Health

Human lifespan will reduce due to climate change respiratory and mental diseases will also increase | जलवायु परिवर्तन से घटेगी इंसानों की उम्र, सांस और मानसिक बीमारियों में होगी बढ़ोतरी



जलवायु परिवर्तन का खतरा सिर्फ प्रकृति पर ही नहीं, बल्कि मानव जीवन पर भी गहरा रहा है. ताजा शोध में एक चौंकाने वाली बात सामने आई है कि जलवायु परिवर्तन के कारण व्यक्ति के औसत जीवनकाल घट सकती है. यह कमी औसतन छह महीने तक हो सकती है, जिसका मतलब है कि हम जितने लंबे समय तक जीने की उम्मीद करते हैं, उसमें से आधा साल जलवायु परिवर्तन छीन सकता है.
पत्रिका ‘पीएलओएस क्लाइमेट’ में प्रकाशित इस शोध में 1940 से 2020 के बीच 191 देशों के औसत तापमान, बारिश और व्यक्ति के औसत जीवनकाल के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया. शोधकर्ताओं ने पाया कि तापमान और वर्षा में हुए बदलावों का सीधा संबंध जीवन प्रत्याशा में कमी से है. हर एक डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के साथ, जीवन प्रत्याशा में लगभग 0.44 वर्ष की कमी देखी गई. यानी, अगर वैश्विक तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ोतरी होती है, तो औसतन हर व्यक्ति छह महीने कम जीएगा.स्वास्थ्य चिंता पैदा हुईशोध यह भी बताता है कि जलवायु परिवर्तन का असर सभी पर समान नहीं होगा. महिलाएं और विकासशील देशों के लोग ज्यादा प्रभावित होंगे. वहीं, जलवायु परिवर्तन से तापमान और वर्षा के पैटर्न में बदलाव हुए हैं. इससे बाढ़, गर्मी और प्राकृतिक आपदाएं बढ़ी हैं. यह सांस और मानसिक बीमारियों में बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार है. इससे दुनियाभर में स्वास्थ्य चिंताएं बढ़ी हैं. इसका व्यक्ति के औसत जीवनकाल पर असर पड़ना तय है.
भारत की औसत जीवन प्रत्याशा 70.42 वर्षभारत की जीवन प्रत्याशा 2023 में औसतन 70.42 वर्ष है. 2022 के मुकाबले इसमें 0.33 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. वहीं, दुनिया की जीवन प्रत्याशा 72.27 है. जबकि जापान में 84.62 और अमेरिका में 77.28 है. यदि पृथ्वी के औसत तापमान में एक डिग्री सेल्सियस वृद्धि होती है तो मानव जीवन प्रत्याशा में एक हफ्ते से लेकर छह महीने की कमी हो सकती है.
उपाय क्या?इस शोध के निष्कर्ष चिंताजनक हैं और दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग करते हैं. हमें ऊर्जा उत्पादन के तरीकों को बदलने, हरित क्रांति को बढ़ावा देने और जलवायु अनुकूलन योजनाओं को लागू करने की जरूरत है. इसके साथ ही, जलवायु न्याय सुनिश्चित करना भी जरूरी है, ताकि कमजोर समुदायों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाया जा सके.



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