जीन थेरेपी से जन्मजात बहरापन का इलाज, 30 दिन में सुनने की समस्या हो सकती है ठीक

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जीन थेरेपी से जन्मजात बहरापन का इलाज, 30 दिन में सुनने की समस्या हो सकती है ठीक



बहरापन या गंभीर सुनने की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए एक नई उम्मीद सामने आई है. वैज्ञानिकों ने एक नई जीन थेरेपी विकसित की है, जो जन्मजात सुनने की समस्या को ठीक करने में बेहद कारगर साबित हुई है. स्वीडन और चीन के शोधकर्ताओं की टीम द्वारा की गई इस रिसर्च में 1 से 24 साल की उम्र के 10 मरीजों को शामिल किया गया. इन सभी मरीजों में ओटीओएफ (OTOF) जीन में म्यूटेशन था, जो ओटोफेर्लिन नामक प्रोटीन की कमी का कारण बनता है. यह प्रोटीन ध्वनि को कान से दिमाग तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाता है.
ये स्टडी जर्नल नेचर मेडिसिन में प्रकाशित हुई है, और इसके नतीजे बहरेपन के इलाज में एक बड़ी उम्मीद की तरह देखे जा रहे हैं. शोधकर्ताओं ने मरीजों के कान के भीतर एक खास सिंथेटिक वायरस (एएवी) की मदद से जीन थेरेपी दी. इस वायरस के जरिए सही वर्जन वाला ओटीओएफ जीन सीधे कान के भीतर ‘कोक्लिया’ नामक हिस्से तक पहुंचाया गया. इंजेक्शन ‘राउंड विंडो’ नामक झिल्ली से लगाया गया, जिससे थेरेपी सीधे उस स्थान तक पहुंची जहां इसकी सबसे अधिक जरूरत थी.
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एक महीने में ठीक हुए कान
शोधकर्ताओं के मुताबिक इस थेरेपी का असर तेजी से दिखा. सिर्फ एक महीने के भीतर अधिकांश मरीजों की सुनने की क्षमता में सुधार हुआ. छह महीने बाद हुए फॉलोअप में सभी मरीजों की हालत पहले से बेहतर पाई गई. औसतन मरीज अब 106 डेसिबल की ध्वनि सुनने में सक्षम हो गए, जो पहले की तुलना में लगभग 52 डेसिबल का सुधार था.
कम उम्र के मरीजों में सक्सेस रेट हाई
इस शोध की सबसे खास बात यह रही कि 5 से 8 साल की उम्र के बच्चों में इसका सबसे अच्छा असर देखा गया. सात साल की एक बच्ची ने चार महीने के अंदर लगभग पूरी सुनने की क्षमता हासिल कर ली और अब वह अपनी मां से आराम से बातचीत कर रही है. वयस्क मरीजों में भी यह थेरेपी असरदार साबित हुई, जिससे उम्मीद की जा रही है कि यह इलाज हर उम्र के लोगों के लिए कारगर हो सकता है.
जीन थेरेपी असरदार और सुरक्षित
रिसर्च को लीड कर रहे स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञ माऊली दुआन ने कहती हैं कि यह बहरेपन के जेनेटिक इलाज की दिशा में एक बड़ा कदम है. यह तकनीक मरीजों की पूरी जिंदगी बदल सकती है. शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि यह थेरेपी पूरी तरह से सुरक्षित है और मरीजों के शरीर ने इसे अच्छी तरह से सहन किया. 
स्टडी का अगला स्टेप
अब इस रिसर्च टीम की योजना इन मरीजों पर लंबे समय तक नजर रखने की है, ताकि यह जाना जा सके कि थेरेपी का असर कितने समय तक बना रहता है. उम्मीद है कि भविष्य में जन्मजात बहरापन अब कोई लाइलाज बीमारी नहीं रहेगा और लाखों लोगों को इससे राहत मिल सकती है.
एजेंसी



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