Hypertension and Pregnancy: प्रेग्नेंसी के दौरान हाई ब्लड प्रेशर, जिसमें प्रीक्लेम्पसिया (Preeclampsia) और जेस्टेशनल हाइपरटेंशन (Gestational Hypertension) जैसे मेडिकल कंडीशंस शामिल हैं, ये भारत में एक बड़ा पब्लिक हेल्थ कंसर्न बन चुका है. ये प्रेग्नेंट महिलाओं के शरीर के एक बड़े हिस्से को अफेक्ट करता है, स्टडीज से पता चलता है कि 8-10% महिलाओं को प्रीक्लेम्पसिया का एक्सपरीएंस होता है. गर्भावस्था में हाइपरटेंसिव डिसऑर्डर (HDP) की ओवरऑल प्रिवेलेंस तकरीबन 11% है.
प्रेग्नेंसी में एक नहीं कई तरह के हाइपरटेंशन
डॉ. मंजुषा गोयल (Dr. Manjusha Goel), लीड कंसल्टेंट, ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी, सीके बिरला हॉस्पिटल, दिल्ली ने बताया कि जब कोई महिला प्रेग्नेंट होती है, तो उसे कई तरह के हाइपरटेंशन का खतरा हो सकता है.
1. क्रोनिक हाइपरटेंशन (Chronic Hypertension): प्रेग्नेंसी से पहले मौजूद हाई बीपी या गर्भावस्था के 20 हफ्ते से पहले डायग्नोज किया गया हो.
2. जेस्टेशनल हाइपरटेंशन (Gestational Hypertension): प्रेग्नेंसी के 20 सप्ताह के बाद बिना किसी ऑर्गन डैमेज के लक्षणों के डेवलप होता है.
3. प्रीक्लेम्पसिया (Preeclampsia): एक पोटेंशियल तरीके से जानलेवा कंडीशन जो हाई बीपी और अंगों, खास तौर से लिवर और किडनी को नुकसान पहुंचा सकती है.
4. एक्लेम्पसिया (Eclampsia): प्रीक्लेम्पसिया की एक सीरियस प्रोग्रेसन है, जिसमें दौरे पड़ते हैं और ये मां और बच्चे दोनों के लिए जानलेवा हो सकता है.
हालांकि क्रोनिक हाइपरटेंशन इतना कॉमन नहीं है, फिर भी ये प्रेग्नेंसी के दौरान हाइपरटेंसिव डिसऑर्डर के ओवरऑल बर्डेन बढ़ाने में अहम रोल अदा करता है.
मां और बच्चे दोनों के लिए खतरनाकप्रेग्नेंसी के दौरान हाई बीपी सीरियस कॉम्पलिकेशंस का कारण बन सकता है. मां के लिए, ये स्ट्रोक, प्लेसेंटल एबॉर्शन (गर्भनाल का समय से पहले अलग होना) और ऑर्गन डैमेज के रिस्क को बढ़ाता है. बच्चे के लिए, यह इंट्रायूटेराइन ग्रोथ रेस्ट्रिक्शन (IUGR), प्रिमैच्योर बर्थ, लो वेट बर्थ और गंभीर मामलों में, स्टिलबर्थ (मृत बच्चा पैदा होना) का कारण बन सकता है. इन खतरनाक नतीजों को रोकने के लिए शुरुआती लक्षणों को पहचान और लगातार निगरानी रखना जरूरी है.
प्रेग्नेंसी में हाइपरटेंशन को कैसे मैनेज करें?इफेक्टिव मैनेजमेंट में रेगुलर प्रिनेटल चेकअप, बीपी की मॉनिटरिंग और लाइफस्टाइल में बदलाव शामिल हैं, जैसे कि बैलेंस्ड डाइट लेना, नमक का सेवन कम करना, मॉडरेट फिजिकल एक्टिविटीज में शामिल होना और स्ट्रेस मैनेज करना. कुछ मामलों में, दवा की जरूरत हो सकती है, और मां और बच्चे दोनों के लिए सेफ्टी एन्श्योर करने के लिए डॉक्टर की सलाह हमेशा लें.
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.