अलीगढ़ में घर की दीवारों पर तस्वीर लगाना इस्लाम में जायज़ है या नाजायज़?
आज के दौर में घरों की सजावट में तस्वीरों और पेंटिंग्स का क्रेज़ तेजी से बढ़ गया है, लेकिन मुस्लिम समाज में अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या इस्लाम में घर की दीवारों पर तस्वीरें लगाना जायज़ है या नहीं। इस मुद्दे पर हमने अलीगढ़ के मशहूर मुफ्ती मौलाना इफराहीम हुसैन से खास बातचीत की।
मौलाना ने तस्वीर लगाने को लेकर इस्लामी नज़रिया बताया। उन्होंने बताया कि इस्लाम में तस्वीर बनाना या लगाना, अगर जानवरों या इंसानों की हो, तो उसे नाजायज और हराम माना गया है। क्योंकि इस्लाम में किसी भी ऐसी चीज़ की तस्वीर बनाने या लगाने के लिए सख्त मना किया गया है, जिसमें जान हो या जान रही हो।
लेकिन हाँ, अगर तस्वीर किसी ज़रूरत या सामाजिक उद्देश्य के लिए हो जैसे पासपोर्ट, सरकारी दस्तावेज़ या किसी जरूरी काम के लिए तो ऐसी तस्वीर की इजाज़त है और वह जायज़ मानी जाती है। ऐसे मामलों में इस्लाम में तस्वीर की इजाज़त है।
मौलाना हुसैन ने कहा कि इस्लाम में “मुजस्समा” यानी जीवित प्राणी की मूर्ति या तस्वीर बनाना और उसे सजावट के तौर पर घर या ऑफिस में लगाना हराम है। लेकिन अगर घर की सजावट के लिए एब्स्ट्रैक्ट पेंटिंग या बिना किसी जीव-जंतु या इंसान की तस्वीर वाली कलाकृतियाँ लगाई जाएं, तो उसकी इस्लाम में इजाज़त है। ऐसी तस्वीरें इस्लाम के दायरे में गलत नहीं मानी जातीं।
मौलाना ने कहा कि मुसलमानों को चाहिए कि जिस काम की इजाजत अल्लाह ने और हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नहीं दी और जो कुरान और हदीस से साबित नहीं है ऐसे कामों को न करें। क्योंकि ऐसा कोई भी काम करने की इस्लाम में सख्त मनाही है, हराम है।