अब तक यह माना जाता रहा है कि हमारे दिमाग में यादें केवल न्यूरॉन्स (Neurons) के जरिए ही स्टोर होती हैं. लेकिन MIT (मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) के वैज्ञानिकों ने एक चौंकाने वाली खोज की है. उनके अनुसार, मेमोरी को स्टोर करने में एक और महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं- एस्ट्रोसाइट्स (Astrocytes). यह ब्रेन सेल्स का एक ऐसा प्रकार है जिसे पहले सिर्फ सपोर्टिंग सेल माना जाता था, लेकिन अब वैज्ञानिकों का मानना है कि ये मेमोरी स्टोरेज में भी अहम भूमिका निभाते हैं.
हमारे दिमाग में लगभग 86 अरब न्यूरॉन्स होते हैं, जो इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स के जरिए सूचनाएं भेजते हैं. लेकिन इनके साथ ही करोड़ों एस्ट्रोसाइट्स भी होते हैं. यह तारों की आकार की सेल्स जिनकी लंबी-लंबी शाखाएं लाखों न्यूरॉन्स से जुड़ सकती हैं. अब तक इन्हें केवल सफाई करने, पोषण देने और ऑक्सीजन पहुंचाने जैसे सपोर्टिंग कामों के लिए जाना जाता था. लेकिन नई रिसर्च से पता चला है कि ये सेल्स भी यादें जमा करने में महत्वपूर्ण हो सकती हैं.
नई थ्योरी: ब्रेन का सीक्रेट स्टोरेज सिस्टमMIT के वैज्ञानिकों ने एक मॉडल तैयार किया है जो बताता है कि एस्ट्रोसाइट्स न्यूरॉन्स के साथ मिलकर ट्राइपार्टाइट सिनेप्स (Tripartite Synapse) बनाते हैं. यानी एक ऐसा कनेक्शन जिसमें दो न्यूरॉन्स और एक एस्ट्रोसाइट शामिल होता है. एस्ट्रोसाइट्स खुद इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स नहीं भेजते, लेकिन वे कैल्शियम सिग्नल्स के जरिए न्यूरॉन्स की एक्टिविटी को समझते और कंट्रोल करते हैं.
शोधकर्ताओं ने हॉपफील्ड नेटवर्क नामक एक आर्टिफिशियल न्यूरल मॉडल का प्रयोग किया, जो यादें स्टोर करने के लिए जाना जाता है. लेकिन इसमें सीमित क्षमता होती है. उन्होंने इसका अपग्रेडेड वर्जन ‘डेंस एसोसिएटिव मेमोरी’ को अपनाया, जिसमें ज्यादा सूचनाएं स्टोर की जा सकती हैं. इस नए मॉडल में एस्ट्रोसाइट्स की मदद से कई न्यूरॉन्स आपस में जटिल रूप से जुड़ सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे इंसानी दिमाग में होता है.
क्यों है यह खोज खास?यह रिसर्च सिर्फ न्यूरोसाइंस ही नहीं, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की दुनिया के लिए भी क्रांतिकारी साबित हो सकती है. वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर हम एस्ट्रोसाइट्स के सिस्टम को समझकर उसे AI मॉडल में शामिल करें, तो हम ज्यादा स्मार्ट, तेज और एनर्जी एफिशिएंट बना सकते हैं बिल्कुल इंसानी दिमाग की तरह. MIT के प्रोफेसर जीन-जैक्स स्लॉटीन का कहना है कि शुरुआत में एस्ट्रोसाइट्स को सिर्फ सफाई कर्मचारी माना गया था, लेकिन अब लगता है कि कुदरत ने उन्हें कंप्यूटेशनल कामों के लिए भी तैयार किया है.
अब आगे क्या?वैज्ञानिक अब यह जानने की कोशिश करेंगे कि एस्ट्रोसाइट्स और न्यूरॉन्स के बीच के इन कनेक्शनों को अगर रोका जाए तो क्या याददाश्त पर असर पड़ता है. अगर यह सिद्ध हो गया, तो यह मानव दिमाग के ‘सीक्रेट फोल्डर’ को खोलने जैसा होगा.