Uttar Pradesh

Dilkusha Kothi: ‘दिलकुशा कोठी’ को क्यों कहा जाता है भूतिया घर! आजादी की पहली लड़ाई से है रिश्‍ता



लखनऊ. दिलकुशा कोठी कभी अवध के नवाबों के लिए शिकारगाह और गर्मियों में आरामगाह के लिए मशहूर थी, लेकिन आज उस कोठी को लखनऊ के लोग भूतिया घर के नाम से जानते हैं. कुछ लोगों ने यह अफवाह फैलाई कि रात होते ही यहां पर अजीब आवाजें सुनाई देती हैं, तो कुछ लोगों ने कहा कि रात में यहां पर सफेद कुर्ता पजामा और पगड़ी में एक लंबा सा व्यक्ति नजर आता है, जो कि टॉर्च मारने पर गायब हो जाता है.
इन सभी अफवाहों की हकीकत जानने के लिए जब हमने दिलकुशा कोठी जाकर पड़ताल की, तो यह सभी बातें पूरी तरह से अफवाह निकली. ज्यादातर लोगों का यही कहना था कि उन्होंने इसे सुना है, लेकिन खुद कभी नहीं देखा. ऐसे में अगर आपको दिलकुशा कोठी जाना है, तो आप बेहिचक घूम सकते हैं क्योंकि इसे भूतिया घर कहा जाना महज एक अफवाह है. इस कोठी को घूमना पूरी तरह से नि:शुल्क है. हालांकि शाम 6 बजे के बाद यहां पर किसी को भी जाने की इजाजत नहीं है.ऐसा क्यों है इस सवाल का जवाब हमें नहीं मिल पाया.
दिलकुशा कोठी में है ब्रिटिश मेजर जनरल की कब्रभीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सिद्धार्थ शंकर राय ने बताया कि दिलकुशा कोठी आजादी की पहली लड़ाई 1857 में क्रांतिकारियों और ब्रिटिश सैनिकों के बीच में लड़ाई का गढ़ बन गई थी. यहां पर भारतीय क्रांतिकारियों और ब्रिटिश सैनिकों के बीच में युद्ध भी हुआ था, जिसमें दोनों ओर से बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे. ऐसे में जीत ब्रिटिश सैनिकों की हुई थी और ब्रिटिश सैनिक यहां पर रहने लगे थे. इसके बाद ब्रिटिश मेजर जनरल सर हेनरी हैवलॉक की 24 नवंबर 1857 को बीमारी के कारण मृत्यु हो गई थी, लेकिन कुछ लोगों ने उनकी मृत्यु को संदिग्ध परिस्थितियों में बताया था. यहां पर उनकी कब्र भी बनी हुई है.‌ देखते ही देखते कुछ और ब्रिटिश सैनिकों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत होने लगी. इसके बाद यह धारणा प्रबल हो गई कि यहां पर जो भारतीय सैनिक मारे गए वही भूत बनकर अब बदला ले रहे हैं. ऐसे में ब्रिटिश सैनिक इसे छोड़कर चले गए. कोई यहां पर नहीं रहता था. भूतिया घर की बात पूरी तरह से अफवाह है. वर्तमान में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा इस कोठी को संरक्षित किया गया है.
अवध के आखिरी नवाब ने बनवाया थादिलकुशा कोठी का निर्माण अवध के आखिरी नवाब सआदत अली खान ने 1797 से लेकर 1814 के बीच में करवाया था. इसका प्रारूप नवाबों के मित्र ब्रिटिश रेजिडेंट गोर अउजली ने तैयार किया था. इसकी डिजाइन में इंग्लैंड स्थित सीतन डेलावल हॉल की छाप मिलती है. यह कोठी कैंट क्षेत्र में इंग्लिश बरोक शैली पर लखौरी ईंटों से बनाई गई थी. वर्तमान में यह पर्यटन स्थल बन चुकी है. दिलकुशा कोठी को देखने बड़ी संख्या में देश-विदेश से लोग आते हैं और इतिहास को जानने में रूचि दिखाते हैं.ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|Tags: 1857 Kranti, Lucknow city, Lucknow newsFIRST PUBLISHED : October 10, 2022, 09:30 IST



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