Tears Sample May Diagnose Diseases: आंसू आपके जज्बात बयां करते हैं लेकिन ऐसा मुमकिन है की नियर फ्यूचर में आंखों से निकलने वाली ये बूंदें डॉक्टर्स को वो सारी जानकारी दे सकता है जो एक ब्लड टेस्ट जरिए मिलती है। आंसू, जो कभी सिर्फ इमोशन को बताते थे, अब बायोमेडिकल रिसर्च और नैनो टेक्नोलॉजी की प्रगति के साथ इफेक्टिव डायग्नोस्टिक इक्यूपमेंट के तौर पर पहचाने जा रहे हैं.
आंसुओं में छिपे सेहत के राज़खून की तरह, आंसू भी बहुत सारी बायोलॉजिकल जानकारी रखते हैं. डॉ. समीर भाटी ने बताया कि ये पानी, प्रोटीन, एंजाइम, लिपिड और इलेक्ट्रोलाइट्स से बने होते हैं, जो वो “क्रिमसन स्पिरिट” को दिखाते हैं. आंसू को स्टोर करना नॉन-इंवेसिव, पेनलेस और कम से कम इंफेक्टिव है, इस तरह ब्लड टेस्ट के उलट, जिसमें खून निकालने की जरूरत होती है, ये सभी रूटीन हेल्थ चेकअप के लिए सबसे अच्छा ऑप्शन है.
किन बीमारियों का लग सकता है पता?हाल की स्टडीज से पता चला है कि आंसू डायबिटीज से लेकर कैंसर और अल्जाइमर जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिव डिजीज तक, कई बीमारियों के लिए बायोमार्कर के तौर पर काम करते हैं. मिसाल के लिए, आंसू में हाई ग्लूकोज लेवल का यूज डायबिटीज की मॉनिटरिंग में किया जा सकता है, जबकि कुछ प्रोटीन फिंगरप्रिंट ब्रेस्ट या प्रोस्टेट कैंसर के शुरुआती पता लगाने में मददगार हो सकते हैं.
कैसे होगा एडवांसमेंट?स्मार्ट कॉन्टैक्ट लेंस के जरिए इस फील्ड में और एडवांसमेंट लाया जा रहा है. इन लेंसेज में माइक्रोमिनिएचर सेंसर्स होते हैं जो रियल टाइम बेसिस पर एब्नार्मेलिटीज के लिए आसू का परीक्षण करते हैं और घटना डेटा को एक स्मार्ट ऐप या एक मेडिकल डेटाबेस में भेजते हैं. गूगल और दूसरे हेल्थ टेक इनोवेटर्स जैसी कंपनीज ब्लड टेस्ट के लिए उंगली चुभोने की पारंपरिक तरीकों को खत्म करने के मकसद से ग्लूकोज की मॉनिटरिंग के लिए ऐसे लेंस का टेस्ट करने वाली पहली कंपनी रही हैं.
AI तकनीक के जरिए बढ़ावाइसके अलावा, आंसू के डायग्नोसिस को कॉन्पलेक्स टीयर प्रोफाइट के तेजी से और सटीक एनालिसिस को एग्जिक्यूट करने के लिए एआई तकनीक द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है. ऐसे मशीन-लर्निंग एल्गोरिदम इस तरह टीयर कंपोजीशन में उन पैटर्न को समझ सकते हैं जो खास बीमारियों से जुड़े हैं, जिससे अर्ली डायग्नोसिस और पर्सनलाइज्ड ट्रीटमेंट में सुविधा मिलती है.
भारत के लिए कितना फायदेमंद?अपनी बड़ी आबादी और बढ़ती क्रोनिक डिजीज के बोझ को देखते हुए, भारत को आंसू पर बेस्ड डायग्नोसिस के जरिए बहुत कुछ हासिल करना है. रूरल क्लीनिक्स की कल्पना करें, जो इन पोर्टेबल टीयर एनालाइजिंग इस्ट्रूमेंट्स से भरे हो सकते हैं, जहां डॉक्टर लैब फैसिलिटीज तक पहुंच की कमी वाले इलाकों में मरीजों का डायग्नोसिस और ट्रीटमेंट कर सकते हैं.
क्या हैं चैलेंजेज?हालांकि, कभी भी नए काम में हमेशा चुनौतियां होती हैं. आंसू की बूंदें खून की तुलना में छोटे सैंपल वॉल्यूम देता है और इसलिए, बहुत ज्यादा सेंसेटिव डिटेक्शन टेक्नोलॉजी की जरूरत होती है. और, निश्चित रूप से, रेगुलेटरी बॉडीज को भी अप्रूवल देना चाहिए, और ऐसे टूल्स के मेनस्ट्रीम में आने से पहले बड़े पैमाने पर क्लीनिकल वैलिडेशन सहमत होने चाहिए.
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.