अंजली शर्मा/कन्नौज: रवि सीजन में गेहूं की फसल इस समय तैयार हो रही है. मौसम के उतार-चढ़ाव के चलते वर्तमान समय में फसल में पीला रतुआ रोग लगने का खतरा हो गया है. इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों की ओर से किसानों को नुकसान से बचाव के लिए तरीके बताए जा रहे हैं. इस रोग के होने पर गेहूं की पत्तियों पर पीले रंग का पाउडर जैसा बनने लगता है. जिसे छूने से पीला पदार्थ निकलता है और कई बार हाथ भी पीले हो जाते हैं. अगर इसे सही समय पर रोका या नियंत्रित नहीं किया गया तो बाद में यह हवा और पानी के माध्यम से पूरे खेत व क्षेत्रफल में फैल जाता है. इसके लगने से गेहूं की उपज में काफी गिरावट आती है.

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर अरविंद कुमार ने बताया कि अगर गेहूं की फसल में पीलापन दिखाई देता है तो उनके खेत में इस नाइट्रोजन और यूरिया रसायन की कमी हो रही है. जिसके चलते हमारे फसलों में धीरे-धीरे रोग लगने चालू हो जाता हैं. ऐसे में अगर गेहूं की फसल में किसानों को ऊपर की पत्तियों में पीलापन दिख रहा है तो किसानो की फसल में सल्फर रसायन की कमी है और अगर बीच के हिस्से में हल्का भूरा रंग का ढाबा दिखता है तो फसल में जिंक की कमी होने के चलते यह रोग लगने की आशंका बढ़ जाती है.

ऐसे करें बचाव

पीला रतुआ रोग, फफूंद जनित रोग है. इसके लगने से गेहूं की पत्तियां पीले रंग की हो जाती हैं. इसके लिए फफूंदी कीटनाशक का प्रयोग समय रहते ही कर लेना चाहिए ताकि यह रोग पूरी फसल को न छू सके और समय पर ही इस पर काबू करके इसका इलाज हो जाए. ऐसे में किसान भाइयों को कुछ महत्वपूर्ण रसायनों का विशेष ध्यान रखना चाहिए. समय-समय पर इनका छिड़काव खेतों में आवश्यक होता है. जिसके लिए 100 लीटर पानी में 500 ग्राम जिंक सल्फेट और 2 किलोग्राम यूरिया को मिलाकर लगभग पौन एकड़ खेत में छिड़काव करने से एक सप्ताह के अंदर फसलों को इन रोगों से बचाया जा सकता है.
.Tags: Hindi news, Local18, UP newsFIRST PUBLISHED : January 14, 2024, 11:47 IST



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