Even Mild Neck Pain can be a sign of Cervical Spondylosis Know its Symptoms | गर्दन का हल्का दर्द भी हो सकता है इस बड़ी बीमारी का इशारा, इन 6 लक्षणों को देखते कराएं टेस्ट

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Even Mild Neck Pain can be a sign of Cervical Spondylosis Know its Symptoms | गर्दन का हल्का दर्द भी हो सकता है इस बड़ी बीमारी का इशारा, इन 6 लक्षणों को देखते कराएं टेस्ट



What Is Cervical Spondylosis: सर्वाइकल स्पॉन्डायलोसिस एक आम लेकिन धीरे-धीरे बढ़ने वाली समस्या है, जो गर्दन की हड्डियों, डिस्क और जोड़ों में होने वाले उम्र-संबंधी बदलाव के कारण होती है. इसे अक्सर गर्दन का गठिया (Arthritis of the Neck) या डीजनरेटिव डिस्क डिजीज (Degenerative disc disease) भी कहा जाता है. ये बीमारी ज्यादातर 40 साल से ऊपर के लोगों में देखी जाती है, लेकिन आजकल खराब लाइफस्टाइल, लंबे समय तक कंप्यूटर/मोबाइल का इस्तेमाल और गलत तरह बैठने की आदतों के कारण ये युवाओं में भी बढ़ रहा है.
क्यों होती है ये बीमारी?सर्वाइकल स्पॉन्डायलोसिस का मुख्य कारण गर्दन के हड्डियों और डिस्क का घिसना और उनकी लचीलापन (Flexibility) कम होना है. समय के साथ ये कुदरती तौर से होते हैं, लेकिन कुछ फैक्टर्स इसके खतरे को बढ़ा देते हैं:
1.उम्र बढ़ना: उम्र के साथ डिस्क का पानी और लचीलापन कम हो जाता है, जिससे हड्डियों में फ्रिक्शन बढ़ता है.
2. गलत पॉस्चर: लंबे समय तक झुककर लैपटॉप, मोबाइल या किताबें पढ़ना.
3. चोट या ट्रॉमा: गर्दन पर पहले हुई चोट फ्यूचर में स्पॉन्डायलोसिस का कारण बन सकती है.
4. बार-बार का स्ट्रेस: भारी सामान उठाना या बार-बार गर्दन को मोड़ना.
5. जेनेटिक्स: परिवार में ये बीमारी का इतिहास होने पर जोखिम ज्यादा होता है.
6. स्मोकिंग और अनहेल्दी आदतें: हड्डियों में रक्त प्रवाह कम कर देती हैं, जिससे डीजेनरेशन तेज होता है.
इसके लक्षण
सर्वाइकल स्पॉन्डायलोसिस के लक्षण धीरे-धीरे डेवलप होते हैं. शुरुआती स्टेज में कई लोगों को कोई खास परेशानी महसूस नहीं होती, लेकिन वक्त के साथ ये इशारे दिख सकते हैं:
1. गर्दन में दर्द और अकड़न: खासकर सुबह उठने के बाद या लंबे समय तक बैठने के बाद.
2. गर्दन की मूवमेंट में कमी: सिर घुमाने पर खिंचाव या दर्द.
3. सिरदर्द: अक्सर सिर के पिछले हिस्से में.
4. कंधे, बाहों और हाथों का सुन्न हो जाना या झुनझुनी: ऐसा नसों पर दबाव के कारण होता है
5. कमजोरी: हाथों की पकड़ कमजोर होना.
6. चक्कर आना या बैलेंस में गड़बड़ी: खासकर सिर घुमाने पर.
अगर स्पाइनल कॉर्ड पर अधिक दबाव पड़ता है, तो चलने में परेशानी, पैरों में कमजोरी या मूत्र/मल पर काबू कम होना जैसे गंभीर लक्षण भी हो सकते हैं.
डायग्नोसिस के तरीकेसही इलाज के लिए सही डायग्नोसिस जरूरी है. डॉक्टर कई तरीकों से इसको कंफर्म करते हैं.
1. फिजिकल एग्जामिनेशन: इसमें गर्दन की मूवमेंट, रिफ्लेक्स, मांसपेशियों की ताकत और सुन्नपन की जांच की जाती है.
2. एक्स-रे: हड्डियों की संरचना और स्पेस में बदलाव देखने के लिए.
3. एमआरआई (MRI): डिस्क, नसों और सॉफ्ट टिश्यू में हुए नुकसान का पता लगाने के लिए.
4. सीटी स्कैन: हड्डियों के सूक्ष्म बदलाव की विस्तृत तस्वीर.
5. मायेलोग्राफी: नसों पर दबाव का आकलन करने के लिए.
6. नर्व कंडक्शन स्टडी: नसों के कामकाज की जांच.

बचाव के उपायहालांकि बढ़ती उम्र में होने वाले कुछ बदलाव को रोकना मुमकिन नहीं है, लेकिन सही आदतें अपनाकर इसके असर को कम किया जा सकता है:
1. सही पॉस्चर अपनाएं: कंप्यूटर पर काम करते समय स्क्रीन आंखों के लेवल पर हो.
2. लंबे समय तक एक ही पोजीशन में न रहें: हर 30-40 मिनट में गर्दन और कंधों की हल्की स्ट्रेचिंग करें.
3. मोबाइल का कम यूज: हालांकि मोबाइल आपकी जरूरत बन चुका है, लेकिन ज्यादा यूज से टेक्स्ट नेक जैसी परेशानी हो सकती है.
4. गर्दन और पीठ की मांसपेशियों को मजबूत करें: नियमित एक्सरसाइज और योग करें.
5. सही तकिया चुनें: न ज्यादा ऊंचा, न ज्यादा नीचा.
6. स्मोकिंग छोड़ें: हड्डियों की सेहत में सुधार होगा.
7. वेट कंट्रोल: एक्सट्रा वेट स्पाइन पर दबाव बढ़ाता है. 
इलाज के तरीके1. लाइफस्टाइल में चेंजेज
सही बैठने, खड़े होने और सोने की आदतें अपनाना.
लंबे समय तक एक ही स्थिति में गर्दन न रखना.
2. दवाइयां
पेन रिलीवर: जैसे पेरासिटामॉल या नॉन-स्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (NSAIDs).
मसल रिलैक्सेंट्स: मांसपेशियों की अकड़न कम करने के लिए.
स्टेरॉयड इंजेक्शन: गंभीर सूजन में.
नर्व पेन की दवाएं: जैसे गैबापेंटिन या प्रेगाबालिन.
3. फिजियोथेरेपी
गर्दन और कंधों की स्ट्रेचिंग और स्ट्रेंथनिंग एक्सरसाइज.
ट्रैक्शन थेरेपी: नसों पर दबाव कम करने के लिए इसे अपनाया जाता है.
4. दूसरे तरीके
योग और प्राणायाम: मांसपेशियों की लचीलापन और ब्लड फ्लो सुधारने के लिए इसकी मदद लें.
आयुर्वेद/पंचकर्म: जैसे अभ्यंग (तेल मालिश), भाप  वगैरह आपके काम आ सकते हैं.
एक्यूपंक्चर: दर्द नियंत्रण में सहायक.
5. सर्जरी
जब दवा और थेरेपी से सुधार न हो और नसों/स्पाइनल कॉर्ड पर सीवियर प्रेशर हो, तब सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है. इसमें हड्डी या डिस्क के हिस्से को हटाना, फ्यूजन या आर्टिफिशियल डिस्क लगाना शामिल है.
इस बात को समझेंसर्वाइकल स्पॉन्डायलोसिस एक कॉमन लेकिन अजीब परेशानी है, जो समय पर ध्यान न देने पर गंभीर हो सकती है. शुरुआती लक्षणों को अनदेखा करना आगे चलकर नसों और स्पाइनल कॉर्ड को नुकसान पहुंचा सकता है. सही पॉस्चर, रेगुलर एक्सरसाइज, और समय पर इलाज अपनाकर इसे कंट्रोल किया जा सकता है. सबसे जरूरी है: गर्दन के दर्द को मामूली समझकर टालना नहीं, बल्कि डॉक्टर से जांच करवाना चाहिए.
 
(Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मक़सद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.)



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