Uttar Pradesh

Govind Ballabh Pant UP first CM whose handling on Ayodhya Ram Mandir issue impressed Jawaharlal Nehru



लखनऊ. उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Election 2022) की रणभेरी बज चुकी है. यहां 10 फरवरी को पहले चरण के वोट डाले जाएंगे और 10 मार्च को साफ हो जाएगा कि 18वीं विधानसभा का नतीजे किसके पक्ष में गए हैं और यूपी का अगला मुख्यमंत्री (UP Next CM) कौन होगा. उत्तर प्रदेश की सियासत देश की दशा और दिशा तय करने वाली धूरी है. यूपी में एक दौर ऐसा भी था जब कांग्रेस का एकक्षत्र राज था, लेकिन मंडल और कमंडल के भूचार से यूपी की सियासत 360 डिग्री घूम गई और आज कांग्रेस आज अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है. यूपी की सियासत में सभी रंग बिखरे हैं तो यहां के मुख्यमंत्रियों के भी तमाम किस्से मशहूर हैं. तो आइए जानते हैं यूपी के पहले मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत (Govind Ballabh Pant) की दास्तां…
राम मंदिर का निर्माण शुरू हो चुका है और सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे को जोरशोर से उछाल कर दोबारा सत्ता हासिल करने की उम्मीद में है. हालांकि इस राम मंदिर आंदोलन के तार 1949 से जुड़े हैं, तब यूपी की कमान पहले मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत के हाथ में थी. वे शानदान प्रशासक थे. सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के जिस विवाद का फैसला सुनाया है, दरअसल उसकी शुरुआत 1949 में हो गई थी और तब गोविंद बल्लभ पंत (Govind Ballabh Pant) ने बड़ी ही सूझबूझ से काम लिया था.
सियासत में आने का ही रोचक किस्सायूपी के पहले मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत के नाम अनोखा रिकॉर्ड है कि आजादी के पहले भी यूपी के सीएम थे और आजादी के बाद भी वह लंबे वक्त तक इस पद पर काबिज़ रहे. पंडित गोविंद बल्लभ पंत के राजनीति में आने का किस्सा भी बड़ा दिलचस्प है. पंत का जन्म 10 सितंबर, 1887 को अल्मोड़ा जिले के खूंट गांव में हुआ था. राजनीति में आने से पहले वह वकालत किया करते थे. एक दिन पंत चैंबर से गिरीताल घूमने चले गए. वहां उन्होंने देखा कि दो लड़के आपस में स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में चर्चा कर रहे थे. यह सुनकर पंत ने उन युवकों से पूछा कि क्या यहां पर भी देश-समाज को लेकर बहस होती है? इस पर उन युवकों ने कहा कि यहां बस नेतृत्व की जरूरत है. बस उसी समय से पंत जी ने वकालत छोड़ राजनीति में आने का मन बना लिया.
गोविंद बल्लभ पंत ने वर्ष 1921 में सक्रिय राजनीति में पदार्पण किया और लेजिस्लेटिव असेंबली में चुने गए. उस वक्त उत्तर प्रदेश, यूनाइटेड प्रोविंसेज ऑफ आगरा और अवध कहलाता था. 1932 में पंत देहरादून की जेल में बंद थे. ये इत्तेफाक ही था कि उस वक्त पंडित जवाहरलाल नेहरू भी देहरादून जेल में बंद थे. उस दौरान ही पंडित नेहरू से इनकी अच्छी जान पहचान हो गई. नेहरू इनसे काफी प्रभावित थे. जब कांग्रेस ने 1937 में सरकार बनाने का फैसला किया तो नेहरू ने ही पंत का नाम सुझाया था. इस तरह पंत यूपी के पहले सीएम बने. हालांकि 2 साल बाद वह पद से हट गए. इसके बाद 1946 में कांग्रेस की भारी जीत के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया, जिस पद पर वह लगातार 8 साल तक बने रहे.
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अयोध्या विवाद रही बड़ी चुनौतीपंत के कार्यकाल की सबसे बड़ी चुनौती अयोध्या विवाद रही. दरअसल 22 दिंसबर 1949 के दरम्यानी रात बाबरी मस्जिद में भगवान राम की मूर्ति रख दी गई. 30 हजार की आबादी वाले अयोध्या में अगली सुबह यह बात जंगल की आग की तरह फैल गई कि रामलला प्रकट हो गए हैं. ऐसे में वहां पर सैंकड़ों की संख्या में रामभक्त जुटने लगे. हालांकि यह गोबिंद वल्लभ पंत की सूझबूझ का नतीजा था कि इसे लेकर शहर में फैला तनाव जल्द ही शांत कर लिया गया और इसी आग प्रदेश की दूसरी जगहों पर नहीं फैल सकी. उन्होंने अयोध्या के मुद्दे को जिस तरह खूबी से हैंडल किया उससे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू बहुत ही प्रभावित हुए. यही वजह रही नेहरू का पंत पर भरोसा आखिर तक बना रहा.

जब नाश्ते का बिल पास करने के कर दिया मनागोविंद बल्लभ पंत 27 दिसंबर 1954 तक यूपी के मुख्यमंत्री रहे. उनके मुख्यमंत्रित्व काल की एक बड़ी रोचक घटना है. एक बार पंत सरकारी बैठक कर रहे थे. इस दौरान हुए नाश्ते-चाय का बिल पास होने जब उनके पास आया तो उन्होंने इसे पास करने से मना कर दिया. उनका तर्क था कि सरकारी बैठकों में सरकारी खर्चे से सिर्फ चाय मंगवाने का नियम है. ऐसे में सिर्फ चाय का बिल ही पास किया जा सकता है, नाश्ते का बिल नाश्ता मंगवाने वाले व्यक्ति को खुद देना होगा. यह सुनकर सभी अधिकारी चुप हो गए.

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