Uttar Pradesh

होली पर भगवान को रंग लगाना धार्मिक दृष्टि से सही या गलत? काशी के विद्वान से जानें सच



अभिषेक जायसवाल/वाराणसी : रंगों के त्योहार होली में एक दूसरे को रंग लगाने की परंपरा बहुत पुरानी है. सदियों से यह परंपरा निरंतर चली आ रही है. धार्मिक कथाओं के अनुसार, द्वापर युग में भगवान कृष्ण भी गोपियों संग ब्रज में होली खेलते थे. होली खेलने की परंपरा सिर्फ आम लोगों में ही नहीं बल्कि भगवान के साथ भी हैं. अलग-अलग जगहों पर लोग भगवान के साथ भी होली खेलते हैं.

दुनिया के प्राचीनतम शहरों में से एक बाबा विश्वनाथ की नगरी बनारस में भक्त बाबा विश्वनाथ और माता गौरा के साथ होली खेलते हैं. अयोध्या में रामलला के साथ भी भक्त गुलाल और फूलों की होली खेलते हैं और मथुरा में भगवान कृष्ण के साथ भी भक्त होली खेलते हैं. इसके अलावा अलग-अलग जगहों पर अपने आराध्य के साथ होली खेलने की परंपरा है.

होली पर गुलाल और रंग लगाने की मान्यताकाशी के पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि होली की शुरुआत द्वापर युग में हुई थी. धार्मिक कथाओं के अनुसार ब्रज में भगवान श्री कृष्ण गोपियों संग होली खेलते थे तभी से इसकी शुरुआत हुई. भगवान श्रीकृष्ण की होली ही दुनिया में सबसे मशहूर है. मथुरा में लठमार होली के साथ रंग, गुलाल और फूलों की होली खेली जाती है .शास्त्रों में इसका जिक्र किया गया है कि हर देवी या देवता को एक रंग अति प्रिय होता है. कहते हैं कि होली पर भगवान को उनका पसंदीदा रंग लगाने से जीवन में सुख एवं समृद्धि आती है, साथ ही कई आर्थिक परेशानियां भी दूर हो जाती हैं.

मनोकामनाएं होती हैं पूरीपंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान के साथ होली खेलने से अलग-अलग तरह की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और इन्ही मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए लोग भगवान के साथ होली खेलते है.
.Tags: Dharma Aastha, Local18, Religion 18, Uttar Pradesh News Hindi, Varanasi newsFIRST PUBLISHED : March 23, 2024, 16:11 ISTDisclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Local-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.



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