Uttar Pradesh

गाजर की खेती का सुपरहिट फॉर्मूला: 15 सेमी ऊंचाई पर बुवाई से होगी बंपर कमाई, जानें कैसे

गाजर की खेती का सुपरहिट फॉर्मूला: 15 सेमी ऊंचाई पर बुवाई से होगी बंपर कमाई

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां खेती के लिए दर्जनों प्रकार की मिट्टियां उपलब्ध हैं और बारिश भी ठीक से होती है। ऐसे में अगर आप भी खेती करने के बारे में सोच रहे हैं, तो आप गाजर की खेती एक अच्छा फैसला साबित हो सकता है। जड़ वाली सब्जियों में गाजर का प्रमुख स्थान है, जिसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन-ए पाया जाता है, जो आंखों और बालों के लिए अच्छी होती है। गाजर का उपयोग कच्ची खाने में, आचार, सलाद, हलवा, फास्ट फूड और सब्जी बनाने में किया जाता है, जिससे बाजार में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है। सर्दियों के सीजन में तो इसकी काफी डिमांड रहती है। ऐसे में आप गाजर की खेती से कम समय में बंपर कमाई कर सकते हैं।

हालांकि, गाजर की सही किस्म का चयन यहां बहुत मायने रखता है। जिला उद्यान अधिकारी डॉ पुनीत कुमार पाठक ने बताया कि गाजर की फसल से किसानों को अच्छी कमाई हो सकती है। यह कम दिनों में तैयार होने वाली फसल है, जिसमें किसानों को इसको तैयार करने के लिए बेहद कम लागत की आवश्यकता होती है। लेकिन गाजर की फसल लगाने के लिए किसान ऊंचे स्थान वाली जमीन को ही चुनाव करें, जहां जल भराव ना हो, जल निकासी बेहतर होती हो। गाजर की फसल 90 से 100 दिनों में तैयार हो जाती है।

अच्छी तरह से करें खेत की तैयारी गाजर की फसल लगाने के लिए किसान सबसे पहले खेत की अच्छे तरह से जुताई करें। खेत की जुताई करने के बाद में पाटा चला कर खेत को समतल कर लें। पाटा चलाने से मिट्टी भुरभुरी हो जाएगी। खेत की अंतिम जुताई के समय किसान वर्मी कंपोस्ट या फिर गोबर की सड़ी हुई खाद को मिट्टी में मिला दें।

इस विधि से करें गाजर की बुवाई खेत की तैयारी करने के बाद किसान 1 मीटर चौड़ा और 15 से 20 सेंटीमीटर ऊंचाई वाला बेड बनाएं। बेड के ऊपर गाजर के बीज की बुवाई कर दें। एक हेक्टेयर गाजर की बुवाई करने के लिए किसानों को 4 से 6 किलो बीज का इस्तेमाल करना चाहिए। बेड पर गाजर की फसल लगाने से गाजर की ग्रोथ अच्छी होगी, किसानों को अच्छा उत्पादन मिलेगा।

गाजर की खेती से किसानों को बंपर कमाई हो सकती है, लेकिन इसके लिए सही किस्म का चयन और उचित खेत की तैयारी बहुत जरूरी है। जिला उद्यान अधिकारी डॉ पुनीत कुमार पाठक के अनुसार, गाजर की फसल 90 से 100 दिनों में तैयार हो जाती है, जिसमें किसानों को इसको तैयार करने के लिए बेहद कम लागत की आवश्यकता होती है।

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