Farming Tips: आधे बीघे में 90 हजार का मुनाफा, इस लाल सब्जी की खेती से कमाई से ‘लाल’ हो रहा किसान

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गोंडा- उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के वजीरगंज विकासखंड के किसान अशोक मौर्य ने खेती की दुनिया में एक नई मिसाल कायम की है. रासायनिक खेती से हटकर उन्होंने जैविक खेती का रास्ता चुना और आज वह आधे बीघे में टमाटर उगाकर करीब 90 हजार रुपये तक का टर्नओवर कर रहे हैं.रासायनिक खेती छोड़ जैविक पद्धति अपनाई
अशोक मौर्य पहले पारंपरिक रासायनिक खेती करते थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने महसूस किया कि इससे खेत की उर्वरता कम हो रही है और इससे उपज भी प्रभावित हो रही है. साथ ही, इसका स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा था. उन्होंने रिसर्च किया और फिर पूरी तरह जैविक खेती की ओर रुख कर लिया.

अशोक अब अपने खेतों में जीवामृत, घन जीवामृत, बीज अमृत, वर्मी कम्पोस्ट, गोबर की खाद और गोमूत्र आधारित घोल का प्रयोग करते हैं. ये प्राकृतिक संसाधन न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं बल्कि मिट्टी की उर्वरता और फसलों की गुणवत्ता भी बढ़ाते हैं.

लोकल 18 से बातचीत के दौरान अशोक मौर्य ने बताया कि उन्होंने हाई स्कूल तक पढ़ाई की, लेकिन उनका मन बचपन से ही खेती में था. इसलिए उन्होंने आगे की पढ़ाई छोड़ दी और खेती को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया. अब वह अपने क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं.

आधे बीघे में टमाटर से 90 हजार रुपये तक टर्नओवरअशोक मौर्य ने बताया कि वह फिलहाल आधे बीघे में जैविक टमाटर की खेती कर रहे हैं और इससे उन्हें लगभग 80 से 90 हजार रुपये का टर्नओवर मिल रहा है. उनकी योजना है कि आने वाले वर्षों में इस खेती को और अधिक भूमि पर विस्तारित करें.

सिजेंटा की 6242 वैरायटी दे रही है बेहतरीन उत्पादन
अशोक ने बताया कि वह सिजेंटा की 6242 वैरायटी का टमाटर उगा रहे हैं, जो गुणवत्ता, आकार और स्वाद के लिहाज से बेहतरीन मानी जाती है. इस वैरायटी के फल आकर्षक दिखते हैं और बाजार में इनकी अच्छी मांग बनी रहती है.

स्वाद, गुणवत्ता और सेहत में बेहतरअशोक का कहना है कि जैविक खादों से उपजने वाले टमाटर ना केवल स्वाद में अधिक बेहतरीन होते हैं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी हैं. इन टमाटरों की शेल्फ लाइफ ज्यादा होती है यानी ये लंबे समय तक ताजे बने रहते हैं. अशोक मानना है कि भले ही जैविक खेती में शुरुआत में उत्पादन थोड़ा कम होता है, लेकिन बाजार में जैविक उत्पादों की अच्छी कीमत मिलती है. इससे किसान अपनी आमदनी भी बढ़ा सकते हैं और उपभोक्ताओं को भी सेहतमंद विकल्प उपलब्ध कराते हैं.

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