गोरखपुर: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के फार्मेसी विभाग की एक महत्वपूर्ण रिसर्च अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान दर्ज करा चुकी है. विश्वविद्यालय के डॉ. अनुराग कुमार गौतम और उनकी टीम द्वारा किए गए इस शोध को विश्व प्रसिद्ध एल्सेवियर पब्लिकेशन के लिवर रिसर्च जर्नल के नवंबर 2025 अंक में प्रकाशित किया गया है. यह अध्ययन लिवर कैंसर के पीछे छिपे मेटाबॉलिक बदलावों और उससे जुड़ी बारीकियों को उजागर करता है, जो भविष्य में इसकी प्रारंभिक पहचान और टारगेटेड इलाज के नए रास्ते खोल सकता है.
दुनिया में तेजी से बढ़ रहा लिवर कैंसर
लिवर कैंसर दुनिया में तेजी से बढ़ रहा है, जिसकी एक प्रमुख वजह बदलती जीवनशैली, खराब खानपान और हेपेटाइटिस जैसे संक्रमण हैं. शोध में बताया गया है कि लिवर सिरोसिस, फाइब्रोसिस और प्रोटीन व लिपिड मेटाबॉलिज्म में गड़बड़ी कैंसर के विकास में मुख्य भूमिका निभाती है. इन मेटाबॉलिक परिवर्तनों को कैंसर की पहचान के लिए बायोमार्कर के रूप में इस्तेमाल करने की भी संभावना जताई गई है.
शोध टीम ने लिवर कैंसर से जुड़े प्रमुख मेटाबॉलिट्स का गहन विश्लेषण किया. निष्कर्षों में सामने आया कि प्रोटीन, लिपिड और आंत के माइक्रोबायोम में होने वाले बदलाव हेपेटोसेल्यूलर कार्सिनोमा (HCC) के निर्माण और उसके फैलाव में बेहद अहम भूमिका निभाते हैं. खास तौर पर आंत में माइक्रोबायोम में होने वाली गड़बड़ी (डिसबायोसिस) सूजन बढ़ाती है, जिससे क्रॉनिक लिवर रोग और आगे कैंसर की आशंका मजबूत हो जाती है.
इस शोध के परिणामों से यह स्पष्ट होता है कि लिवर कैंसर के विकास में आंत का माइक्रोबायोम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह शोध भविष्य में लिवर कैंसर की प्रारंभिक पहचान और टारगेटेड इलाज के नए रास्ते खोल सकता है.

