Uttar Pradesh

जौ, जई, राई…ऐसी फसलें जो खेत के लिए वरदान, मिट्टी में फूंक देती हैं जान, ये फार्मूला खरपतवारों का जानी दुश्मन

मिट्टी की सेहत को बनाए रखने के लिए कवर क्रॉप का महत्त्व

अलीगढ़. लगातार खेती के कारण मिट्टी की सेहत बिगड़ रही है. ऐसा किसानों के लिए खतरनाक है. आने वाले समय में समस्या और बढ़ेगी. इसे अभी रोकना होगा, वरना मामला हाथ से निकल जाएगा. कुछ तरीके हैं जो खेती करते हुए भी मिट्टी की सेहत बनाए रखते हैं. लोकल 18 ने इस बारे में कृषि एक्सपर्ट से बात की.

खेती के कारण लगातार हो रहे मिट्टी के क्षरण और स्वास्थ्य में गिरावट खतरनाक होती जा रही है. इसे रोकने के लिए कृषि विशेषज्ञ ‘कवर क्रॉप’ या आवरण फसल को अनिवार्य बता रहे हैं. ये फसलें मुख्य फसल की कटाई के बाद या खाली समय में जमीन को ढकने के लिए बोई जाती हैं, जो मिट्टी के कटाव को कम करती हैं और उसकी समग्र सेहत में सुधार लाती हैं. ये न केवल खरपतवारों को दबाती हैं, बल्कि पानी के ठहराव को सुनिश्चित कर जैव विविधता का भी समर्थन करती हैं.

कवर क्रॉप का अर्थ ऐसी फसल से है, जो जमीन को प्राकृतिक रूप से ढककर उसकी रक्षा करती है. पादप रोग वैज्ञानिक डॉ. ओंकार सिंह कृषि विज्ञान केंद्र गाजीपुर के अनुसार, आवरण फसलें मुख्य फसल के बीच के समय में लगाई जाती हैं. इनका सबसे बड़ा काम मिट्टी की ऊपरी परत को कटाई और बहाव से बचाना है. जब खेत खाली रहता है, तो वाष्पीकरण के कारण मिट्टी पर एक ठोस परत बन जाती है, जिससे बारिश का पानी जमीन में नहीं टिकता. कवर क्रॉप इसी प्रक्रिया को रोककर मिट्टी में पानी के टिकाव को बढ़ाती है.

पूर्वी उत्तर प्रदेश जैसे सघन खेती वाले क्षेत्रों में, जहां सालों भर खेती होती है, कवर क्रॉप का महत्त्व और भी बढ़ जाता है. पारंपरिक रूप से यहां कई फसलें आवरण फसल के तौर पर प्रचलित हैं. डॉक्टर सिंह ने दलहनी फसलों और ग्रीन मैन्योर क्रॉप्स को प्राथमिकता देने का सुझाव दिया. इस क्षेत्र में दलहनी फसलें जैसे चना, मटर और सनई जैसी हरी खाद की फसलें लगाई जाती हैं. जौ, जई, राई और मूली को भी ऑफ-सीजन में उगाया जाता है, जो कटाव को रोकने के साथ-साथ अगली फसल के लिए पोषक तत्वों की उपलब्धता सुनिश्चित करती हैं।

कवर क्रॉप्स किसानों को तात्कालिक लाभ न देते हुए भी, दीर्घकालिक स्थिरता प्रदान करती हैं: ये फसलें नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करती हैं और पोषक तत्वों को मिट्टी में संरक्षित रखती हैं. ये जमीन को सख्त होने से रोककर जल संचयन और बेहतर जल निकासी में मदद करती हैं. खरपतवारों और कीटों को नियंत्रित करके ये रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर निर्भरता को कम करती हैं. मिट्टी की सेहत सुधरने से मुख्य फसल की पैदावार में स्वतः ही सुधार होता है, जिससे किसानों का आर्थिक लाभ बढ़ता है.

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