How obesity can worsen asthma symptoms: मोटापा अपने आप में एक बड़ी परेशानी है, साथ ही ये रेस्पिरेटरी हेल्थ को भी काफी ज्यादा अफेक्ट सकता है, खासकर अस्थमा में तो ज्यादा वजन काफी परेशानियों भरा सबब है. जब पेट के आसपास ज्यादा चर्बी मौजूद होती है तो इसके कारण लंग्स का एक्सपैंड करना मुश्किल हो जाता है. बेली फैट के कारण सांस लेने की मेन मसल डायाफ्राम उपर की तरफ धकेल दी जाती है, जिससे उसके असरदार तरीके से सिकुड़ने की क्षमता कम हो जाती है. इससे लंग का वॉल्यूम कम हो जाता है और हवा आने के रास्ते में रुकावट बढ़ जाती है, जिससे इंसान के लिए गहरी सांस लेना या पूरी तरह से सांस छोड़ना ज्यादा मुश्किल हो जाता है.
वजन बढ़ना खतरनामेकेनिकल लिमिटेशंस के अलावा, मोटापा क्रोनिक लो ग्रेड इंफ्लेमेशन से भी जुड़ा हुआ है. फैट टिश्यू सिर्फ एक पैसिव स्टोरेज साइट नहीं हैं, ये एक्टिव तरीके से लेप्टिन और अलग-अलग साइटोकिंस जैसे इंफ्लेमेट्री मॉलिक्यूल्स को छोड़ता है. ये पदार्थ सिस्टेमिक इंफ्लेमेशन में योगदान करते हैं, जो एयरवे हाइपररिस्पॉन्सिवनेस को खराब कर सकता है, जो अस्थमा की अहम पहचान में से एक है. नतीजतन, हवा का रास्ता धूल, पॉलेन, ठंडी हवा या रेस्पिरेटरी इंफेक्शन जैसे कॉमन अस्थमा ट्रिगर्स के को लेकर ज्यादा रिएक्टिव हो जाते हैं, जिससे अधिक बार और गंभीर लक्षण होते हैं.
अस्थमा और मोटापे का कनेक्शनडॉ. विकास मित्तल (Dr. Vikas Mittal), डायरेक्टर, पल्मोनोलॉजिस्ट, सीके बिरला हॉस्पिटल, दिल्ली ने बताया कि अस्थमा वाले मोटे पेशेंट अक्सर स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट के प्रति खराब रिस्पॉन्स देते हैं. नॉर्मल लेवल के लक्षण को हासिल करने के लिए उन्हें इनहेल्ड कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स और दूसरी कंट्रोलर दवाओं के हाई डोज की जरूरत हो सकती है. इलाज के प्रति ये लो रिस्पॉन्स अस्थमा मैनेजमेंट को और मुश्किल बनाती है और बार-बार फ्लेयर-अप के रिस्क को बढ़ाती है.
नींद में पड़ जाएगी खललइसके अलावा, मोटापा ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (OSA) डेवलप होने के रिस्क को बढ़ाता है, ये एक ऐसी स्थिति है जिसकी पहचान नींद के दौरान सांस लेने में बार-बार रुकावट होना है. ओएसए और अस्थमा अक्सर एक साथ नजर आते हैं, और ये ओवरलैप रात के समय के लक्षणों को खराब कर सकता है, नींद में रुकावट डाल सकता है और क्वालिटी ऑफ लाइफ को कम कर सकता है. खराब नींद अस्थमा कंट्रोल को और खराब कर सकती है.
वजन घटाने से आएगा बड़ा फर्कअच्छी खबर ये है कि मामूली वजन घटाने से भी काफी सुधार हो सकता है. रिसर्च से पता चला है कि शरीर के वजन का सिर्फ 5-10% कम करने से अस्थमा के लक्षण कम हो सकते हैं, फ्लेयर-अप का रिपीट होना कम हो सकता है और दवाओं के असर में सुधार हो सकता है. बेहतर कंट्रोल और बेहतर लॉन्ग टर्म रिजल्ट के लिए ओवरऑल अस्थमा मैनेजमेंट प्लान के हिस्से के रूप में मोटापे का सॉल्यूशन करना जरूरी है.
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.