रामपुर के किसान पप्पू ने पारंपरिक फसलों के साथ मेंथा की जड़ की खेती शुरू की है. यह खेती कम खर्च में ज्यादा मुनाफा देती है और औषधीय कंपनियों में इसकी जबरदस्त मांग है. किसान पप्पू ने अपनी 4 बीघा जमीन में करीब 5 हजार रुपये के मेंथा पौधे लगाए हैं. यह पौधा फरवरी से मार्च के बीच लगाया जाता है. खेत को पहले अच्छी तरह जोतकर मिट्टी भुरभुरी बनाई जाती है फिर गोबर की खाद डालकर पौधे लागाएं जाते हैं. पौधों को एक-एक फीट की दूरी पर लगाया जाता है, ताकि जड़ों को फैलने के लिए जगह मिल सके.
मेंथा की जड़ की खेती में बहुत खर्च नहीं आता. केवल दो-तीन बार सिंचाई और खरपतवार निकालने की जरूरत पड़ती है. चार से पांच महीने में फसल तैयार हो जाती है और जड़ें मोटी होकर खुदाई के लिए तैयार रहती हैं. पिछले साल भी उन्होंने इसी खेती से अच्छा मुनाफा कमाया था. उस समय मेंथा की जड़ का भाव 5 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक मिला था. इस बार भी 4 बीघे में 50 क्विंटल जड़ निकलने का अनुमान है. इससे करीब 2.5 लाख रुपये की इनकम होगी.
इस जड़ की खासियत यह है कि इसकी मांग हर्बल और औषधीय उद्योगों में हमेशा बनी रहती है. व्यापारी खुद खेत पर आते हैं और जड़ को वहीं खरीदकर ले जाते हैं. इससे किसान को ट्रांसपोर्ट या बाजार के चक्कर नहीं काटने पड़ते. पप्पू कहते हैं कि हम कई साल से मेंथा उगा रहे हैं, लेकिन जबसे जड़ की खेती शुरू की है, तबसे कम खर्च में ज्यादा कमाई हो रही है. अब तो गांव के और लोग भी यही खेती अपनाने लगे हैं.