गाजीपुर. मोबाइल बेटिंग गेम्स ने छोटे शहरों तक अपनी गहरी पकड़ बना ली है. पिछले दो-तीन साल में गाजीपुर से कई मामले सामने आए, जहां किशोर और युवा बेटिंग एप्स पर पैसे हारकर डिप्रेशन में चले गए और आत्महत्या कर ली. इस बीच भारत सरकार ने 2025 में ऑनलाइन गेमिंग रेग्युलेशन बिल पास किया है, जिसमें रियल-मनी बेटिंग और जुआ आधारित गेम्स पर रोक लगाई गई है. सरकार का दावा है कि इससे युवाओं को सुरक्षित रखने और आर्थिक नुकसान रोकने में मदद मिलेगी, जबकि ई-स्पोर्ट्स और स्किल-बेस्ड गेम्स को बढ़ावा दिया जाएगा.
दो साल पहले गहमर का दर्दनाक मामला, 8 लाख हारे युवक ने दी थी जानगाजीपुर के गहमर कोतवाली क्षेत्र के बसुका गांव में हाल ही में एक युवक ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली. ग्रामीणों ने बताया कि बृजेश सिंह उर्फ हलचल यादव, जो कि वीरेंद्र सिंह का बेटा था, ऑनलाइन बेटिंग गेम्स खेलता था. दो साल पहले उसने करीब 8 लाख रुपये गंवा दिए थे. लगातार डिप्रेशन में रहने के बाद शनिवार की रात उसने जहर खा लिया. जब परिजनों को पता चला और आनन-फानन में उसे सदर अस्पताल ले जाया गया, लेकिन इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. यह घटना अकेली नहीं है. जिले में पिछले दो वर्षों में कई ऐसे मामले आए हैं, जहां युवाओं ने पैसे हारकर खुदकुशी की है.
युवाओं की जुबानी, कैसे फंसाते हैं बेटिंग एप्स
गाजीपुर के कुछ युवाओं ने हमारे साथ अपने अनुभव साझा किए. उन्होंने साफ कहा कि इन बेटिंग एप्स का जाल बहुत खतरनाक है.
पहला यूजर बताता हैशुरुआत में Dream11 और Winzo जैसे ऐप्स 50-100 रुपये का फ्री बोनस देते हैं. आप सोचते हैं कि बिना पैसे लगाए खेल सकते हैं. शुरुआती खेलों में जीत भी मिलती है. लेकिन असली फंदा यहीं है. जैसे ही आप असली पैसे लगाने लगते हैं, धीरे-धीरे हारना शुरू हो जाता है. फिर लगता है कि पुराना नुकसान रिकवर कर लें, और वहीं से लत लग जाती है.
दूसरा यूजर कहता है
कंपनी की सेटिंग ऐसी होती है कि पहले जितवाते हैं, ताकि भरोसा बन जाए. लेकिन बाद में धीरे-धीरे पैसा डूबने लगता है. 100 से 200, 200 से 500, और फिर 1000-1500 तक. जब पैसा हार जाते हैं तो सोचते हैं कि अभी वापस जीतकर रिकवर कर लेंगे, पर असल में और हारते हैं. फिर दोस्त से उधार लेते हैं, कई तो पर्सनल लोन वाले एप्स तक का सहारा लेने लगते हैं. यह एक जाल है, जिससे निकलना बहुत मुश्किल है.
क्रिकेटर्स का प्रचार युवाओं को भटकाता हैएक यूजर ने कहा कि धोनी और विराट कोहली जैसे बड़े क्रिकेटर्स इन ऐप्स का प्रचार करते हैं. जब इतने बड़े खिलाड़ी कहते हैं कि Dream11 खेलो, तो लगता है भरोसेमंद है. लेकिन असल में वे तो सिर्फ विज्ञापन का पैसा लेते हैं. नुकसान हमेशा यूजर का होता है, मुनाफा सिर्फ कंपनी को जाता है. युवाओं ने बताया कि इन एप्स में स्किल गेम का दावा झूठा है. असल में कंपनी हर हाल में अपना 10% कमीशन काटती है. चाहे कोई भी जीते या हारे, फायदा सिर्फ कंपनी को होता है.
विशेषज्ञ की राय, यह लत ड्रग्स से कम नहींबी.आर.डी. बी.डी. पी.जी. कॉलेज की मनोविज्ञान विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर प्रज्ञा तिवारी कहती हैं कि यह सिर्फ बच्चों का मसला नहीं है. किशोर और युवा इस लत में बुरी तरह फंस रहे हैं. कई परिवार अपने बच्चों को खो चुके हैं. यह एक तरह का नशा है. जब लगातार नुकसान होता है, तो तनाव, डिप्रेशन और आखिरकार आत्महत्या जैसे कदम सामने आते हैं.
उन्होंने आगे कहा भारत सरकार ने जो 2025 ऑनलाइन गेमिंग रेग्युलेशन बिल पास किया है, वह सही दिशा में कदम है. मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ठीक कहा है कि स्किल गेम्स के नाम पर असल में जुआ हो रहा था. अब रियल-मनी बेटिंग और जुआ जैसे प्लेटफॉर्म्स पर रोक लगेगी. यह युवाओं की जिंदगी बचाने में मदद करेगा.
नतीजा… गाजीपुर जैसे शहर खतरे मेंगाजीपुर में बढ़ते मामलों से साफ है कि ऑनलाइन बेटिंग गेम्स का नशा छोटे शहरों तक फैल चुका है. युवा बोनस और विज्ञापनों के चक्कर में फंसते हैं. क्रिकेटर्स और सेलिब्रिटी का प्रचार उन्हें और प्रभावित करता है. धीरे-धीरे लोन, कर्ज और डिप्रेशन में फंसकर कई अपनी जान गंवा रहे हैं. सरकार का बिल उम्मीद जगाता है, लेकिन परिवार और समाज की जिम्मेदारी भी उतनी ही बड़ी है. जब तक लोग जागरूक नहीं होंगे, यह डिजिटल नशा और जिंदगियां निगलता रहेगा.