एनसीआर में बारिश वाले बादल कम से कम दो दिनों से घनघोर तरीके से छाए लग रहे हैं. लेकिन बारिश नहीं हो रही. अगर कहीं हुई भी तो बहुत छिटपुट. क्या होती है इसकी वजह कि बादल तो आसमान में खूब छाए हों लेकिन बारिश नहीं करें.मौसम विभाग बता रहा है कि दिल्ली एनसीआर के आसपास बुधवार को अच्छे खासे बादल छाए हुए हैं. आर्द्रता बहुत ज्यादा है. लेकिन बारिश का कोई अनुमान नहीं. मंगलवार यानि 24 जून को भी यही स्थिति थी.गुरुवार को सुबह हल्की फुल्की बारिश हो सकती है अन्यथा बादल छाए रहेंगे. नमी बनी रहेगी. शुक्रवार को जाकर स्थितियां बदल सकती हैं. तो आखिर दिल्ली एनसीआर में ये स्थिति क्यों बनी हुई है कि बादल तो खूब छाए हुए हैं. बारिश का अंदेशा भी दे रहे हैं लेकिन पानी नहीं बरसा रहे हैं.
आज यानि 25 जून को भी हल्की से मध्यम बारिश की उम्मीद थी, लेकिन हवा की दिशा, मॉइस्चर लेवल और स्थानीय वातावरण से बारिश पूरी तरह नहीं हो पा रही है. छाए हुए बादल मौजूद हैं लेकिन उनमें मौजूद पानी की मात्रा गुरुत्वाकर्षण‑गर्जन क्षमता तक नहीं पहुंच रही.
साइंस क्या कहेगी इस हालत पर
अगर साइंस को इसका जवाब देना हो तो बकौल उसके बादल छाने के बाद भी बारिश इसलिए नहीं हो पाती कि क्योंकि बादलों में जो नमी या पानी की बूंदें होती हैं, वो इतनी छोटी होती हैं कि बादल को संतृप्त नहीं कर पातीं यानि बारिश करने लायक नहीं बना पातीं.
दरअसल दिल्ली एक लैंडलॉक्ड (भूमिबद्ध) क्षेत्र है जहां समुंदर से निरंतर नमी नहीं आती, जिससे हवा में नमी की मात्रा इतनी नहीं होती की बादल तैयार हों और और बारिश करें.
दिल्ली एनसीआर में अक्सर बादल आते हैं छाते हैं पर…
मानसूनी निचला दबाव या ट्रफ अभी दिल्ली की तुलना में दक्षिण में है, जिससे यहां मॉनसून की सक्रियता कम बनी रहती है. दिल्ली और एनसीआर का मौसम तेज हवाओं, ऊंचाई पर सूखी हवा और शहरी ऊष्मा‑केंद्रों की वजह से अस्थिर होता है. बादल छाए तो रहते हैं लेकिन हवाओं की दिशा या गर्मी से नमी बरसात में नहीं बदल पाती. ये स्थितियां दिल्ली और एनसीआर के साथ अक्सर बनती हैं.
दिल्ली और एनसीआर में बादल तो खूब छाए हैं लेकिन बस बारिश ही नहीं हो रही. (NEWS18)
क्या होती हैं ऐसा होने की वजहें
आने वाले दिनों में मॉनसून सक्रिय होने पर थोड़ी‑बहुत बारिश की अच्छी संभावना बनी हुई है. 26–29 जून के दौरान दिल्ली समेत कई राज्यों में हल्के तूफ़ान और बारिश संभव है. अब ये भी जानते हैं कि इसकी वजह क्या होती है जबकि बादल तो छाए रहें लेकिन बारिश नहीं हो
1. नमी का नाकाफी जमावड़ा (Humidity Threshold)
बादलों में पानी की बूंदें तब तक आपस में नहीं मिलतीं जब तक उनका आकार और संख्या इतनी ना हो जाए कि गुरुत्वाकर्षण से उनके नीचे गिरने की स्थिति बन जाए. मतलब बादलों में नमी तो होती है, पर वो मात्रा सैचुरेशन तक नहीं पहुंचाने के लिए काफी नहीं होती कि बारिश हो जाए.
2. ऊपर की हवा का तापमान और दबावअगर ऊपरी वायुमंडल में हवा बहुत ठंडी या ज्यादा हल्की हो तो वो बादलों को ऊपर रोके रखती है. बारिश नहीं होने देती. कभी-कभी स्ट्रैटोस्फीयर के पास एक इन्वर्ज़न लेयर बन जाती है, जो नीचे आने से रोकती है.
उत्तर भारत में आमतौर पर बादल छाए हुए हैं लेकिन वैसी बारिश नहीं हो रही, जिसका अनुमान था. (news18)
3. ऊपर की सूखी हवा का असर
कभी-कभी ऊपर की सतहों पर सूखी हवा आ जाती है, जो बादलों की नमी सोख लेती है या बूंदों को वाष्पित कर देती है. इससे बारिश नहीं गिरती.
4. तेज हवाओं का बहावअगर अलग-अलग ऊंचाई पर हवा की दिशा और गति में ज़्यादा फर्क हो (जैसे नीचे से पूरब-पश्चिम और ऊपर से उत्तर-दक्षिण), तो वो बादलों को फटने और एक जगह इकट्ठा होने से रोक देती है. इससे लगातार बादल छाए रहते हैं, लेकिन बारिश नहीं हो पाती.
5. भौगोलिक प्रभाव
पहाड़ी इलाकों में बारिश ज़्यादा होती है क्योंकि बादल पहाड़ों से टकरा कर उठते हैं. ठंडी होकर बरस जाते हैं लेकिन समतल या उपयुक्त स्थल स्थिति नहीं होने पर बादल बस मंडराते रहते हैं.
6. कम दबाव की कमजोर स्थितिकई बार मानसून या लोकल लो-प्रेशर सिस्टम के कमजोर होने पर बादल आ तो जाते हैं लेकिन पर्याप्त ऊर्जा न होने से बारिश नहीं कर पाते.
बारिश तब तक नहीं होती जब तक वायुमंडलीय परिस्थितियां यानि नमी, तापमान, हवा की दिशा और दबाव अनुकूल न हो जाएं. यानि दिल्ली और एनसीआर के लोगों को शायद बारिश और अच्छी बारिश के लिए एक दो दिनों का इंतजार और करना हो सकता है.
देश के वो इलाके जहां बादल घिरते हैं लेकिन बारिश नहीं होती
दिल्ली-एनसीआर – मानसून के दौरान कई बार दिल्ली-एनसीआर में बादल मंडराते रहते हैं, लेकिन पश्चिमी विक्षोभ और स्थानीय हीट आइलैंड इफेक्ट के कारण बारिश टल जाती है. मॉनसून ट्रफ के दक्षिण में होने पर दिल्ली में सिर्फ बादल दिखते हैं, पानी नहीं गिरता. दिल्ली-एनसीआर और हरियाणा ऐसे सबसे क्लासिक उदाहरण हैं, जहां हर मानसून में लोग कई दिन तक बादलों को देखकर इंतजार करते हैं.
हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश –खासकर गुरुग्राम, फरीदाबाद, मेरठ, नोएडा जैसे इलाके. यहां भी अक्सर बादल मंडराते हैं लेकिन दिल्ली जैसी ही परिस्थिति होने से बारिश नहीं होती. वायुमंडलीय दबाव और हवा की दिशा में टकराव से बादल बिखर जाते हैं.
राजस्थान का पूर्वी और उत्तरी हिस्सा – जयपुर, अलवर, भरतपुर. मॉनसून की सीमांत पट्टी में होने से बादल तो बनते हैं, लेकिन नमी कम होने से बारिश रुक जाती है. गर्मी और सूखी हवा (लू) बादलों को वाष्पित कर देती है.
विदर्भ (महाराष्ट्र का पूर्वी हिस्सा) – नागपुर, अमरावती, अकोला. मॉनसून के समय कई बार बादल घिरते हैं लेकिन नमी पर्याप्त नहीं होती. लोकल हीटिंग व हवा की दिशा बदलने से बारिश नहीं गिरती.
कच्छ (गुजरात) – यहां भी मानसून में बादल आते हैं, लेकिन अत्यधिक गर्मी और कम नमी की वजह से बारिश ज़्यादातर नहीं होती. कई बार महीनों तक बादल तो छाए रहते हैं लेकिन बरसात नहीं होती.
तमिलनाडु का पश्चिमी और मध्य हिस्सा – मसलन जैसे मदुरै और सेलम. दक्षिण-पश्चिम मानसून तमिलनाडु में कमज़ोर रहता है. बादल जरूर आते हैं, लेकिन बरसात अपेक्षाकृत कम होती है क्योंकि बादलों की नमी दक्षिण भारत के वेस्टर्न घाट्स पर ही बरस जाती है.