गन्ने की खेती में बढ़ रही बीमारियां, सही देखभाल से बचा सकते हैं लाखों का नुकसान, जानिए एक्सपर्ट की सलाह

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Last Updated:July 29, 2025, 14:37 ISTवैसे तो गन्ने की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है और इससे किसानों को अच्छी आमदनी भी होती है, लेकिन अगर इसकी खेती समय और मौसम के अनुसार की जाए, तो यह न केवल बेहतर उपज देती है बल्कि फसल में रोग लगने का खतरा भी कम हो जाता है. इससे किसानों को लाखों रुपये का मुनाफा हो सकता है. वैसे बरसात का मौसम शुरू हो चुका है. यह समय गन्ना किसानों के लिए अवसर और चुनौती दोनों लेकर आता है. समय पर उचित देखभाल से गन्ने की अच्छी वृद्धि होती है, जबकि लापरवाही से पूरी फसल नष्ट हो सकती है. जुलाई से सितंबर के बीच गन्ना हर सप्ताह लगभग 4 से 5 इंच की तेज़ गति से बढ़ता है. यही वह समय है जब फसल में रोगों का खतरा भी अधिक रहता है, इसलिए बारिश के इन महीनों में गन्ने की फसल में इन चीजों के प्रयोग से रोगों से मुक्ति मिलेगी और फसल की अधिक पैदावार होगी. जिला कृषि अधिकारी राजितराम ने बताया कि हमारे यहां गन्ने की खेती किसान बड़े पैमाने पर करते हैं. इसकी खेती से अच्छी आमदनी भी होती है, पर बारिश के समय गन्ने की फसल में दो बीमारियां ज्यादा लगती हैं — पोक्का बोइंग और लाल सड़न. ये फसल को जड़ से खत्म कर सकती हैं, जिससे किसानों को काफी नुकसान हो सकता है. वहीं. किसान अगर बारिश के समय गन्ने की फसल में कुछ चीजों का उपयोग करें, तो इन रोगों से फसल को बचाया जा सकता है. अक्सर मॉनसून के मौसम में गन्ने की फसल की बढ़त तेज़ होती है, लेकिन इसी दौरान पौधों के गिरने का खतरा भी बढ़ जाता है. ऐसे में खेत में मिट्टी चढ़ाना और पौधों की बंधाई करना बेहद जरूरी हो जाता है. जब मिट्टी में पर्याप्त नमी हो और वह नरम हो, तभी यह काम करना चाहिए. मिट्टी चढ़ाने से पौधों की जड़ें मजबूत होती हैं, जबकि बंधाई से पौधे सीधे खड़े रहते हैं. इससे फसल मजबूत, सीधी और रोगों से सुरक्षित बनी रहती है, जिससे उपज में भी बढ़ोतरी होती है. पोक्का बोइंग रोग गन्ने की एक खतरनाक बीमारी है, जो सफेद फफूंद के कारण फैलती है. इस रोग में गन्ने की पत्तियों पर पहले सफेद और पीले धब्बे दिखाई देते हैं, जो धीरे-धीरे मुरझाकर काले पड़ जाते हैं. इसके कारण पत्तियों का ऊपरी हिस्सा सड़कर गिर जाता है और पौधे की बढ़त रुक जाती है. इतना ही नहीं, प्रभावित गन्ना सामान्य लंबाई तक नहीं पहुंच पाता और बौना रह जाता है, जिससे उत्पादन पर सीधा असर पड़ता है. लाल सड़न रोग भी गन्ने की फसल के लिए बेहद नुकसानदायक साबित होता है. इस रोग में शुरुआत में गन्ने की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और धीरे-धीरे सूखने लगती हैं. सबसे पहले पत्तियों का ऊपरी हिस्सा सूखता है, और फिर यह समस्या पूरी फसल को अपनी चपेट में ले लेती है. अगर समय पर इलाज न किया जाए तो यह रोग पूरी फसल को बर्बाद कर सकता है. पक्का बोइंग रोग से बचाव के लिए गन्ने की फसल पर 0.2 प्रतिशत कॉपरऑक्सिक्लोराइड या 0.1 प्रतिशत बावस्टीन घोल का छिड़काव करना चाहिए. वहीं, लाल सड़न बीमारी से बचने के लिए 0.1 प्रतिशत थियोफिनेट मेथिल, काबेन्डाजिम या टिबूकोनाजोल का 2-3 बार छिड़काव करना फायदेमंद होता है. इन दोनों बीमारियों से फसल की रक्षा के लिए समय पर स्प्रे जरूरी है. इसके साथ ही किसानों को जैविक कीटनाशकों का भी इस्तेमाल करना चाहिए ताकि मिट्टी की सेहत बनी रहे और रोग का असर कम हो. समय पर बचाव से उत्पादन में होने वाले नुकसान से भी बचा जा सकता है.homeagricultureबारिश में गन्ने की फसल को बचाना है? ये 5 उपाय करेंगे हर रोग का इलाज, जानें

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