Uttar Pradesh

दिल्ली से सिर्फ 20 किलोमीटर दूर बसा है ऐसा गांव, जहां नहीं बंधती राखी… वजह है मोहम्‍मद गौरी, जानिए 800 साल पुरानी वजह

गाजियाबाद: देशभर में जब रक्षाबंधन की तैयारियां जोरों पर होती हैं, बाजारों में राखियों की रौनक दिखती है, बहनें भाइयों के लिए उपहार चुनती हैं, लेकिन उसी समय गाज़ियाबाद से करीब 20 किलोमीटर दूर मुरादनगर के सुराना गांव में एक अजीब सा सन्नाटा पसरा रहता है. इस गांव में रक्षाबंधन के दिन कोई उत्सव नहीं होता, न घरों में मिठाइयां बनती हैं और न बहनें भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं. गांव के लोग इस दिन को ‘काला दिन’ मानते हैं.

क्यों मानते हैं काला दिन

सुराना गांव की यह परंपरा कोई नई नहीं है, बल्कि सदियों पुरानी है. गांव के बुजुर्गों के मुताबिक, यह सब 12वीं सदी में हुई एक दिल दहला देने वाली घटना के कारण शुरू हुआ. बताया जाता है कि यह गांव मूल रूप से छबड़िया गोत्र के यदुवंशी अहीरों ने बसाया था. वे राजस्थान के अलवर से आकर हिंडन नदी के किनारे बसे थे. युद्धप्रिय जाति होने के कारण उन्होंने गांव का नाम ‘सौराणा’ रखा, जो वक्त के साथ ‘सुराना’ हो गया.

मोहम्मद गौरी ने गांव में मचाया भयानक कत्लेआम 

साल 1192 में तराइन के दूसरे युद्ध में मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराया. इसके बाद चौहान की सेना के कुछ बचे हुए अहीर सैनिक सुराना गांव में आकर छिप गए. जब मोहम्मद गौरी को इसका पता चला तो उसने अपनी 50 हजार सैनिकों की सेना के साथ गांव पर हमला कर दिया. यह हमला रक्षाबंधन के दिन हुआ था.
गौरी ने गांव को चारों ओर से घेर लिया और सैनिकों को सौंपने या युद्ध के लिए तैयार होने की चेतावनी दी. गांववालों ने हार नहीं मानी और डटकर मुकाबला किया, लेकिन संख्या में कम होने की वजह से वे टिक नहीं सके. गौरी ने गांव में भयानक कत्लेआम मचाया. महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को हाथियों के पैरों तले कुचलवा दिया.

अशुभ मानते हैं रक्षाबंधन

बताया जाता है कि उस दिन गांव की लगभग पूरी आबादी खत्म हो गई थी. उस वक्त गांव की एकमात्र महिला जयकौर ही जीवित बची थी, क्योंकि वह रक्षाबंधन के मौके पर अपने मायके गई हुई थी. वह अपने दो बेटों लखन और चूंडा के साथ राजस्थान के ददहेड़ा गांव में थी. गांव के फिर से बसने के बाद एक बार रक्षाबंधन मनाने की कोशिश की गई, लेकिन उसी दिन एक बच्चा गंभीर रूप से विकलांग हो गया. इसे अशुभ संकेत मानकर गांववालों ने उस दिन को हमेशा के लिए छोड़ देने का फैसला कर लिया. तब से आज तक सुराना गांव में रक्षाबंधन नहीं मनाया जाता.

छाबड़िया गोत्र के लोग नहीं मनाते रक्षा बंधन

यहां की बेटियां राखी नहीं बांधतीं, न ही यहां के लोग कहीं और जाकर भी यह त्योहार मनाते हैं. यह गांव आज भी उस दर्दनाक इतिहास को अपने भीतर संजोए हुए है. गांववालों के अनुसार, 12वीं सदी में इसी दिन मुगलों ने गांव पर हाथियों से हमला करवा दिया था. इस कत्लेआम में पूरा गांव तबाह हो गया था. तभी से इस दिन को ‘काला दिन’ माना जाता है. नई पीढ़ी जब सवाल करती है कि रक्षाबंधन क्यों नहीं मनाते, तो बुजुर्ग उन्हें यह इतिहास बताते हैं. मान्यता है कि अगर कोई रक्षाबंधन मनाता है, तो कोई न कोई अनहोनी हो जाती है. छाबड़िया गोत्र के लोग, चाहे कहीं भी हों, इस दिन त्योहार नहीं मनाते.

Source link

You Missed

Priyanshu Modi on The Pill
Top StoriesNov 23, 2025

Priyanshu Modi on The Pill

When Priyanshu Modi talks about ‘The Pill’, he doesn’t begin with cinematic jargon or the technicalities of filmmaking.…

India, Canada, Australia unveil tech blueprint
Top StoriesNov 23, 2025

भारत, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया ने टेक्नोलॉजी ब्लूप्रिंट का अनावरण किया है

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को जोहान्सबर्ग में जारी हुए जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान ऑस्ट्रेलियाई…

Delhi Police bust ISI-backed international arms module, seize Special Forces-grade weapons
Top StoriesNov 23, 2025

दिल्ली पुलिस ने आईएसआई समर्थित अंतर्राष्ट्रीय हथियार मॉड्यूल को तोड़ा, विशेष बलों की ग्रेड हथियार जब्त किए

नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने एक अंतरराष्ट्रीय हथियार तस्करी मॉड्यूल का पर्दाफाश किया है, जिसका…

Scroll to Top