देवी मंदिर का विशेष स्थान है। मान्यता के अनुसार, महाभारत युद्ध के बाद रुक्मिणी की इच्छा पर पशुपतिनाथ जाते समय स्वयं श्रीकृष्ण ने इस मंदिर की स्थापना की थी। पौराणिक मंदिर होने के कारण इसकी वास्तुकला भी लगभग हजार साल पुराने मंदिरों की शैली से मिलती-जुलती है।
इसका विशाल परिसर भक्तों के बैठने और आराम से दर्शन करने के लिए पर्याप्त जगह प्रदान करता है। मां संकटा देवी का यह प्राचीन मंदिर न केवल लखीमपुर खीरी, बल्कि आसपास के जिलों के लाखों लोगों की आस्था और श्रद्धा का प्रमुख केंद्र है। संकटा देवी मंदिर जिस क्षेत्र में स्थित है, उस मोहल्ले का नाम भी संकटा देवी ही है।
यहां स्थापित प्राचीन देवी प्रतिमा के प्रति लोगों में गहरी आस्था है। मान्यता है कि मां संकटा देवी की उपासना करने से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं और भक्तों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मां संकटा देवी की आराधना के बाद लोग यहां से अपने शुभ कार्यों की शुरुआत करते हैं।
विवाह के उपरांत नवदंपत्ति को भी मां के दर्शन कराने के बाद ही घर में प्रवेश कराया जाता है। मान्यता है कि मां संकटा देवी की यह प्राचीन प्रतिमा भगवान श्रीकृष्ण द्वारा स्थापित की गई थी। महाभारत युद्ध के बाद भगवान कृष्ण, रुक्मिणी और पांडव जब पशुपतिनाथ दर्शन के लिए जा रहे थे, तब वे इसी मार्ग से होकर गुज़रे थे और यहीं पर इस पावन प्रतिमा की स्थापना की गई थी।
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि रमणीय वन क्षेत्र को देखकर रुक्मिणी ने यहीं कुछ समय ठहरने की इच्छा जताई थी। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें यहां प्रवास की अनुमति दी और स्वयं पांडवों के साथ पशुपतिनाथ दर्शन के लिए नेपाल की ओर प्रस्थान कर गए। लौटते समय भगवान कृष्ण ने महालक्ष्मी की पाषाण प्रतिमा बनाकर यहां स्थापित किया और पांडवों के साथ मिलकर उनकी विधिवत पूजा-अर्चना भी की।

