रात को सोने से पहले बस 2 मिनट कर लें ये काम, पाएं गहरी नींद और तनाव से मुक्ति
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम आधुनिक तरीकों को अपनाते हुए कई पुरानी आदतों को भूल चुके हैं. इन्हीं में से एक है सोने से पहले पैरों में गर्म तेल लगाने की परंपरा, जो कभी दादी-नानी की दिनचर्या का हिस्सा हुआ करती थी. वह कहती थीं कि इससे नींद अच्छी आती है, सिर दर्द नहीं होता और शरीर हल्का महसूस होता है. भले ही अब यह आदत लोगों की दिनचर्या से गायब होती जा रही है, लेकिन आयुर्वेद के नजरिए से देखें तो यह छोटी सी परंपरा सेहत के लिए किसी औषधि से कम नहीं है.
पैरों में छिपा है पूरे शरीर की हेल्थ
जौनपुर की प्रसिद्ध आयुर्वेदिक विशेषज्ञ डॉ. कुसुम पांडेय बताती हैं कि पैरों में सैकड़ों नसें और तंत्रिकाएं होती हैं, जो पूरे शरीर से जुड़ी होती हैं. जब इन बिंदुओं पर तेल मालिश की जाती है, तो यह पूरे शरीर के रक्त संचार को संतुलित करती है. खासकर सरसों, नारियल या तिल के तेल से मालिश करने पर शरीर की थकान दूर होती है, नींद गहरी आती है और मानसिक तनाव कम होता है. यही वजह है कि पुराने समय में लोग सोने से पहले पैरों को गर्म पानी से धोकर तेल लगाते थे.
आयुर्वेद में “पादाभ्यंग” का महत्व
आयुर्वेद में इस प्रक्रिया को पादाभ्यंग कहा गया है, जो दिनचर्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानी जाती है. यह न केवल पैरों की थकान मिटाती है, बल्कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाती है. डॉ. पांडेय कहती हैं कि जो लोग रोजाना पैरों में गर्म तेल लगाते हैं, उन्हें सिर दर्द, जोड़ों के दर्द, आंखों की कमजोरी और अनिद्रा जैसी समस्याओं से काफी राहत मिलती है.
कौन सा तेल कब लगाना चाहिए?
डॉ. पांडेय बताती हैं कि सरसों का तेल गर्म तासीर वाला होता है, जो सर्दियों में शरीर के वात दोष को शांत करता है. वहीं नारियल का तेल ठंडा होता है, जो गर्मी या जलन से परेशान लोगों के लिए बेहतर है. उन्होंने सलाह दी कि मौसम के अनुसार तेल का चुनाव करें — सर्दियों में सरसों या तिल का तेल और गर्मियों में नारियल का तेल सबसे फायदेमंद होता है.
पुरानी परंपरा में छिपा आधुनिक समाधान
डॉ. कुसुम पांडेय कहती हैं कि आज की जीवनशैली में लंबे समय तक खड़े रहना, चलना या स्क्रीन देखना शरीर में थकान और तनाव बढ़ाता है. ऐसे में रात को पैरों में गर्म तेल से हल्की मालिश करना न केवल शरीर को आराम देता है बल्कि मन को भी शांत करता है. वे कहती हैं — “हमारी दादी-नानी डॉक्टर नहीं थीं, लेकिन उनके नुस्खे अनुभव और परंपरा से उपजे थे. अगर हम फिर से उन पुराने आयुर्वेदिक तरीकों को अपनाएं, तो कई दवाओं की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.”

