उत्तर प्रदेश का ऐतिहासिक शहर आगरा सदियों से सांस्कृतिक विरासत का केंद्र रहा है. मुगल बादशाह अकबर और जहांगीर के शासन में दीपावली धूमधाम से मनाई जाती थी, लेकिन औरंगज़ेब के समय इस पर पाबंदी लगा दी गई. बाद में जाट और मराठा शासन के आगमन के साथ दीपावली ने फिर से अपनी रौनक और परंपरा वापस पा ली. आगरा न केवल ताजमहल के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां की सांस्कृतिक विरासत भी बेहद समृद्ध रही है. मुगल काल से लेकर मराठा शासन तक, इस शहर ने दीपावली जैसे त्यौहारों के स्वरूप में अनेक परिवर्तन देखे.
मुगल काल में दीपावली की शुरुआत और उसका स्वरूप इतिहासकार राज किशोर शर्मा राजे बताते हैं कि मुगल काल के दौरान, विशेषकर बादशाह अकबर और जहांगीर के शासन में, दीपावली को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता था. उस दौर में आगरा मुगल साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था और बादशाह अपने दरबारियों के साथ आगरा किले में निवास करते थे. बादशाह अकबर और जहांगीर के शासन में दरबार में कई हिंदू दरबारी और कर्मचारी शामिल थे, जिन्हें दीपावली मनाने की अनुमति दी गई थी. वे अपने घरों में मिट्टी के दीपक जलाते, मसालों की सुगंध से वातावरण महकाते और आतिशबाजी के माध्यम से इस पर्व को मनाते थे. इतिहासकारों के अनुसार, उस दौर की दीपावली को “ऐतिहासिक दीपावली” कहा जा सकता है, क्योंकि यह धार्मिक सौहार्द और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक थी.
औरंगजेब का फरमान और दीपावली पर पाबंदी हालांकि अकबर और जहांगीर के बाद, जब औरंगज़ेब का शासन आया, तब धार्मिक नीतियों में बड़ा परिवर्तन देखने को मिला. राज किशोर शर्मा राजे के अनुसार, औरंगज़ेब ने अपने शासनकाल में दीपावली जैसे हिंदू त्यौहारों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था. उसके फरमान के बाद कोई भी व्यक्ति दीपावली नहीं मना सकता था. इससे आगरा के हिंदू समुदाय में गहरा दुःख व्याप्त हो गया. लोगों ने भयवश विरोध नहीं किया, लेकिन इस पर्व की खुशी मानो शहर से खो गई. इस तरह एक लंबा कालखंड ऐसा रहा जब दीपावली केवल यादों और मन की श्रद्धा तक सीमित रह गई.
जाट शासन में दीपावली की वापसी समय के साथ मुगल सत्ता कमजोर पड़ने लगी और सन 1761 में आगरा पर जाटों का शासन स्थापित हुआ. इतिहासकारों का कहना है कि जाट शासन आने के बाद आगरा में पुनः दीपावली मनाई जाने लगी. लोग एक बार फिर अपने घरों को दीपों से सजाने लगे, मिठाइयां बांटी जाने लगीं और पूरे शहर में उत्सव का माहौल लौट आया. यह काल आगरा के इतिहास में एक पुनर्जागरण काल की तरह था, जब धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सवों को नया जीवन मिला. मराठा शासन में दीपोत्सव का पुनर्जन्म वर्ष 1774 में आगरा पर मराठों का शासन स्थापित हुआ, और इसके साथ ही दीपावली ने एक बार फिर अपनी चमक पूरी तरह हासिल की. मराठा शासन में हिंदू त्यौहारों को विशेष महत्व दिया गया. राज किशोर शर्मा राजे के अनुसार, मराठों के समय दीपावली केवल एक धार्मिक पर्व नहीं रही, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मनाई जाने लगी. आगरा की गलियां, मंदिर और घर दीपों से जगमगाने लगे. यह परंपरा तब से लेकर आज तक लगातार चली आ रही है.