Uttar Pradesh

ग्रहण के दौरान ये दो पापी ग्रह देते हैं… चंद्रमा को कष्ट! समुद्र मंथन से जुड़ा है किस्सा



सर्वेश श्रीवास्तव/अयोध्या: साल 2023 का आखिरी चंद्र ग्रहण आज रात्रि में लग रहा है और यह ग्रहण बेहद खास माना जा रहा है क्योंकि यह चंद्र ग्रहण भारत में दृश्यमान होगा. ज्योतिष गणना के अनुसार चंद्र ग्रहण मेष राशि और अश्विनी नक्षत्र में लगने जा रहा है जो और भी खास माना जा रहा है. वैसे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्र ग्रहण को एक घटना मानी जाती है तो वही वैज्ञानिक दृष्टि से जब सूर्य जब चंद्रमा और पृथ्वी के बीच में आती है तो ग्रहण लगाना माना जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्रमा के ग्रहण लगने की मुख्य वजह राहु-केतु ग्रह होते हैं.

दरअसल, अयोध्या की ज्योतिषी पंडित कल्कि राम बताते हैं कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहण लगने की घटना बहुत महत्वपूर्ण होती है. चंद्र ग्रहण लगने की घटना को लेकर राहु और केतु से भी एक कथा प्रचलित है. जिसकी वजह से चंद्र ग्रहण लगता है. एक पौराणिक कथा के अनुसार जब देवताओं और दानवों के बीच में समुद्र मंथन चल रहा था तो उस दौरान एक अमृत कलश समुद्र से भी निकाला था. जिसे अमृत कलश नाम दिया गया था. इसी अमृत कलश के लिए देवता और रक्षा के बीच भयंकर युद्ध हो रहा है. जिसे देखकर भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था और वह दिन था एकादशी का था. मोहिनी का रूप धारण करने के बाद भगवान विष्णु ने दानवों को अलग बैठाया और देवता लोगों को अलग बैठाया. मोहिनी का रूप धारण करते हुएभगवान विष्णु ने अपने हाथ में अमृत कलश देवताओं और राक्षसों में समान भाग में बांटने का विचार किया. इसके बाद राक्षस और देवता भगवान विष्णु के इस प्रस्ताव को मान गए.

कैसे हुई राहु और केतु की उत्पत्ति?जिसके बाद भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण करते हुए देवता को अमृत का कलश पिलाया तो राक्षस को जल पिलाने लगे इसके बाद एक राक्षस को इसकी भनक लगी. उसने सोचा की हम लोगो के साथ धोखा किया जा रहा है. ऐसी स्थिति में वह देवताओं का रूप धारण कर कर सूर्य और चंद्रमा के बगल में आकर बैठ गया. जैसे ही अमृत उसको मिला वैसे ही सूर्य और चंद्र ने उसे पहचान लिया और यह बात भगवान विष्णु को बताई. जिसके बाद भगवान विष्णु क्रोधित होकर अपने सुदर्शन चक्र से राहु के गले पर वार किया. लेकिन तब तक राहु अमृत पी चुका था. जिसके कारण उसकी मृत्यु नहीं हो पाई. परंतु शरीर के दो धड़ जरूर हो गए थे. सर वाले भाग को राहु और धड़वाले भाग को केतु कहा गया.

इस वजह से लगता है ग्रहण!इसके बाद ब्रह्मा जी ने स्वरभानु के सर को एक सर्प वाले शरीर से जोड़ दिया और वह शरीर ही राहु कहलाया और उसके धड़ को सर्प के दूसरेके साथ जोड़ दिया जो केतु कहलाया. सूर्य और चंद्रमा के राज खोलने के कारण ही कहा जाता है कि राहु और केतु दोनों उनके दुश्मन बन गए जिसकी वजह से राहु और केतु पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को ग्रस्त कर लेते हैं. यही वजह है कि पूर्णिमा तिथि के दिन अक्सर चंद्र ग्रहण लगता है.

(नोट: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष के मुताबिक है न्यूज़ 18 इसकी पुष्टि नहीं करता है)
.Tags: Ayodhya News, Dharma Aastha, Local18, Religion 18, Uttar Pradesh News HindiFIRST PUBLISHED : October 28, 2023, 21:33 IST



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