बुंदेलखंड की महिलाएं जो आज प्रधानमंत्री मोदी के फैन हैं, उनकी कहानी दशकों पुरानी है. ये महिलाएं जो आज संयुक्त राष्ट्र में अपनी बात रखती हैं, उनकी यात्रा आसान नहीं थी. इन्होंने अपनी राह खुद बनाई और अपने बलबूते बुंदेलखंड में पानी के स्रोतों को जिंदा करते हुए उन्हें फिर से भर दिया.
बुंदेलखंड के सभी सातों जिलों में पानी की बूंद-बूंद को लेकर महिलाओं के संघर्ष की तमाम किस्से पूरे देश में चर्चा का विषय बने. बुंदेलखंड की महिलाएं पानी के इंतजाम को लेकर कई-कई किलोमीटर तक पैदल चलने को मजबूर हुईं. पानी को लेकर महिलाओं के संघर्ष की कहानी नई नहीं. घरेलू कामकाज से ज्यादा बुंदेलखंड की महिलाओं के लिए पानी का इंतजाम करना जरूरी माना जाता था. पानी की समस्या तब और विकराल हो जाती थी जब भीषण सूखे के हालात बने. धीरे-धीरे समय बदला, हालात बदलने लगे. केंद्र और प्रदेश सरकार ने बुंदेलखंड में पानी की किल्ल्त को दूर करने के लिए तमाम बड़ी-बड़ी परियोजनाओं की शुरुआत कीं.
जल जीवन मिशन के तहत हर-हर-घर नल से जल परियोजना शुरू की गई. जल जीवन मिशन के तहत शुरू की गई हजारों करोड़ रुपये की परियोजना का बुंदेलखंड में जबरदस्त असर दिखा. यहां की महिलाओं की दशकों पुरानी पीड़ा तब दूर हो गई जब इन महिलाओं के घरों में नल से पानी आने लगा. महिलाओं का पानी की तलाश में कई-कई किलोमीटर तक भटकना अब लगभग बंद हो चुका है. यह तो सरकारी इंतजामों की बात थी. अब बताते हैं आपको उन महिलाओं के बारे में जिन्होंने अपने बलबूते बुंदेलखंड में पानी के स्रोतों को जिंदा करते हुए उन्हें फिर से भर दिया.
झांसी जिले में भी जल संकट कई दशकों तक बरकरार रहा. खासतौर से बबीना ब्लॉक डार्क जोन में कई दशकों तक रहा. बबीना ब्लॉक के अंतर्गत एक गांव आता है सिमरावारी. इस गांव की रहने वाली दो महिलाएं मीरा और मीना हैं. इन दोनों महिलाओं के गांव में पानी का बहुत बड़ा संकट था. गांव की महिलाएं कई-कई किलोमीटर पानी की तलाश में भटकने को मजबूर थीं. मीरा और मीना ने अपने गांव में पानी के संकट को दूर करने की कोशिश शुरू की. इन दोनों ने घरों की दहलीज को लांघकर एक ऐसे संगठन से जुड़ीं, जो कई सालों से पानी पर काम कर रहा था. मीरा और मीना ने इस संगठन से जुड़कर पानी बचाने के तौर तरीकों को समझा. मीरा और मीना ने गांव में पानी के सबसे बड़े स्रोत तालाब को अपनी मेहनत के बलबूते साफ किया. तालाब को गहरा भी किया. इन दोनों को काम करते देखे दूसरी महिलाएं भी बाहर आईं. मीरा और मीना को जल सहेली के नाम से बुलाया जाने लगा. झांसी की इन दोनों जल सहेलियों ने जल संरक्षण के लिए एक बार काम करना क्या शुरू किया तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा.
बबीना विकासखंड की रहने वाली दोनों महिलाओं ने अपने संगठन ‘जल सहेली’ में कई और महिलाओं को शामिल किया. इसके बाद घुरारी नदी को दोबारा जिंदा करने के लिए 6 दिनों तक श्रमदान किया. सैकड़ों जल सहेलियों ने नदी को साफ किया. मानसून की बारिश हुई और नदी का जलस्तर बढ़ गया. जल सहेलियों ने सैकड़ों बोरियों में बालू भरकर पहले चेक डैम बनाया. बारिश का पानी इन चेक डेमो में रुका, जिसके बाद नदी पानी से लबालब भर गई. दो जल सहेलियों से शुरू हुए इस संगठन में अब हजारों जल सहेलियां काम कर रही हैं. झांसी की जल सहेलियों की कहानी का जिक्र प्रधानमंत्री मोदी अपने मन की बात कार्यक्रम में भी कर चुके हैं. इन जल सहेलियों ने जल संरक्षण के क्षेत्र में अपने अनुभव को संयुक्त राष्ट्र में भी साझा किया.

