उत्तर प्रदेश के जौनपुर में विजयादशमी के अवसर पर 247 वर्षों से चली आ रही शाही परंपरा इस बार भी पूरे गौरव और गरिमा के साथ निभाई गई। रियासत की हवेली में नरेश कुंवर अवनींद्र दत्त द्वारा वैदिक विधि-विधान से शस्त्र पूजन किया गया और दरबार में दरबारियों से प्रतीकात्मक ‘नज़राना’ लेकर वर्षों पुरानी लगान परंपरा को जीवित रखा गया।
जौनपुर की शाही हवेली एक बार फिर इतिहास और परंपरा की जीवंत मिसाल बन गई। दरबार हॉल में आयोजित इस राजसी आयोजन में नरेश कुंवर अवनींद्र दत्त ने शस्त्र पूजन कर न केवल सदियों पुरानी परंपरा को निभाया, बल्कि दरबारियों से “नजराना” लेकर प्रतीकात्मक रूप से उस दौर को भी दोहराया जब लगान वसूली एक राजकीय परंपरा हुआ करती थी।
शस्त्र पूजन और शाही गरिमा वैदिक मंत्रोच्चार और धार्मिक विधि-विधान के बीच, राजपुरोहित पं. जनार्दन मिश्र और पांच अन्य आचार्यों की मौजूदगी में शस्त्र पूजन सम्पन्न हुआ। 12वें नरेश कुंवर अवनींद्र दत्त परंपरागत राजसी पोशाक में दरबार में विराजमान हुए। शहर के प्रतिष्ठित नागरिक, व्यापारी, और बुद्धिजीवी वर्ग इस आयोजन में मौजूद रहे। साफा, काली कोट और पारंपरिक पोशाकों में आए मेहमानों ने माहौल को शाही आभा से भर दिया।
247 वर्षों से चली आ रही परंपरा इतिहासकारों के अनुसार, जौनपुर में शस्त्र पूजन की परंपरा वर्ष 1778 में प्रथम नरेश राजा शिवलाल दत्त द्वारा शुरू की गई थी। इसके बाद यह परंपरा हर वर्ष विजयादशमी और नवरात्र के साथ जुड़कर जिले की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर बन गई। इस वर्ष यह आयोजन 247वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है।
रामलीला और मेले की परंपरा भी जुड़ी डॉ. अखिलेश्वर शुक्ल, राज डिग्री कॉलेज के पूर्व प्राचार्य, बताते हैं कि 1845 में रामलीला और 1848 में पोखरे पर विशाल मेला शुरू किया गया था। यह रामलीला वाराणसी के रामनगर की तर्ज पर होती थी, जिसमें युद्ध, रावण दहन और राजतिलक के भव्य दृश्य प्रस्तुत किए जाते हैं।
लगान से नजराने तक का सफर पहले विजयादशमी के दिन राजा दरबार लगाकर प्रजाजनों और जमींदारों से लगान वसूलते थे। यह केवल आर्थिक लेन-देन नहीं, बल्कि राजशक्ति और परंपरा का प्रतीक होता था। अब यह परंपरा प्रतीकात्मक रूप से “नज़राने” में बदल गई है- लोग आज भी दरबार में पहुंचकर नरेश को भेंट चढ़ाकर अपनी श्रद्धा और परंपरा का निर्वाह करते हैं।
संस्कृति की शाही धरोहर शाही हवेली में सजा दरबार हॉल, मंत्रोच्चार से गूंजता वातावरण और श्रद्धा से भरे दरबारी… यह सब इतिहास को वर्तमान में जीवंत करने का एहसास कराता है। इतिहासकार मानते हैं कि यह आयोजन धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक चेतना और सामाजिक एकजुटता का अनुपम संगम है।
राजसी परंपरा का अद्वितीय संगम आज भले ही कई संस्थाएं और परिवार शस्त्र पूजन करते हों, लेकिन जौनपुर रियासत की हवेली में होने वाला यह आयोजन अपनी शाही गरिमा, इतिहासिकता और परंपरागत अनुशासन के लिए अनूठा है। लगान से नज़राना, रामलीला से शस्त्र पूजन तक यह आयोजन अतीत की परंपरा और वर्तमान की सांस्कृतिक विरासत को जोड़ने वाला अद्वितीय पर्व बन चुका है।