Uttar Pradesh

Independence Day Story : एक या दो नहीं…133 वीरों की शहादत का गवाह, यहां पहुंचते ही कांपने लगती रूह, रोगटें खड़े हो जाते हैं!

Last Updated:August 15, 2025, 05:29 ISTIndependence Day Story : इसने अनगिनत वसंत और पतझड़ देखे. वह दिन भी देखा जब मेरठ में आजादी की चिंगारी सुलगी. तात्या टोपे की वीरता और लक्ष्मीबाई का बलिदान देखा. 133 वीरों की फांसी का गवाह रहा.कानपुर. मैं केवल जड़, तना और पत्तियों का वट वृक्ष नहीं हूं. गुलाम भारत से आज तक के इतिहास का साक्षी भी हूं. अनगिनत वसंत और पतझड़ देखा. 4 जून 1857 का वह दिन भी देखा जब मेरठ से सुलगी आजादी की चिंगारी कानपुर में शोला बन गई. मैंने नाना साहब की अगुवाई में तात्या टोपे की वीरता, रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान देखा. अजीमुल्ला खान की शहादत मुझे आज भी याद है. वह दिन भी याद है जब बैरकपुर छावनी में मेरे सहोदर पर लटका कर क्रांति के अग्रदूत मंगल पांडे को फांसी दी गई. वह दिन भी याद है 133 देशभक्तों को अंग्रेजों ने मेरी ही शाखों पर फांसी के फंदे पर लटका दिया. ये कहानी कानपुर के बूढ़े बरगद की है. पत्थर पर उकेरे शब्द कहते हैं कि यहां वीर क्रांतिकारियों को मौत के घाट उतारा गया.

अत्याचार ही अत्याचार

यह वही बूढ़ा बरगद है, जिसकी मजबूत शाखाओं पर 133 स्वतंत्रता सेनानियों को लटका दिया गया था. ये पंक्तियां कानपुर के नाना राव पार्क में लगे स्मारक पत्थर की हैं, जो हमें आज़ादी की सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक की याद दिलाती हैं. कानपुर के फूलबाग पार्क में कभी एक विशाल बरगद खड़ा था, जिसे लोग ‘बूढ़ा बरगद’ कहते थे. यह सिर्फ एक पेड़ नहीं था, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों का साक्षी था. 1857 की क्रांति के बाद, अंग्रेजों ने यहां पकड़े गए क्रांतिकारियों को लाकर फांसी दी. कहा जाता है कि 133 वीर इस बरगद की शाखाओं पर झूलते हुए शहीद हुए.

बना डाला फांसीघरअंग्रेज इस बरगद की शाखाओं पर फंदा डालकर स्वतंत्रता सेनानियों को लटका देते थे. उस दौर में यह जगह लोगों के दिलों में डर भरने के लिए इस्तेमाल की जाती थी. चारों ओर सैनिक पहरा देते थे और दूर-दूर से लोग इन घटनाओं को देखकर सिहर उठते थे. लेकिन अंग्रेजों का यह क्रूर तरीका भी भारतीयों की आज़ादी की चाह को खत्म नहीं कर पाया. बल्कि इसने क्रांतिकारियों के जोश को और बढ़ा दिया. समय और लापरवाही के चलते यह ऐतिहासिक वृक्ष सूख गया. 2010 में अखबारों ने इसकी बिगड़ती हालत पर खबरें छापीं, लेकिन हुआ कुछ नहीं. हालांकि, इसकी जगह पर लगे स्मारक पत्थर और आसपास बनाया गया संरक्षित क्षेत्र आज भी लोगों को बूढ़े बरगद की याद दिलाते हैं. यह हमें सिखाते हैं कि स्वतंत्रता की रक्षा करना उतना ही जरूरी है, जितना उसे पाना.न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।Location :Kanpur Nagar,Uttar PradeshFirst Published :August 15, 2025, 05:08 ISThomeuttar-pradeshएक या 2 नहीं…133 वीरों की शहादत का गवाह, यहां आते ही खड़े हो जाते हैं रोगटें

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